नानाजी देशमुख, एक मराठी ब्राह्मण जो यूपी के चित्रकूट के गांवों के लिए जिया

नानाजी ने अपनी कर्मभूमि भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट को बनाया. नानाजी का मानना था कि जब अपने वनवासकाल के प्रवास के दौरान भगवान राम चित्रकूट में आदिवासियों तथा दलितों के उत्थान का कार्य कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं.

नानाजी देशमुख, एक मराठी ब्राह्मण जो यूपी के चित्रकूट के गांवों के लिए जिया

नानाजी देशमुख के चित्र पर फूल अर्पित करते पीएम नरेंद्र मोदी.

चित्रकूट:

प्रख्यात समाजसेवी नानाजी देशमुख का जन्म महाराष्ट्र के परभणी जिले में 11 अक्टूबर सन 1916 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. और उन्हें भारत सरकार ने सामाजिक कार्यों के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया था. "मैं अपने लिए नहीं, अपनों के लिए हूं", इस लक्ष्य वाक्य पर चलते हुए महाराष्ट्र के एक समाजसेवी ने भारत के उन कई गांवों की तस्वीर बदल दी जहां यदि वे न होते तो शायद आज भी विकास की लहर कोसों दूर होती. नानाजी ने अपनी कर्मभूमि भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट को बनाया. नानाजी का मानना था कि जब अपने वनवासकाल के प्रवास के दौरान भगवान राम चित्रकूट में आदिवासियों तथा दलितों के उत्थान का कार्य कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं. अतः नानाजी चित्रकूट में ही जब पहली बार 1989 में आए तो यहीं बस गए.

स्वयं शिक्षित होने  के लिए नानाजी ने सब्जी बेची 
बचपन से किशोरावस्था के बीच उनके मन में भारत के गाँवों की दुर्दशा ने गहरी छाप छोड़ी थी. इसलिए नानाजी गांवों के विकास और लोगों के उत्थान के लिए चिंतित रहते थे. चूंकि नानाजी का बचपन काफी अभावों में बीता था इसलिए उनके अंदर दबे पिछड़े गरीब लोगों के प्रति दया का भाव था. स्वयं शिक्षित होने  के लिए नानाजी ने सब्जी बेची. 

सन 1940 में हेडगेवार के निधन के बाद आरएसएस को खड़ा किया
आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से नानाजी के पारिवारिक सम्बन्ध थे. नानाजी की उभरती सामाजिक प्रतिभा को पहचानते हुए हेडगेवार ने उन्हें संघ की शाखा में आने के लिए कहा. सन 1940 में हेडगेवार के निधन के बाद आरएसएस को खड़ा करने की ज़िम्मेदारी नानाजी पर आ गई और इस संघर्ष को अपने जीवन का मूल उद्देश्य बनाते हुए नानाजी ने अपना पूरा जीवन संघ के नाम कर दिया. 

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घूम घूमकर युवाओं को आरएसएस से जुड़ने के लिए प्रेरित किया
उन्होंने महाराष्ट्र सहित देश के विभिन राज्यों में घूम घूमकर युवाओं को आरएसएस से जुड़ने के लिए प्रेरित किया तथा इस कार्य में वे काफी हद तक सफल भी हुए. आरएसएस प्रचारक के रूप में पहली बार आगरा प्रवास पर आए नानाजी देशमुख की मुलाकात पण्डित दीनदयाल उपाध्याय से हुई. आगरा के बाद नानाजी गोरखपुर गए और वहां दिनरात मेहनत करते हुए आरएसएस की शाखाएं खड़ी कीं. यहां तक कि नानाजी को गोरखपुर में ठहरने हेतु (संघ के पास उस समय संगठन संचालन के लिए पर्याप्त धन नहीं था) आश्रम संचालक बाबा राघवदास के लिए भोजन तक बनाना पड़ा था. 

भूमिगत होकर इन पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन कार्य जारी रखा 
आज देश भर में सरस्वती शिशु मन्दिर नामक स्कूलों की स्थापना नानाजी ने सर्वप्रथम गोरखपुर में ही की थी. 1947 में आरएसएस ने पाञ्चजन्य नामक दो साप्ताहिक स्वदेश हिंदी समाचार पत्र निकालने की शुरुआत की. अटल बिहारी बाजपेयी को सम्पादन, दीनदयाल उपाध्याय को मार्गदर्शन और नानाजी को प्रबंध निदेशक की जिम्मेदारी सौंपी गई. 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया फिर भी भूमिगत होकर इन पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन कार्य जारी रहा. 

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नानाजी ने 1957 तक उत्तर प्रदेश के हर जिले में जनसंघ की इकाइयां स्थापित कर दीं
आरएसएस से प्रतिबंध हटने के बाद भारतीय जनसंघ की स्थापना का निर्णय हुआ जिसके विस्तार के लिए नानाजी को उत्तर प्रदेश भेजा गया. अपनी सांगठनिक कौशल की मिसाल कायम करते हुए नानाजी ने 1957 तक उत्तर प्रदेश के हर जिले में जनसंघ की इकाइयां स्थापित कर दीं. जनसंघ उत्तरप्रदेश की प्रमुख राजनीतिक शक्ति का केंद्रबिंदु बन गया. नानाजी ने राम मनोहर लोहिया की मुलाकात दीनदयाल उपाध्याय से करवाई जिसके बाद जनसंघ और समाजवादी विचारधारा ने कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी कर दी. 

जयप्रकाश नारायण (जेपी) को सुरक्षित बाहर निकाला
उत्तर प्रदेश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार के गठन में विभिन्न राजनीतिक दलों को एकजुट करने में नानाजी का महत्वपूर्ण योगदान रहा. जेपी आंदोलन के समय जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण के ऊपर पुलिस का लाठीचार्ज हुआ तब नानाजी ने साहस का परिचय देते हुए जयप्रकाश नारायण (जेपी) को सुरक्षित बाहर निकाल लिया. जनता पार्टी के संस्थापकों में नानाजी प्रमुख थे. 
VIDEO: कांग्रेसियों के भी आरएसएस से संबंध

यूपी के बलरामपुर से लोकसभा सांसद चुने गए
कांग्रेस को सत्ता से हटा कर जनता पार्टी अस्तित्व में आई. आपातकाल हटने के बाद जब चुनाव हुआ तो नानाजी देशमुख यूपी के बलरामपुर से लोकसभा सांसद चुने गए और उन्हें मोरारजी मंत्रिमंडल में शामिल होने का न्योता दिया गया लेकिन नानाजी देशमुख ने यह कहकर प्रस्ताव ठुकरा दिया कि 60 वर्ष की उम्र के बाद सांसद राजनीति से दूर रहकर सामाजिक व सांगठनिक कार्य करें.

1960 में लगभग 60 वर्ष की उम्र में नानाजी ने राजनीतिक जीवन से संन्यास लेते हुए सामाजिक जीवन में पदार्पण किया. वे आश्रमों में रहकर सामाजिक कार्य (खासतौर पर गाँवों में) करते रहे परन्तु कभी अपना प्रचार नहीं किया. 

गांवों की बदहाली देखी और फिर लोगों के लिए काम करने की ठान ली
1989 में भारत भ्रमण के दौरान नानाजी पहली बार भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट आए और अंतिम रूप से यहीं बस गए. उन्होंने यहां पर गांवों की बदहाली देखी और फिर लोगों के लिए काम करने की ठान ली.  27 फरवरी 2010 को नाना जी का देहांत यहीं पर हुआ. 1999 में नानाजी को पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया. तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी नानाजी की समाजसेवा के कायल थे. नानाजी ने अपने मृत शरीर को मेडिकल शोध हेतु दान करने का वसीयतनामा निधन से काफी पहले 1997 में ही लिखकर दे दिया था. निधन के बाद नानाजी का शव अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को सौंप दिया गया.


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