मनरेगा की स्टेटस रिपोर्ट : असम में 19 दिन, तो पंजाब में 20 दिन मिला रोज़गार

प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली:

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना यानी मनरेगा के नौ साल सोमवार को पूरे हो गए। योजना को बेहतर बनाने के दावों के बीच इसको लेकर बड़े सवाल उठने लगे हैं। सवाल योजना की फंडिंग को लेकर उठ रहे हैं और ज़रूरतमंदों को काम न मिलने को लेकर बढ़ रही शिकायतों को लेकर भी। इसका असर यह हुआ है कि गरीब ज़रूरतमंद परिवारों तक इस योजना का फायदा नहीं पहुंच पा रहा है और साल में मिलने वाले रोज़गार के अवसर लगातार घटते जा रहे हैं।

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के पास मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल 2014 से जनवरी 2015 के बीच ज़रूरतमंद परिवारों को औसतन 34 दिन का रोज़गार ही मिल पाया है, जो पिछले नौ साल में सबसे कम है। लेकिन अगर राज्य स्तर के आंकड़ों को अगर देखा जाए तो ज़मीन पर हालात कितने खराब हो चुके हैं, इसका साफ अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश के कई महत्वपूर्ण राज्यों में गरीब ज़रूरतमंदों को राष्ट्रीय औसत से भी कम रोज़गार मिल पाया है। असम में इस साल औसतन ज़रूरतमंदों को सबसे कम 19.68  दिन का रोज़गार ही मिल पाया है। इसके बाद नंबर आता है पंजाब का जहां गरीबों को जनवरी 2015 तक सिर्फ 20.42 दिन का औसत रोज़गार ही मिल पाया है। जबकि उत्तराखंड में औसतन 23.65 दिन, हरियाणा में 24.69 दिन, उत्तर प्रदेश में 27.52 दिन, केरल में 27.81, पश्चिम बंगाल में 27.66 दिन और जम्मू-कश्मीर में औसतन सिर्फ 29.02 का रोज़गार ही मिल पाया है।

राष्ट्रीय औसत से कम रोज़गार पैदा करने वाले राज्यों की सूची में ओडिशा भी शामिल है। यहां ज़रूरतमंदों को जनवरी 2015 तक औसतन 30.17 दिन का रोज़गार ही मिल पाया है, जबकि गुजरात में 31.73 दिन और बिहार सिर्फ 32.38 का औसत रोज़गार पैदा कर पाए हैं। वहीं सबसे कम दिन का रोज़गार अरुणाचल प्रदेश में रिकॉर्ड किया गया है, जहां अब तक सिर्फ औसतन 10.07 दिन का रोज़गार ही पैदा हो पाया है।

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मनरेगा योजना को लागू करने को लेकर उठ रहे इन सवालों के बीच ग्रामीण विकास मंत्री बीरेंद्र सिंह ने सोमवार को एलान किया कि भारत सरकार इस योजना के तहत स्थायी और टिकाऊ बुनियादी ढांचा के निर्माण को प्राथमिकता देगी। लेकिन इन आंकड़ों से साफ है कि भारत सरकार को इस योजना को लागू करने में आ रही व्यवहारिक समस्याओं को दूर करने के लिए पहले गंभीरता से पहल करना होगा। गावों में इस महात्वाकांक्षी योजना को लागू करने के लिए तैयार प्रशासनिक ढ़ांचे की खामियों को जब तक दुरुस्त नहीं किया जाता, इसका फायदा करोड़ों ज़रूरतमंदों तक पहुंचाना एक चुनौती बना रहेगा।