महाराष्ट्र : कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रही नर्सों को नहीं मिल रही सैलरी, ज्यादातर को नहीं मिला COVID भत्ता

महाराष्ट्र में जहां कोरोना संक्रमित मरीज कम हो रहे हैं वहां नर्सों को निकाला जा रहा है, नतीजा अलग अलग जिलों में नर्सें सड़कों पर हैं

महाराष्ट्र : कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रही नर्सों को नहीं मिल रही सैलरी, ज्यादातर को नहीं मिला COVID भत्ता

प्रतीकात्मक फोटो.

खास बातें

  • जहां मरीज हो रहे हैं कम वहां नर्सों को निकाला जा रहा है
  • कई पब्लिक-प्राइवट फैसिलिटी में कोविड भत्ता नहीं : स्टडी
  • नर्सें और उनके प्रतिनिधियों ने सुनाई अपनी व्यथा
मुंबई:

महाराष्ट्र (Maharashtra) में अब भी एक नर्स (Nurse), 70-80 मरीज़ों को संभाल रही है, कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहीं नर्सें, सैलरी कट और वेतन 2-3 महीने की देरी से मिलने की शिकायत कर रही हैं. प्राइवेट से लेकर पब्लिक कोविड (COVID) फ़ैसिलिटी में भी यही हाल है. जहां मरीज कम हो रहे हैं वहां नर्सों को निकाला जा रहा है. नतीजा अलग अलग जिलों में नर्सें सड़कों पर हैं. पुणे के सबसे बड़े कोविड जंबो सेंटर के कॉन्ट्रैक्ट नर्सिंग स्टाफ के 150 सदस्य पिछले तीन महीने से बिना सैलरी के काम कर रहे हैं. बुधवार को उनका गुस्सा सड़कों पर दिखा. ठाणे, कोल्हापुर की नर्सों ने भी ऐसी ही शिकायतें की हैं. 

इस बीच स्वास्थ्य संस्था ‘साथी' द्वारा महाराष्ट्र में नर्सिंग स्टाफ पर किए एक सर्वे में चौंकाने वाली जानकारी मिली है. इसके मुताबिक प्राइवेट फैसिलिटी में केवल 21% नर्सों और पब्लिक सेक्टर में महज़ 7.5% नर्सिंग स्टाफ़ को कोविड भत्ता मिला है. कॉन्ट्रैक्ट वाले नर्सिंग स्टाफ़ को जहां कोविड भत्ता नहीं मिला है वहीं कई जगह 2-3 महीने से पगार बंद है और कई जगहों पर उनकी सैलरी काटी गई है. सितम्बर-अक्टूबर महीने में राज्य की 367 नर्सों और पांच नर्स प्रतिनिधियों को ‘साथी' की स्टडी में शामिल किया गया इनमें 47% रूरल और 53% शहरी इलाक़ों से हैं. 

स्वास्थ्य संस्था ‘साथी' की श्वेता मराठे कहती हैं कि वर्कलोड होना, कोविड एलाउंस ना मिलना, सेफ़्टी मेजर की कमी, पुअर क्वालिटी, सैलरी कट, सैलरी डिले, ऐसी कई समस्याएं हमें प्राइवेट, पब्लिक दोनों में कॉमन दिख रही हैं. अगर इसके भीतर जाकर देखें तो पब्लिक सेक्टर में वर्कलोड का मुद्दा ज़्यादा दिख रहा है. 

स्टडी की को-ऑथर, हेल्थकेयर स्पेशलिस्ट डॉ स्वाति राणे और यूनाइटेड नर्सिंग एसोसिएशन के महाराष्ट्र के अध्यक्ष जिबिन बताते हैं कि अब भी राज्य के कई जिलों में एक नर्स 70-80 मरीज़ों को संभाल रही है. जहां मरीज कम हो रहे हैं वहां नर्सों को निकाला जा रहा है. जिबिन ने कहा कि ‘'हमारी रीसेंट स्टडी में पता चला है कि एक एक नर्स 70-80 पेशेंट को देख रही हैं, एक शिफ़्ट में. ये कैसे पॉसिबल है?''

सेवाशक्ति हेल्थकेयर की सीईओ डॉ स्वाति राणे ने बताया कि ''जब नौकरी मिलती है तो हमको रिक्रूटमेंट लेटर मिलता है, वो नर्सों को नहीं मिला है. नर्सों की तनख़्वाह 2-3 महीने से नहीं मिली है. और अब जैसे- जैसे पेशेंट कम हो रहे हैं वो नर्सों को निकाल रहे हैं. ये बहुत ग़लत हो रहा है.'' 

पुणे कोविड हॉस्पिटल की एक नर्स ने अपनी व्यथा कही, ‘'अभी हमको तीन महीने वहां करते-करते हुआ है. चौथे महीने में भी काम कर रहे हैं, पर हमारी एक भी महीने की सैलरी नहीं मिली है. बीच में जब पेशेंट कम हुए तो कहा PMC ने आपकी सैलरी कम की है लेकिन पेशेंट सिर्फ़ दो हफ़्ते कम थे, फिर तो बढ़ ही रहे हैं, अब क्या?''

ठाणे कोविड हॉस्पिटल की एक नर्स ने कहा कि ‘'उस टाइम हमने हमारी जान जोखिम में डालकर काम किया. जिस तरह से मरीज़ों की केयर की उसका ये सिला दे रहे हैं. ये लोग अब हमको काम से निकालने की बात कर रहे हैं. छोटी-छोटी गलतियां निकाल रहे हैं.''

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‘साथी' की स्टडी के आधार पर सैलरी में देरी और कट की शिकायत राज्य के स्वास्थ्य विभाग तक पहुंचाई गई है लेकिन इन्हें आश्वासन का अब तक इंतजार है.