यह ख़बर 17 दिसंबर, 2013 को प्रकाशित हुई थी

सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम कानून पर राज्यों के साथ विमर्श होना चाहिए : नीतीश कुमार

पटना:

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को कहा कि सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम कानून बनाने के वे हिमायती हैं पर इसके लिए प्रशासनिक स्तर पर विमर्श प्रयाप्त नहीं बल्कि राज्यों के साथ राजनीतिक स्तर पर विमर्श होना चाहिए।

बिहार राज्य मंत्रिमंडल की बैठक के संपन्न होने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक को मंजूरी दिए जाने के बारे में पत्रकारों द्वारा पूछे जाने पर नीतीश ने कहा कि वे सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम कानून बनाने के हिमायती हैं, पर इसके लिए प्रशासनिक स्तर पर विमर्श पर्याप्त नहीं बल्कि राज्यों के साथ राजनीतिक स्तर पर विमर्श होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक की चर्चा एक जमाने से हो रही है, इसको लेकर कई मसौदे बनते रहे हैं, लेकिन अंतिम तौर पर पिछले दिनों भारत सरकार के गृह सचिव ने एक बैठक बुलाई थी।

नीतीश ने कहा कि हम लोगों ने अपनी राय रखी थी कि सांप्रदायिक हिंसा रोकने के लिए एक उपयुक्त कानून बनना चाहिए। हम इसके हिमायती हैं और इस कानून को ठीक ढंग से बनाने के लिए राज्यों के साथ राजनीतिक स्तर पर विमर्श होना चाहिए। प्रशासनिक स्तर पर विमर्श प्रयाप्त नहीं।

उन्होंने कहा कि जबतक इस विधेयक में इस बात का प्रवाधान नहीं होगा कि जो राज्य सांप्रदायिक हिंसा को रोकने में कोताही करते हैं, तो वैसी स्थिति में उस इलाके को डिस्टर्ब एरिया घोषित कर दे और केंद्र सीधे हस्तक्षेप करके अपने केंद्रीय बलों के माध्यम से वहां सांप्रदायिक हिंसा नियंत्रित करे।

उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम कानून बनाया जाना एक उचित और उपयुक्त कदम है तथा यह वांछनीय है इसमें कोई शक नहीं है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कांग्रेसनीत संप्रग सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि अब चुनाव के समय इस विधेयक को लाए हैं। ऐसे में उनका इरादा संप्रदायिक हिंसा को रोकने का है या नहीं है अथवा उसके बारे में केवल एक चर्चा चलाने का है, इसके बारे में पता आगे दिनों में चल पाएगा।

उन्होंने कहा कि बिहार में भागलपुर जिले में 1990 में जो दंगा हुआ था, उनकी सरकार के वर्ष 2005 में सत्ता में आने के बाद एक आयोग बनाया तथा उसके जरिए उक्त मामले की नए सिरे से जांच की गई।

नीतीश ने कहा कि जिन मामलों में साक्ष्य था और अंतिम रिपोर्ट समर्पित किया गया था, वैसे मामलों को अदालत की इजाजत लेकर फिर उनका अनुसंधान किया गया तथा दोषी लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया और उन्हें सजा हुई।

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उन्होंने कहा कि गठित आयोग की अनुशंसा के मुताबिक भागलपुर दंगा के प्रभावितों को आजीवन पेंशन दिए जाने का राज्य सरकार ने निर्णय लिया।