अब 4 पूर्व जजों ने चीफ जस्टिस को लिखा खुला पत्र, कहा - नियम पारदर्शी होने चाहिए

चार मौजूदा जजों के आरोपों का समर्थन करते हुए खुलापत्र लिखने वाले पूर्व जजों का कहना है कि हाल के महीनों में मुख्य न्यायाधीश अहम मुकदमे वरिष्ठ जजों की बेंच को भेजने की बजाय अपने चहेते कनिष्ठ जजों को भेजते रहे हैं.

अब 4 पूर्व जजों ने चीफ जस्टिस को लिखा खुला पत्र, कहा - नियम पारदर्शी होने चाहिए

सुप्रीम कोर्ट के चार विरष्‍ठ जजों ने मीडिया के सामने अपनी बात रखी थी (फाइल फोटो)

खास बातें

  • 'पत्र में चार मौजूदा जजों के आरोपों का समर्थन किया गया है'
  • 'वरिष्‍ठ जजों की उपेक्षा का आरोप भी इन जजों ने लगाया है'
  • 'मुख्य न्यायाधीश खुद इस मामले में पहल करें'
नई दिल्‍ली:

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन जस्टिस पीबी सावंत के साथ कई हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों ने मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के नाम खुला पत्र लिखा है. इस पत्र में सुप्रीम कोर्ट के चार नाराज़ न्यायाधीशों की ओर से उठाए गए मुद्दों का समर्थन करते हुए कहा गया है कि बेंच बनाने और सुनवाई के लिए मुक़दमों का बंटवारा करने के मुख्य न्यायाधीश के विशेषाधिकार को और ज़्यादा पारदर्शी और नियमि‍त करने की ज़रूरत है.

चार मौजूदा जजों के आरोपों का समर्थन करते हुए खुलापत्र लिखने वाले पूर्व जजों का कहना है कि हाल के महीनों में मुख्य न्यायाधीश अहम मुकदमे वरिष्ठ जजों की बेंच को भेजने की बजाय अपने चहेते कनिष्ठ जजों को भेजते रहे हैं. बेंच बनाने, खासकर संविधान पीठ का गठन करने में भी वरिष्ठ जजों की उपेक्षा की जाती रही है. लिहाज़ा मुख्य न्यायाधीश खुद इस मामले में पहल करें और भविष्य के लिए समुचित और पुख्ता न्यायिक व प्रशासनिक उपाय करें.

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पत्र पर जस्टिस पीबी सावंत के अलावा दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एपी शाह, मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस के चन्द्रू और बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एच सुरेश शामिल हैं.

पत्र में इन न्यायाधीशों के हवाले से कहा गया है, ‘‘उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों ने मामलों, खासतौर पर संवेदनशील मामलों को शीर्ष न्यायालय के विभिन्न पीठों को आवंटन किए जाने के तौर तरीकों के बारे में एक गंभीर मुद्दा प्रकाश में लाया है.’’ इसमें कहा गया है, ‘‘उन्होंने उचित तरीके से मामलों का आवंटन नहीं किए जाने और किसी खास पीठ - जिसकी अक्सर ही जूनियर जज अध्यक्षता करते हैं, को मनमाने तरीके से आवंटित करने पर गंभीर चिंता जताई है. इसका न्यायपलिका के प्रशासन और कानून का शासन पर बहुत ही हानिकारक असर पड़ रहा है.’’ चार सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने कहा कि वे शीर्ष न्यायालय के चार मौजूदा न्यायाधीशों की इस बात से सहमत हैं कि हालांकि सीजेआई ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि पीठों को काम का बंटवारा मनमाने तरीके से किया जाए, जैसे कि संवेदनशील और अहम मुद्दे प्रधान न्यायाधीश द्वारा जूनियर जजों की चुनिंदा पीठों को भेजा जाता है.

उन्होंने कहा कि इन मुद्दों को सुलझाए जाने की जरूरत है और स्पष्ट नियम कायदे अवश्य ही निर्धारित किए जाने चाहिए जो तार्किक, निष्पक्ष और पारदर्शी हों. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका और उच्चतम न्यायालय में लोगों का भरोसा बहाल करने के लिए इसे अवश्य ही फौरन किया जाना चाहिए. पत्र में कहा गया है कि यह चीज किए जाने तक जरूरी है कि सभी संवेदनशील और लंबित अहम मामलों का निपटारा शीर्ष न्यायालय के पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ करे.

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इसमें कहा गया है कि सिर्फ इसी तरह के उपाय से लोगों में यह भरोसा आएगा कि उच्चतम न्यायालय निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से काम कर रहा है और प्रधान न्यायाधीश की ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ के तौर पर शक्तियों का अहम और महत्वपूर्ण मामलों में कोई खास नतीजा प्राप्त करने के लिए दुरुपयोग नहीं हो रहा है. इसलिए हम आपसे इस सिलसिले में फौरन कदम उठाने का अनुरोध करते हैं.

(इनपुट भाषा से...)


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