पीएम मोदी-नवाज शरीफ की मुलाकात और 1965 की 'जीत' का जश्न

पीएम मोदी-नवाज शरीफ की मुलाकात और 1965 की 'जीत' का जश्न

रूस में मोदी-शरीफ की मुलाकात

उफा (रूस):

रूस के उफा शहर में जब शुक्रवार को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच मुलाकात हुई तो एक बार फिर उम्मीदों का दीया जल उठा। हर बार दोनों देशों के शीर्ष नेता मुलाकात करते हैं, चाय पीते हैं और रिश्तों को बेहतर बनाने पर चर्चा करते हैं। इस बार भी जब बातचीत तय समय से ज्यादा देर तक चली तो न्यूज़ चैनल इसे फ्लैश करने से खुद को रोक नहीं पाए।
 
लेकिन मुलाकात के दौरान 1965 के भारत-पाक युद्ध का ज़िक्र नहीं हुआ जिसके 50वें साल के जश्न की तैयारी भारत में चल रही है। गौरतलब है कि भारत सरकार ने निर्देश दिए हैं कि 1 से 23 सितंबर तक '65 की जीत का जश्न' मनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएं, जिनमें न सिर्फ शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाए, बल्कि तीनों सेनाओं की जीत का जश्न भी मनाया जाए।
 
यह बात दीगर है कि पाकिस्तान ने भारत सरकार की इस घोषणा पर नाराज़गी जताते हुए कहा था कि नरेंद्र मोदी सरकार अपनी 'ताकत' की इस तरह नुमाइश कर दोनों देशों के बीच बातचीत की गुंजाइश को और कम कर रही है, लेकिन इसके कुछ ही दिन बाद दोनों देशों के प्रधानमंत्री रूस में मिले, जहां अगले साल सार्क सम्मेलन के लिए पाकिस्तान आने के न्योते को पीएम मोदी स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन क्या '65 के युद्ध में भारत की 'जीत' को पाकिस्तान अब तक स्वीकार कर पाया है...?
 
अंग्रेज़ी दैनिक 'इंडियन एक्सप्रेस' में छपे एक आलेख के मुताबिक रक्षा मंत्रालय का 1965 युद्ध का आधिकारिक विवरण कहता है - भारतीय थलसेना की 'गलत रणनीति' की वजह से कई 'महत्वहीन प्रहार' हुए, जिन्होंने हर मोर्चे पर 'अवरोध' पैदा किया।  '65 के भारत-पाक युद्ध का छोटा-सा फ्लैशबैक ये है -
 
5 अगस्त को करीब 30,000 पाकिस्तानी सैनिक LoC पार कर कश्मीर में घुस आए थे। इसके बाद पाक सेना ने 'ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम' शुरू किया, जिसका मकसद जम्मू के अखनूर जिले पर कब्ज़ा करना था। 6 सितंबर को भारतीय सेना ने जवाबी हमले के साथ युद्ध की घोषणा कर दी, और वाघा बॉर्डर को लांघ लिया। अलग-अलग मोर्चों पर लड़ते हुए भारत ने पाकिस्तान के करीब 1,800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया, जबकि भारत के 550 वर्ग किलोमीटर पर पाकिस्तानी कब्ज़ा हो गया। विश्व के दूसरे देशों के हस्तक्षेप के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की घोषणा हुई। ताशकंद में तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री और पाक जनरल अयूब खान के बीच समझौता हुआ, जिसके बाद दोनों देश अप्रैल, 1965 की सीमाओं की स्थिति को बनाए रखने पर राजी हो गए।
 
अब, इसके 50 साल बाद दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच एक और मुलाकात हुई है, इस बातचीत में न कश्मीर की बात हुई, न '65 के युद्ध का ज़िक्र हुआ और न उसके 50 साल पूरे होने पर मनाए जाने वाले जश्न का। इस भेंट में शांति और तरक्की पर ज़ोर दिया गया। उम्मीद की जा सकती है कि आगे भी दोनों देश बीते कल को भूलकर भविष्य के साथ हाथ मिलाने पर ज़्यादा ध्यान देंगे।


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