सबरीमाला : महिलाओं के मासिक धर्म को लेकर बयान पर बवाल, महिलाएं बोलीं- #HappyToBleed

सबरीमाला : महिलाओं के मासिक धर्म को लेकर बयान पर बवाल, महिलाएं बोलीं- #HappyToBleed

केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर रोक है

नई दिल्ली:

केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर का प्रबंधन देखने वाली संस्था त्रावणकोर देवासम बोर्ड के एक अधिकारी के बयान को लेकर फेसबुक और ट्विटर पर जबरदस्त गुस्सा दिख रहा है, जहां सैकड़ों महिलाएं कह रही है कि उन्हें अपने शरीर पर गर्व है।

दरअसल युवा महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में जाने की अनुमति नहीं होती। कुछ लोगों का कहना है कि महिलाओं को इसलिए अनुमति नहीं है, क्योंकि मासिक धर्म के दौरान उन्हें अशुद्ध माना जाता है। हालांकि कुछ दूसरे विद्वानों का कहना है कि भगवान अयप्पा, जिन्हें यह मंदिर समर्पित है, को एक ब्रह्मचारी योगी माना जाता है और इसी वजह से मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक है।

वहीं इस प्रथा के समर्थन में सबरीमाला देवासम बोर्ड के प्रमुख प्रयार गोपालकृष्णन ने कहा कि महिलाओं को मंदिर में तभी घुसने दिया जाएगा, जब कोई ऐसी मशीन आ जाएगी, जो ये जांच कर सके कि महिला का मासिक धर्म नहीं चल रहा।

खबरों के मुताबिक, गोपालकृष्णन ने कहा, 'जिस दिन मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का 'सही समय' जांचने वाली मशीन ईजाद हो जाएगी, उस दिन से उन्हें सबरीमाला में प्रवेश की अनुमति मिल जाएगी।'

गोपालकृष्णन की इस टिप्पणी के खिलाफ ट्विटर और फेसबुक पर कमेंट की झड़ी लग गई, जहां पुरुष और महिलाएं #HappyToBleed हैशटैग के साथ कमेंट कर रहे हैं।

यह मुहिम 21 नवंबर से शुरू है, जिसमें महिलाओं से अपने प्रोफाइल या कैंपेन पेज पर प्लेकार्ड या सैनेटरी नैपकिन के साथ तस्वीरें डालने का आह्वान किया गया है। इसके तहत कई महिलाओं ने ट्विटर और फेसबुक पर अपने गुस्से का इजहार किया है।


वहीं सबरीमाला मंदिर के प्रमुख पुजारी के पोते एवं लेखक राहुल ईश्वर ने बोर्ड अध्यक्ष के बयान का बचाव करते हुए कहा कि उनकी कही बातों की मूल भावना को समझना चाहिए, शब्दों पर नहीं जाना चाहिए। उन्होंने कहा, 'वह बस मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर रोक की वर्षों पुरानी परंपरा को बरकरार रखने की बात कर रहे थे।'
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तो दूसरी तरफ केरल की वरिष्ठ पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता गीता नजीर कहती हैं, 'ये बयान हास्यास्पद है और दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह एक अधिकारी ने दिए हैं। लंबे अर्से से महिलाओं को ऐसे उपहास और उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा है। ये बस पितृसत्तात्मकता की निशानी है।'