खास बातें
- प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने एक समाचार चैनल के स्टिंग ऑपरेशन को रिकॉर्ड पर लेते हुए अखिलेश यादव सरकार को नोटिस जारी किया। राज्य सरकार को 17 अक्तूबर तक इसका जवाब देना है।
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कथित रूप से राजनीतिक दबाव के कारण मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक हिंसा पर काबू पाने में उत्तर प्रदेश पुलिस की निष्क्रियता के आरोपों को ‘बहुत गंभीर’ बताते हुए गुरुवार को राज्य सरकार से इस मामले में स्पष्टीकरण मांगा।
प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने एक समाचार चैनल के स्टिंग ऑपरेशन को रिकॉर्ड पर लेते हुए अखिलेश यादव सरकार को नोटिस जारी किया। राज्य सरकार को 17 अक्तूबर तक इसका जवाब देना है।
इस स्टिंग ऑपरेशन में कथित रूप से दिखाया गया है कि पुलिस ने राजनीतिक दबाव के कारण हिंसा पर काबू पाने के लिए तत्परता से कार्रवाई नहीं की।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘यह बहुत ही गंभीर आरोप हैं। हम इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। इस पर राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने दिया जाए।’ न्यायालय ने इन दंगों की केन्द्रीय जांच ब्यूरो या विशेष जांच दल या न्यायिक आयोग से स्वतंत्र जांच कराने के लिए दायर याचिकाओं पर भी राज्य सरकार से जवाब मांगा है।
न्यायालय ने इन दंगों के सिलसिले में अब तक दर्ज प्राथमिकियों के विवरण के साथ ही इस सिलसिले में गिरफ्तार व्यक्तियों का विवरण भी मांगा है।
न्यायालय ने कहा कि उसकी मुख्य चिंता फंसे हुए लोगों को घर पहुंचाने की है।
राज्य सरकार ने न्यायालय को सूचित किया कि प्रभावित इलाके में राहत और पुनर्वास काम चल रहा है और अब तक 20 हजार लोगों को उनके घर वापस पहुंचाया जा चुका है।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता एक वकील के इस कथन पर नाराजगी व्यक्त की कि वह मुजफ्फरनगर गया था जहां उसने जनता से झूठ कहा था कि वह इन सांप्रदायिक झगड़ों की जांच के लिए शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय समिति का सदस्य है।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘हम इस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। कैसे वह हमारे नाम का इस्तेमाल कर सकता है।’