टीवी पर देख चुके हैं चंद्रकांता तो अब लीजिए चंद्रकांता नगरी के टूर का मजा

टीवी पर देख चुके हैं चंद्रकांता तो अब लीजिए चंद्रकांता नगरी के टूर का मजा

चुनार:

देश के मशहूर उपान्यासकार देवकीनंदन खत्री के चर्चित उपन्यास 'चंद्रकांता' से जुड़ी अहम चीजों से रू-ब-रू होने का मौका लोगों को जल्द ही मिलेगा। पर्यटन विभाग की मानें तो चंद्रकांता के तिलिस्मी चुनारगढ़ (चुनार का किला) व चंद्रकांता नगरी नौगढ़ (चंदौली) को पर्यटन के तौर पर विकसित करने की कवायद शुरू हो चुकी है। यहां विदेशी सैलानी भी घूमते नजर आएंगे।

पूर्वांचल के मिर्जापुर में कैमूर पर्वत पर चुनार किला गंगा किनारे स्थित है। चंद्रकांता के चुनारगढ़ से पहले यह किला हिंदू शक्ति के रूप में जाना जाता है। क्षेत्रिय पर्यटन अधिकारी रवींद्र मिश्र की मानें तो इस ऐतिहासिक किले को टूरिस्ट स्पॉट के रूप में विकसित करने का प्रोजेक्ट केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के निर्देश पर तैयार किया गया है। डेवलपमेंट का प्लान तैयार कर राज्य और केंद्र सरकार को भेजा गया है।

उन्होंने बताया, '6 करोड़ रुपये की लागत से किले को सोलर लाइटें से जगमगाने के साथ ही पर्यटकों के लिए किले के अंदर बैठने की समुचित व्यवस्था करने के साथ ही शुद्ध पेयजल की व्यवस्था भी की जाएगी। बजट मिलते ही काम शुरू कर दिया जाएगा।'

पूर्वांचल का स्वर्ग कहा जाने वाला नौगढ़ (चंद्रकांता नगरी) के रूप में जाना जाता है। इस इलाके में विंध्य पर्वत की गोद में बने देवदरी के झरने से गिरते जल का नजारा पर्यटक रोप-वे से देख सकेंगे। पर्यटन विभाग के सूत्रों की मानें तो वन विभाग व जिलाधिकारी की ओर से रोप-वे निर्माण का प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा गया है। इस पर 1.20 करोड़ रुपये की लागत आएगी।

पर्यटन विभाग के मुताबिक, चुनार के किले का इतिहास सदियों पुराना है। हिंदू काल के भवनों के अवशेष अभी तक इस किले में मौजूद हैं। उस काल के महत्वपूर्ण चित्र व आदि विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गया भतृहरि का मंदिर बेहद महत्वपूर्ण है।

मंदिर में विक्रमादित्य की समाधि भी है। इसके अलावा सोनवा मंडप, सूर्य घड़ी, विशाल कुआं, बड़ी सुरंग और मुगलों के मकबरे भी हैं। इन सबका निर्माण शेरशाह सूरी ने करवाया था। अंग्रेजी हूकुमत के दौर में भी सैन्य दृष्टि से इस किले का काफी महत्व था। लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स का यह पसंदीदा स्थल भी रहा है।

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विभाग की मानें तो कोशिश यह है कि इस किले को पर्यटन केंद्र के तौर पर विकसित कर हिंदू काल में बनी इन अनोखी कलाकृतियों को लोगों तक पहुंचाया जाए। इससे लोगों को जोड़ने से पूर्वांचल में बसी इसे अनोखे स्थल का प्रचार-प्रसार दुनियाभर में आसानी से हो सकेगा।