यह ख़बर 09 जनवरी, 2013 को प्रकाशित हुई थी

नाबालिग दोषियों की उम्र घटाने की अर्जी पर केंद्र को कोर्ट का नोटिस

खास बातें

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने उस जनहित याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है, जिसमें नाबालिग दोषियों को उम्रकैद या मौत की सजा से बचाने वाले बाल अपराध कानून के प्रावधान को रद्द करने की मांग की गई है।
नई दिल्ली:

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को केंद्र से उस जनहित याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें नाबालिग अपराधियों से जुडे कानूनों में परिवर्तन की मांग की गई है। याचिका में नाबालिग अपराधियों को आजीवन कैद और मृत्यु दंड से बख्श देने संबंधी कानून में भी परिवर्तन का आग्रह किया गया है।

मुख्य न्यायाधीश डी मुरुगेशन और वीके जैन की पीठ ने कहा, प्रतिवादियों (केंद्रीय संसदीय कार्य और कानून और न्याय मंत्रालयों) को नोटिस जारी करें। इस मामले में अब 14 फरवरी को अगली सुनवाई होगी। केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल राजीव मेहरा ने कहा, जहां तक किशोर न्याय (देखरेख और संरक्षण कानून) अधिनियम की बात है, तो मुझे इस बारे में निर्देश लेने पड़ेंगे और जहां तक अन्य आग्रह (बलात्कार जैसे मामलों में कठोर सजा) की बात है, तो इस पर विचार करने के लिए पहले ही एक समिति बनाई जा चुकी है।

यह जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट की वकील श्वेता कपूर ने दायर की है। उनके वकील ने कहा कि धारा 16 सहित कानून के विभिन्न प्रावधानों की समीक्षा की जरूरत है, क्योंकि यह 16 वर्ष से कम आयु के अपराधियों को उम्रकैद और मृत्यु दंड देने में पाबंदी लगाते हैं। याचिका में कानून के विभिन्न प्रावधानों की परस्पर विरोधी बातों पर भी ध्यान आकर्षित किया गया है, जिनके तहत एक नाबालिग अपराधी को वयस्क होने पर सुधार गृह से जाने की अनुमति देने का प्रावधान है।

कानून में कहा गया है कि 16 वर्ष से अधिक आयु वाले बाल अपराधियों को अन्य बच्चों से अलग रखा जाए और उनकी हिरासत की अवधि तीन साल की होगी, जबकि उसी कानून के एक अन्य प्रावधान में कहा गया है कि एक नाबालिग अधिकारी सुधार गृह में केवल तभी रखा जा सकता है, जब तक वह वयस्क होने यानी 18 साल का न हो जाए।

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याचिका में कहा गया है, दूसरे शब्दों में धारा 16 एक अलग तरह के किशोर की परिकल्पना करता है, जिन्होंने गंभीर किस्म के अपराध किए हों और उन्हें सुधार गृहों में नहीं रखा जा सकता। ऐसे में कानून की धारा 16 (प्रथम भाग) की उपधारा एक परस्पर विरोधी है। यह याचिका दिल्ली में गत 16 दिसंबर को एक बस में 23-वर्षीय युवती के साथ हुए सामूहिक बलात्कार की घटना के परिप्रेक्ष्य में काफी महत्वपूर्ण हो गई है, जिसमें जांच से पता चला है कि नाबालिग अपराधी ने ही सबसे अधिक क्रूरता की थी।