यह ख़बर 24 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

लेफ्ट ने राष्ट्रपति से की अध्यादेशों को मंजूरी न देने की मांग

नई दिल्ली:

संसद सत्र खत्म होने के एक ही दिन बाद मोदी कैबिनेट ने दो महत्वपूर्ण अध्यादेशों को मंज़ूरी दे दी। फैसले का ऐलान करते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बीमा और कोल ब्लॉक आवंटन से जुड़े इन अध्यादेशों को राष्ट्रीय ज़रूरत बताया। जेटली ने कहा, "संसद का एक सदन भले ही अनंतकाल तक इंतज़ार करता रहे, लेकिन यह देश इंतज़ार नहीं कर सकता..."

धर्मांतरण की राजनीति पर शीतकालीन सत्र के आखिरी दिनों के हंगामे की वजह से बीमा बिल और कोल ब्लॉक आवंटन बिल पास न करा सकी केंद्र सरकार राष्ट्रीय हित की दुहाई देते हुए 24 घंटे के भीतर इन पर अध्यादेश ले आई है, जिसकी वजह से सरकार और विपक्षी दलों के बीच तकरार बढ़ गई है। विपक्ष इसे संसद का अपमान बता रहा है।

दरअसल, असली टकराव बीमा के अध्यादेश को लेकर है। दोनों अध्यादेशों को मंज़ूरी देने के मोदी कैबिनेट के फैसले को चुनौती देते हुए लेफ्ट फ्रंट ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखी है। सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति से गुज़ारिश की है वह इन अध्यादेशों को मंज़ूरी न दें।

इस बीच, कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने भी कहा कि सरकार ने इन अध्यादेशों को लाकर संसद का सम्मान नहीं किया है। उन्होंने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार संसदीय मंजूरी को छोड़कर अध्यादेश ला रही है, जिससे लगता है कि उनके मन में संसद के लिए कोई सम्मान नहीं है।

उधर वित्तमंत्री अरुण जेटली से जब पत्रकारों ने पूछा कि बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश 26 फीसदी से 49 फीसदी करने के लिए अध्यादेश लाने की जल्दी क्या थी तो उनका जवाब था, "विलंब हो चुका था, इसलिए अर्जेन्सी थी..." वित्तमंत्री ने कहा कि आम धारणा यह है कि बीमा सेक्टर में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने से 50,000 करोड़ तक का अतिरिक्त पैसा जुटाया जा सकता है।

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भारत सरकार ने अध्यादेश के जरिये इंश्योरेंस सेक्टर में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी देकर आर्थिक सुधार की प्रक्रिया बढ़ाने की कोशिश की है। उद्योग जगत को अच्छा मैसेज देने की कोशिश की है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस संवेदनशील सेक्टर में और विदेशी निवेश लुभाने की कवायद में सरकार कितना कामयाब हो पाती है।