यह ख़बर 19 जुलाई, 2013 को प्रकाशित हुई थी

न्यायमूर्ति सदाशिवम बने देश के 40वें मुख्य न्यायाधीश

खास बातें

  • न्यायमूर्ति सदाशिवम (64) ने न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर का स्थान लिया है, जिन्होंने नौ महीने तक प्रधान न्यायाधीश के पद पर अपनी सेवाएं दीं।
नई दिल्ली:

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज न्यायमूर्ति पी सदाशिवम को देश के 40वें प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शपथ दिलाई।

न्यायमूर्ति सदाशिवम (64) ने न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर का स्थान लिया है, जिन्होंने नौ महीने तक प्रधान न्यायाधीश के पद पर अपनी सेवाएं दीं।

राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में न्यायमूर्ति सदाशिवम ने ईश्वर के नाम पर शपथ ली।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी, संप्रग प्रमुख सोनिया गांधी, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली, राजग के कार्यकारी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी, भाकपा नेता डी राजा और कई केंद्रीय मंत्री शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद थे।

अगस्त, 2007 में न्यायमूर्ति सदाशिवम को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनाया गया था और वह प्रधान न्यायाधीश के पद पर 26 अप्रैल, 2014 तक कार्यरत रहेंगे।

न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर की तरह न्यायमूर्ति सदाशिवम भी सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए मौजूदा कोलेजियम व्यवस्था को खत्म करने के विरोध में हैं।

इसके साथ ही उन्होंने स्वीकार किया है कि कोलेजियम व्यवस्था में कमियां हैं और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किए जा सकते हैं।

न्यायमूर्ति सदाशिवम का जन्म 27 अप्रैल, 1949 को हुआ था। उन्होंने जुलाई, 1973 में मद्रास में बतौर वकील पंजीकरण करवाया और जनवरी, 1996 में मद्रास उच्च न्यायालय के स्थाई न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए। इसके बाद अप्रैल, 2007 में उनका तबादला पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में कर दिया गया।

प्रधान न्यायाधीश के तौर पर अपनी योजना के बारे में उन्होंने गुरुवार को कहा था, मामलों के निपटारे में विलंब एक बड़ा मुद्दा है। न्याय की गुणवत्ता और मात्रा में इजाफा कर इस परेशानी से उबरा जा सकता है। न्यायमूर्ति सदाशिवम ने कहा कि वह दलीलों और लिखित बयानों को जमा कराने की समयसीमा तय करने का प्रयास करेंगे ताकि अदालतों में लंबित मामलों की संख्या को कम किया जा सके ।

न्यायमूर्ति सदाशिवम ने कई बड़े फैसले दिए हैं, जिनमें मुंबई विस्फोटों का मामला और पाकिस्तानी वैज्ञानिक मोहम्मद खलील चिश्ती का मामला भी शामिल है।

न्यायमूर्ति सदाशिवम और न्यायमूर्ति बीसी चौहान ने मुंबई विस्फोटों के मामले में अभिनेता संजय दत्त और कई दूसरे अभियुक्तों की सजा को बरकरार रखा था।

इनकी पीठ ने 1993 के विस्फोटों के मामले में पाकिस्तान की इस बात के लिए भर्त्सना की थी कि उसकी गुप्तचर एजेंसी आईएसआई ने इन विस्फोटों को अंजाम देने वालों को प्रशिक्षण मुहैया कराया और वह अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपनी सरजमीं से होने वाले आतंकवादी हमलों को रोकने में नाकाम रही है।

पाकिस्तानी वैज्ञानिक चिश्ती की सजा को रद्द करने वाला फैसला भी न्यायमूर्ति सदाशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने दिया था।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

न्यायमूर्ति सदाशिवम ने ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस से जुड़े तिहरे हत्याकांड के मामले में भी फैसला सुनाया था। उन्होंने इस मामले में दारा सिंह की सजा को बरकरार रखा था।

अन्य खबरें