यह ख़बर 09 फ़रवरी, 2014 को प्रकाशित हुई थी

पहचान खो रहा है मरू महोत्सव

जैसलमेर:

पर्यटन उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि करीब साढ़े तीन दशक पूर्व शुरू हुए विश्व विख्यात मरू महोत्सव में पर्यटकों को लुभाने के लिए नए कार्यक्रमों और कार्यक्रम स्थल में बदलाव नहीं करने के कारण यह 'डेजर्ट फेस्टिवल' अपनी पहचान खो रहा है।

पर्यटन से जुड़े लोगों एवं पर्यटकों का कहना है कि 'डेजर्ट फेस्टिवल' की ओर सैलानियों का रुझान भी कम होने लगा है।

पर्यटन विभाग के सहायक निदेशक, पर्यटन, विकास पण्ड्या ने बताया कि समय-समय पर बदलाव व नए कार्यक्रम शामिल किए जाते हैं। हालांकि यहां की संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों को बंद नहीं किया जा सकता हैं।

उन्होंने कहा कि सैलानी जैसलमेर की संस्कृति से ही रूबरू होने के लिए आते हैं। फिर भी इस बार मरू महोत्सव में नए कार्यक्रम व नए कार्यक्रम स्थलों को जोड़ने का प्रयास किया जाएगा।

जैसलमेर पर्यटन व्यवसाय महासंघ के अध्यक्ष जितेन्द्र सिंह का कहना है कि 30 सालों से आयोजित हो रहे इस मेले के कार्यक्रमों की जो रूपरेखा उस समय तैयार की गई थी, वह आज तक बरकरार है। पर्यटन विभाग ने कभी भी इसे बदलने की कोशिश नहीं की। यहां तक कि कार्यक्रम स्थलों में भी बदलाव नहीं किया गया है।

उन्होंने कहा कि लकीर का फकीर बनकर वही पुराने आयोजन करवाए जा रहे हैं। मरू महोत्सव में ऊंट से संबंधित विभिन्न प्रतियोगिताएं, राजस्थानी वेशभूषा व रहन सहन से संबंधित प्रतियोगिताएं और राजस्थानी लोक संगीत से सजी संध्याएं आयोजित होती है। वर्षों से हो रही इन प्रतियोगिताओं के लिए रुझान भी कम हो रहा है। एक मात्र 'मिस्टर डेजर्ट' प्रतियोगिता में अभी तक प्रतिभागियों की संख्या अधिक रहती है। शेष सभी प्रतियोगिताओं में प्रतियोगियों की संख्या बहुत ही कम हो गई है।

पर्यटन व्यवसायी मेघराज परिहार ने कहा कि मरू महोत्सव के कार्यक्रमों में अब तक जितनी बार भी थोड़ा बहुत बदलाव हुआ है वह केवल खानापूर्ति ही है। बदलाव के नाम पर मुख्य रूप से शोभायात्रा रवाना होने का स्थान परिवर्तन होता है। कभी गोपा चौक से तो कभी अखे पोल से शोभायात्रा रवाना होती है। इसके अलावा बदलाव के नाम पर एक दो कार्यक्रम जोड़ दिए जाते हैं या फिर बाहरी राज्यों के लोक कलाकारों को बुलाया जाता है।

जैसलमेर भ्रमण पर आए पर्यटक अजय यादव ने बताया कि मरू महोत्सव के दौरान विदेशी सैलानियों के साथ-साथ देसी सैलानी भी बड़ी तादाद में आते हैं। ऐसे में उन्हें ध्यान में रखते हुए कुछ नए कार्यक्रम जोड़े जा सकते हैं। राजस्थानी सांस्कृतिक कार्यक्रम व कवि सम्मेलन आदि शामिल किए जा सकते हैं।

उन्होंने कहा कि इसके अलावा ऐसी प्रतियोगिताएं आयोजित की जाए जिसमें सैलानी अधिक से अधिक हिस्सा ले सकें। खासतौर पर सैलानियों के बीच प्रतियोगिताएं आयोजित करवाई जाए।

जैसलमेर निवासी हरीश चन्द्र ने बताया कि स्वर्णनगरी में आयोजित होने वाले मरू महोत्सव में अब तक कभी भी स्थान परिवर्तन नहीं हुआ। आयोजन स्थल वही के वही हैं। सम के धोरे, पूनम स्टेडियम व डेडानसर मेला मैदान। सम के धोरों के साथ-साथ खुहड़ी के धोरों पर आयोजन हो सकते हैं।

चन्द्र के अनुसार एक दिन के कार्यक्रम सम के धोरों पर तो एक दिन के कार्यक्रम खुहड़ी के धोरों पर किए जा सकते हैं। सम के धोरों पर सांस्कृतिक संध्या होती है तो वहीं खुहड़ी के धोरों पर उंट की दौड़ एवं अन्य प्रतियोगिताएं आयोजित की जा सकती है। उन्होंने सुझाव दिया कि पूनम स्टेडियम में आयोजित होने वाली दो सांस्कृतिक संध्या में एक का स्थान बदला जा सकता हैं, जिससे अन्य क्षेत्र पर्यटन के रूप में विकसित होंगे और पर्यटन मानचित्र पर उभरेंगे।

टूरिस्ट कन्फेडेरेशन सोसायटी के अध्यक्ष पृथ्वीराज ने बताया कि पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मरू महोत्सव में बदलाव जरूरी है। कार्यक्रम बदले जाएं और कार्यक्रम स्थल भी। कार्यक्रम स्थल विकसित किए जाने पर नए क्षेत्र मिलेंगे और वे पर्यटन मानचित्र पर उभरेंगे जिससे वहां के लोगों को रोजगार भी मिलेगा।

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उन्होंने कहा कि महोत्सव के कई सालों से चल रहे कार्यक्रमों में बदलाव नहीं होने के कारण स्थानीय लोगों की भागीदारी लगातार कम हो रही है। इसे रोकने के लिए कार्यक्रमों तथा कार्यक्रम स्थल में बदलाव करने की जरूरत है ताकि स्थानीय नागरिकों और सैलानियों के सामने कार्यक्रम एवं स्थलों के विकल्प होंगे। उन्होंने कहा कि मरू महोत्सव को अधिक स्थान पर आयोजित करने से सैलानियों की ठहरने की अवधि बढ़ेगी और पर्यटन क्षेत्र को जबरदस्त लाभ मिलेगा।