गुलबर्ग सोसाइटी मामला : फिर से इंसाफ़ का सवाल राजनीति के आईने में देखा जाने लगा...

गुलबर्ग सोसाइटी मामला : फिर से इंसाफ़ का सवाल राजनीति के आईने में देखा जाने लगा...

नई दिल्‍ली:

2002 के गुजरात दंगों ने पूरी राष्ट्रीय राजनीति को जैसे बांट दिया था। अब 14 साल बाद गुलबर्ग सोसाइटी का फ़ैसला आया है तो फिर से इंसाफ़ का सवाल राजनीति के आईने में देखा जाने लगा है।

'14 साल बाद आधा न्याय मिला है। जो सूत्रधार हैं, गुलबर्ग कांड के वो बचे हुए हैं।' गुलबर्ग कांड पर कोर्ट के फैसले पर ये कांग्रेस नेता जयराम रमेश की औपचारिक प्रतिक्रिया थी। गुलबर्ग सोसाइटी मामले में 36 आरोपियों के बरी हो जाने पर ही कांग्रेस सवाल नहीं उठा रही, वो उस हिंसा के सूत्रधारों की याद भी दिला रही है।

कांग्रेस का आरोप है कि गुलबर्ग केस में 36 आरोपी बरी हो गए, क्योंकि अभियोजन पक्ष ने अपना काम ठीक से नहीं किया। कांग्रेस का दावा है कि पीड़ितों को पूरा न्याय नहीं मिल पाया। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा, 'कन्विक्शन (दोषसिद्धि) सभी का होना चाहिए था, लेकिन जब अभियोजन और बचाव पक्ष बचाने में लगे हों तो क्या उम्मीद कर सकते हैं?'

बीजेपी के बड़े नेताओं ने इस संवेदनशील मामले में प्रतिक्रिया नहीं दी। शिवसेना ने कहा, 'जो संतुष्ट नहीं वो इसे कोर्ट में चुनौती दें।' पार्टी की प्रवक्ता मनीषा कायांडे ने कहा, 'अगर कोई इस फैसले से संतुष्ट नहीं है तो वो इसके खिलाफ ऊंची अदालतों में अपील कर सकता है।'

गुजरात के इंसाफ़ की लड़ाई लड़ने वाली तीस्ता सीतलवाड़ ने इस मामले में साज़िश के न साबित होने पर सवाल उठा दिया। वैसे ये साफ़ है कि इंसाफ़ का इंतज़ार अभी लंबा होगा, क्योंकि मामला ऊंची अदालतों में जाएगा।


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