यह ख़बर 12 मई, 2013 को प्रकाशित हुई थी

संसदीय समिति किशोरवय आयु 16 साल तय करने के पक्ष में

खास बातें

  • महिलाओं के खिलाफ अवयस्कों द्वारा किए जा रहे अपराधों में वृद्धि का हवाला देते हुए एक संसदीय समिति ने लड़कों में किशोरवय आयु 18 साल से घटा कर 16 साल करने की सिफारिश की है।
नई दिल्ली:

महिलाओं के खिलाफ अवयस्कों द्वारा किए जा रहे अपराधों में वृद्धि का हवाला देते हुए एक संसदीय समिति ने लड़कों में किशोरवय आयु 18 साल से घटा कर 16 साल करने की सिफारिश की है।

साथ ही समिति ने महिलाओं के खिलाफ किशोरों द्वारा किए जाने वाले अपराधों की रोकथाम के उद्देश्य से आवश्यक कदम उठाने के लिए गंभीर बहस करने का सुझाव भी दिया है।

विभिन्न एजेंसियों द्वारा मुहैया कराए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए महिलाओं की आधिकारिता पर संसदीय समिति ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि लड़कों में किशोरवय आयु 18 साल से घटा कर 16 साल की जाए ताकि उनके द्वारा महिलाओं के खिलाफ किए जाने वाले अपराधों के लिए उन पर देश के विभिन्न कानूनों के तहत मुकदमा चलाया जा सके।’

‘यौन दुर्व्‍यवहार तथा देह व्यापार पीड़ित और उनका पुनर्वास’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में समिति ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता के तहत 22,740 दंडनीय अपराधों को किशोरों ने वर्ष 2010 में अंजाम दिया। वर्ष 2011 में यह आंकड़ा 10.5 फीसदी बढ़ कर 25,125 हो गया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के खिलाफ किशोरों द्वारा किए जाने वाले अपराध में लगातार वृद्धि हुई है। वर्ष 2010 में बलात्कार के 858 मामलों, महिलाओं के अपहरण के 391 मामलों और छेड़छाड़ के 536 मामलों में किशोर लिप्त थे। वर्ष 2011 में बलात्कार के 1,149 मामलों, महिलाओं के अपहरण के 600 मामलों और छेड़छाड़ के 573 मामलों में किशोर लिप्त थे। समिति ने पकड़े गए किशोरों के प्रोफाइल का भी विश्लेषण किया और पाया कि ज्यादातर अपराधों को 16 साल से 18 साल तक की उम्र के किशोरों ने अंजाम दिया।

किशोर न्याय कानून, 1986 के अनुसार 16 साल से कम उम्र के लड़के और 18 साल से कम उम्र की लड़की को किशोर माना गया था। लेकिन वर्ष 2000 में कानून में संशोधन किया गया और पुरूष तथा महिला किशोरों की उम्र 18 साल तय कर दी गई।

समिति ने कहा है कि वह महिलाओं के खिलाफ विभिन्न अपराधों में किशोरों की संलिप्तता के बढ़ते चलन पर सतर्क करना चाहती है।

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रिपोर्ट में 16 दिसंबर की रात चलती बस में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना का संदर्भ देते हुए कहा गया है कि इसमें एक किशोर की संलिप्तता इस चलन पर रोक के लिए एक गंभीर बहस की जरूरत पर जोर देती है और बहस में कानून एजेंसियों सहित विभिन्न पक्षों को शामिल होना चाहिए।