MP का सियासी घमासान: क्या गिरेगी या बचेगी कमलनाथ सरकार? ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस्तीफे के बाद अब आगे होगा क्या-क्या

सत्तासीन कांग्रेस के कांग्रेस के 114 में से 22 विधायकों ने इस्तीफे दे दिए हैं, और अगर इन्हें स्वीकार कर लिया गया, तो कमलनाथ सरकार का गिर जाना तय है, क्योंकि उस स्थिति में 230-सदस्यीय मध्य प्रदेश विधानसभा की प्रभावी सदस्य संख्या 206 रह जाएगी (दो सदस्यों के देहावसान के चलते इस वक्त यह संख्या 228 है), और बहुमत के लिए आवश्यक संख्या 104 रह जाएगी.

MP का सियासी घमासान: क्या गिरेगी या बचेगी कमलनाथ सरकार? ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस्तीफे के बाद अब आगे होगा क्या-क्या

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ. (फाइल फोटो)

खास बातें

  • मध्य प्रदेश का सियासी घमासान
  • क्या गिरेगी या बचेगी कमलनाथ सरकार?
  • कांग्रेस के 114 में से 22 विधायकों ने इस्तीफे दे दिए हैं
भोपाल:

मध्य प्रदेश की राजनीति में कई दिन से उबाल आ रहा है, और सियासी पारा दिल्ली तक को खौलाए हुए है. देश के सबसे अहम सूबों में से एक मध्य प्रदेश में सिर्फ सवा साल पहले बमुश्किल बन पाई सरकार पर अभूतपूर्व संकट छाया हुआ है, और उसके गिरने को महज़ औपचारिकता माना जा रहा है. सत्तासीन कांग्रेस के कांग्रेस के 114 में से 22 विधायकों ने इस्तीफे दे दिए हैं, और अगर इन्हें स्वीकार कर लिया गया, तो कमलनाथ सरकार का गिर जाना तय है, क्योंकि उस स्थिति में 230-सदस्यीय मध्य प्रदेश विधानसभा की प्रभावी सदस्य संख्या 206 रह जाएगी (दो सदस्यों के देहावसान के चलते इस वक्त यह संख्या 228 है), और बहुमत के लिए आवश्यक संख्या 104 रह जाएगी.

इस्तीफों के मंज़ूर हो जाने पर कांग्रेस की सदस्य संख्या 92 रह जाएगी, और BJP के पास 107 सदस्य हैं. इनके अलावा विधानसभा में चार निर्दलीय सदस्य हैं, बहुजन समाज पार्टी (BSP) के दो विधायक हैं तथा समाजवादी पार्टी (SP) का एक विधायक है, और इन सातों ने फिलहाल कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को समर्थन दिया हुआ है. सो, इस्तीफों के मंज़ूर हो जाने की स्थिति में भी कांग्रेस गठबंधन की ताकत 99 सीटों पर सिमटकर रह जाएगी, जो बहुमत के लिए आवश्यक संख्या से कम होगा.

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एक अहम तथ्य यह है कि 22 विधायकों के इस्तीफे मंज़ूर हो जाने के बाद भी कमलनाथ सरकार खुद-ब-खुद नहीं गिर सकती. सरकार के गिरने के लिए ज़रूरी है कि कमलनाथ खुद इस्तीफा दें, या फ्लोर टेस्ट में वह बहुमत साबित करने में नाकाम रहें. सो, अब विधानसभा स्पीकर एन.पी. प्रजापति की भूमिका बेहद अहम हो गई है, क्योंकि अनुच्छेद 190 में इस्तीफों को मंज़ूरी देने या नहीं देने का अधिकार स्पीकर को ही है.

बताया गया है कि विधानसभा सचिवालय को सभी 22 विधायकों के इस्तीफे मिल चुके हैं, लेकिन स्पीकर एन.पी. प्रजापति ने बुधवार को NDTV से कहा, "सभी विधायकों से व्यक्तिगत रूप से मिलने के बाद और तय प्रक्रिया के हिसाब से ही इस्तीफों पर फैसला लेंगे... इसका उन्हें संवैधानिक अधिकार है... जब तक इस्तीफा स्वीकार न हो, उनकी विधायकी बरकरार रहेगी..."

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यदि स्पीकर इस्तीफे स्वीकार नहीं करते हैं, तो बहुमत का आंकड़ा 228 सदस्यों के हिसाब से ही तय किया जाएगा, यानी बहुमत के लिए आवश्यक सदस्य संख्या 115 ही रहेगी, लेकिन यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक स्पीकर को सात दिन में फैसला लेना अनिवार्य है, परंतु वे सात दिन विधायकों की अपने सामने कराई जाने वाली परेड से शुरू होंगे या इस्तीफे की तारीख से शुरू माने जाएंगे, यह तय करने का हक भी स्पीकर को ही है.

वैसे भी, स्पीकर इस्तीफा देने वाले सभी विधायकों को अपने सामने उपस्थित होने के लिए कह सकते हैं, और इस्तीफे के सामान्य परिस्थितियों में स्वेच्छा से दिए गए होने को लेकर विधानसभा अध्यक्ष का संतुष्ट होना ज़रूरी है. यदि अध्यक्ष को लगता है कि इस्तीफा दबाव डालकर दिलवाया गया है, तो वह प्रत्येक सदस्य से बात कर सकते हैं या प्रत्येक को अपने सामने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए भी कह सकते हैं. सो, अभी यह नहीं कहा जा सकता कि इस्तीफों का ऊंट किस करवट बैठेगा.

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इसके बाद इस परिदृश्य में राज्यपाल की भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण है. ऐसी चर्चा चल रही है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) को सत्ता पर काबिज होने से रोकने के लिए कांग्रेस अपने शेष सभी सदस्यों से भी इस्तीफा दिलवा सकती है, ताकि राज्यपाल विधानसभा ही भंग कर दें. ऐसी स्थिति में अनुच्छेद 189 (2) कहता है - रिक्तता या अनुपस्थिति का असर फैसले की संवैधानिकता पर नहीं पड़ेगा, यानी सामूहिक इस्तीफा सही विकल्प नहीं है.

अब राज्यपाल पर निर्भर है कि वह सदन को भंग कर मध्यावधि चुनाव की सिफारिश करते हैं, या रिक्त सीटों पर उपचुनाव की. बताया जा रहा है कि राज्यपाल की पहली कोशिश सभी दलों से बात कर फ्लोर टेस्ट कराकर निर्वाचित विधानसभा को भंग होने से बचाने की है, और अगर उससे बात नहीं बनी, तो अनुच्छेद 356 के तहत वह सूबे में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की सिफारिश कर सकते हैं.

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अब एक परिदृश्य यह है कि राज्यपाल इस्तीफों को मंज़ूरी देकर रिक्त सीटों पर उपचुनाव करवाने की सिफारिश करें. माना जा रहा है कि अब तक कांग्रेस को समर्थन दे रहे निर्दलीय, BSP और SP के सात सदस्य BJP के साथ जा सकते हैं, सो, उस स्थिति में उपचुनाव होने पर (बहुमत का आंकड़ा बढ़कर वापस 116 हो जाएगा) BJP को सिर्फ दो सीटों पर जीतना पर्याप्त रहेगा, जबकि कांग्रेस को सभी 24 सीटें जीतनी होंगी, जो लगभग असंभव है.

इस्तीफों के मंज़ूर होने के बाद उपचुनाव होने पर सबसे दिलचस्प मुकाबला ग्वालियर-चंबल में होगा, जहां 15 सीटें खाली हो जाएंगी. यहां से BJP के नरेन्द्र सिंह तोमर-नरोत्तम मिश्रा-जयभान पवैया जैसे कद्दावर नेता आते हैं, जो सालों से सिंधिया विरोधी रहे हैं. ऐसे में मुकाबला बेहद रोचक होगा. मालवा-निमाड़ भी BJP का गढ़ रहेगा, जहां से चार सीटों पर उपचुनाव होगा, और बुंदेलखंड और विंध्य से एक-एक सीट पर चुनाव हो सकता है.

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अब एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि मध्य प्रदेश विधानसभा का सत्र 16 मार्च को राज्यपाल के अभिभाषण से शुरू होने जा रहा है, जिसमें 17 मार्च को दिवंगत विधायकों के निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित कर कार्यवाही को स्थगित कर दिया जाएगा, और फिर 18 मार्च को कमलनाथ सरकार वित्तवर्ष 2020-21 का बजट और लेखानुदान पेश करेगी. इस सत्र में 19 मार्च सबसे अहम दिन होगा, जब राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा होगी, क्योंकि इस चर्चा के बाद ज़रूरी होने पर वोटिंग करवाई जा सकती है. कमलनाथ सरकार की ताकत की असली परीक्षा इसी दिन होगी, और कांग्रेस इस सत्र को लम्बा खींचने की भरसक कोशिश करेगी, ताकि उसे समय मिल सके, और इस्तीफा दे चुके ज़्यादा से ज़्यादा विधायकों को मनाकर वापस अपने खेमे में लाया जा सके.

वैसे, एक अहम जानकारी यह भी है कि परम्परा के मुताबिक, सत्र शुरू होने पर राज्यपाल का अभिभाषण सबसे पहले होगा, लेकिन ऐसा कोई नियम नहीं है कि फ्लोर टेस्ट अभिभाषण से पहले नहीं करवाया जा सकता.

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