'एक प्रार्थी' से लेकर 'मदर टेरेसा की परछाईं' बनने तक का सिस्टर निर्मला का सफरनामा

'एक प्रार्थी' से लेकर 'मदर टेरेसा की परछाईं' बनने तक का सिस्टर निर्मला का सफरनामा

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

  • मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी की संस्थापक मदर टेरेसा ने वर्ष 1997 में अपनी मौत से लगभग छह महीने पहले बीमारी के दौरान ही सिस्टर निर्मला को अपना उत्तराधिकारी चुन लिया था।
  • सिस्टर निर्मला तकरीबन पांच साल तक, यानी वर्ष 2002 तक मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी की सुपीरियर जनरल रहीं।
  • मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी भारत सहित दुनिया के कई देशों में गरीबों और ज़रूरतमंदों की सेवा करती है और इसकी स्थापना मदर टेरेसा ने की थी।

सिस्टर निर्मला का जन्म तथा शिक्षा-दीक्षा
  • नेपाली मूल के हिन्दू ब्राह्मण परिवार में 23 जुलाई, 1934 को मौजूदा झारखंड के रांची शहर में जन्मी सिस्टर निर्मला के पिता ब्रिटिश सेना में अफसर थे।
  • सिस्टर निर्मला ने शुरुआती शिक्षा पटना के क्रिश्चियन मिशनरीज़ में हासिल की थी, लेकिन उन्होंने 24 साल की उम्र तक अपना धर्म नहीं बदला था।
  • 24 साल की उम्र में जब वह मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी और मदर टेरेसा के संपर्क में आईं, उन्होंने रोमन कैथोलिक धर्म अपनाया।

मदर टेरेसा की करीबी
  • सिस्टर निर्मला ने पोलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन किया और बाद में मदर टेरेसा के कहने पर उन्होंने लॉ की भी पढ़ाई की, और बहुत जल्द मदर टेरेसा की करीबी हो गईं।
  • मदर टेरेसा को सिस्टर निर्मला की काबिलियत पर बेहद भरोसा था, शायद इसीलिए मदर टेरेसा ने विदेशों - पनामा, न्यूयॉर्क और काठमांडू - में मिशनरीज़ की शाखा खोलने की ज़िम्मेदारी सिस्टर निर्मला की दी थी।
  • अमेरिका और यूरोप में मिशनरीज़ की शाखाओं को खोलने और उन्हें फंक्शनल करने की ज़िम्मेदारी भी सिस्टर निर्मला ने निभाई थी।

मदर टेरेसा की उत्तराधिकारी
  • सिस्टर निर्मला ने वर्ष 1976 में मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी के मननशील शाखा की शुरुआत की और लगभग 19 साल तक उसकी प्रमुख रहीं।
  • वर्ष 1997 में मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी की सुपीरियर जनरल चुने जाने के बाद उन्होंने अमेरिकी चैनल CNN से बातचीत के दौरान कहा, "मैं इस वक्त एक सपने की दुनिया में हूं, यह एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है... अगर इस वक्त मैं इसे अपने नजरिये से देखूंगी, तो डर जाऊंगी, लेकिन अगर ईश्वर के नजरिये से देखूं, तो लगता है, मैं इस ज़िम्मेदारी को निभा पाऊंगी..."
  • सिस्टर निर्मला के जीवन में मदर टेरेसा की अमिट छाप थी। उन्होंने कई बार कहा था कि मिशनरीज़ से जुड़ने का उनका एकमात्र उद्देश्य मदर टेरेसा द्वारा किए जा रहे कामकाज को आगे बढ़ाना है।

मदर टेरेसा की अमिट छाप
  • मदर टेरेसा के साथ काम करने के दौरान उनके भीतर लोगों की सेवा करने की इच्छा बढ़ती गई।
  • मदर टेरेसा के साथ जुड़ी एक घटना उन्होंने कैथोलिक वर्ल्ड चैनल के साथ बांटते हुए कहा था, "जब मैं यहां आई थी, तब सिर्फ एक प्रार्थी थी और मुझे यहां आए हुए एक साल भी नहीं हुआ था, और मैं बीमार पड़ गई, तब मदर मुझे अपने कमरे में ले गईं और मुझे अपने बिस्तर पर सुला दिया और खुद पूरी रात टेबल पर सोती रहीं... क्या आप इस बात को समझ सकते हैं...? मैं इसे जीवन-भर नहीं भूल सकती..."
  • वर्ष 2009 में भारत सरकार ने सिस्टर निर्मला को देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से नवाज़ा और वर्ष 2009 में वह पूरी तरह रिटायर हो गईं, लेकिन मिशनरीज़ की सभी शाखाओं की देखरेख करती रहीं।

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