रूसी विमान को तुर्की ने मार गिराया (फाइल फोटो)।
नई दिल्ली: रूस ने 30 सितंबर से सीरिया के अंदर आईएस पर हमले शुरू कर दिए। सीरिया के पड़ोसी तुर्की ने पिछले महीने 24 नवंबर को सीरियन बॉर्डर के पास रूसी लड़ाकू विमान मार गिराया। पिछले 50 सालों में यह ऐसा पहला मौका है जब किसी नाटो देश ने रूस के खिलाफ ऐसी हिमाकत दिखाई हो। पुतिन तो यहां तक कह चुके हैं कि तुर्की ने ऐसा जानबूझकर किया है। नाटो तुर्की के साथ है और रूस के तेवर नरम नहीं पड़ रहे।
नाटो के दम पर रूस को चुनौती
तुर्की, रूस जैसे ताकतवर देश के सामने नाटो के दम पर ही हिमाकत कर रहा है। नाटो यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन, जो रूस के बढ़ते प्रभाव के मद्देनज़र ही बना था। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जब रूस की ताकत बढ़ रही थी, वह अपने पड़ोसी देशों जर्मनी और चेकोस्लाविया में कब्जा करने की कोशिशें कर रहा था। इस दौरान ही 4 अप्रैल 1949 में नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन का गठन हुआ।
70 लाख सैनिकों वाला संगठन
शुरू में नाटो में 12 देश शामिल थे लेकिन अब 28 देश इसके सदस्य हैं। इसके अलावा भी कई देश नाटो से जुड़े हुए हैं और उनके साथ काम करते हैं। नाटो की ताकत का अंदाज़ा इस बात से भी लगता है कि नाटो में 70 लाख सैनिक हैं और इसके सदस्य देशों का सैन्य खर्च दुनिया के सैन्य खर्च का 70 फीसदी है। इस समूह में अमेरिका, यूके और फ्रांस जैसे ताकतवर देश शामिल हैं।
9/11 हमले के बाद बने नए नियम
अमेरिका में 9/11 के हमले के बाद नाटो में एक नियम बना जिसके तहत नाटो के किसी भी सदस्य देश पर हमला सारे नाटो देशों पर हमला माना जाएगा। नाटो ने अफगानिस्तान और बाल्कन क्षेत्र के कोसोवो में अपनी सेनाएं भेजीं। पिछले कुछ सालों में रूस ने यूक्रेन पर कब्ज़ा करने की कोशिश की है जिसके चलते रूस और नाटो आमने-सामने आए। हालांकि यूक्रेन नाटो का सदस्य बनना चाहता है। वह अब तक इसका सदस्य नहीं है लेकिन फिर भी नाटो यूक्रेन में रूस की बढ़ती दादागिरी के खिलाफ़ खड़ा हुआ।