मंत्री ने किया खुलासा, मध्यप्रदेश सरकार 96 लाख फर्जी गरीबों को पीडीएस का राशन बांट रही

मध्यप्रदेश में लगभग पांच करोड़ छह लाख से ज्यादा हितग्राहियों को एक रुपये किलोग्राम के हिसाब से गेहूं और चावल दिया जा रहा

मंत्री ने किया खुलासा, मध्यप्रदेश सरकार 96 लाख फर्जी गरीबों को पीडीएस का राशन बांट रही

प्रतीकात्मक तस्वीर

भोपाल:

मध्यप्रदेश सरकार 96 लाख फर्ज़ी गरीबों को पीडीएस का राशन बांट रही है. जांच के बाद ये खुलासा सूबे के नए खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री बिसाहूलाल सिंह ने किया है. ये हालात तब हैं जब राज्य ने उन 36 लाख 86 हजार जरूरतमंदों को राशन देने का निर्णय लिया है जो राशन के पात्र तो थे, लेकिन इनके पास पात्रता पर्ची नहीं थी, जिस कारण ये सरकार राशन नहीं ले पाते थे.
       
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत मध्यप्रदेश की कुल आबादी का 75 फीसद हिस्सा खाद्यान्न सुरक्षा के दायरे में आता है. राज्य में 25 हजार 490 राशन दुकानों के माध्यम से साल 2011 की जनगणना के मुताबिक एक करोड़ 17 लाख यानी लगभग पांच करोड़ छह लाख से ज्यादा हितग्राहियों को एक रुपये किलोग्राम के हिसाब से गेहूं और चावल मुहैया कराया जा रहा है.
    
लेकिन अब इस योजना में बड़ी गड़बड़ी का पता लगा है, सरकार कह रही है 96 लाख अपात्र सरकारी राशन ले रहे थे. वहीं कांग्रेस का आरोप है सरकार कोरोना में भी भ्रष्टाचार कर रही है. खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री बिसाहू लाल सिंह ने कह करीब 96 लोग ऐसे हैं जो अपात्र हैं. अपात्र होने के कारण तीन है. एक तो किसी व्यक्ति का जो राशन कार्ड में नाम जुड़ा है उसका कहीं शादी हो गया औऱ नाम नहीं कटा. कुछ बुजुर्ग लोग जिनकी मौत हो गई. नाम नहीं कटा.

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वहीं पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने कहा सरकार ने 2015 से राशन पर्ची बनाना बंद कर दिया. नरेन्द्र मोदी जब से आए हैं गरीबी बढ़ी है 95 लाख गरीब लिस्ट से हटा दिए, लगभग 60 प्रतिशत गरीबों को राशन नहीं देना चाहती है सरकार फर्जी नामों को देना चाहते हैं ... हर तरीके का घोटाला कोरोना में भ्रष्टाचार करना इनकी आदत बन गई है.

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सरकार के मुताबिक राज्य के 36 लाख ऐसे गरीब हैं जिन्हें गरीब होने के बावजूद सरकारी राशन नहीं मिल पाता है. वहीं 96 लाख ऐसे गरीब हैं जिनके नाम राशन कार्ड में जुड़े हुये हैं मगर वो अलग अलग कारण से सरकारी राशन पाने के लिए पात्र नहीं हैं. अगले महीने तक पात्र गरीबों के नाम जोड़ दिये जायेंगे और पंचायत स्तर पर सर्वे कराकर फर्जी नाम काटे जाएंगे.  

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साल 1965 से भारत सरकार, राज्य सरकारों के साथ सामंजस्य बना कर रबी और खरीफ़ में खाद्यान्न की खरीदी करती है, इसी से सार्वजनिक वितरण प्रणाली की नींव रखी गई, अब वन नेशन वन राशन कार्ड की योजना बन रही है लेकिन मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य में अगर अपात्रों की तादाद लाखों में तो जाहिर है अभी बहुत काम होना बाकी है.