राष्ट्रपति चुनाव में रस्साकशी और शक्ति प्रदर्शन, एनडीए को 62 फीसदी से ज्यादा मतों का समर्थन

एनडीए ने राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए रामनाथ कोविंद के नामांकन दाखिले को भव्य राजनीतिक आयोजन बना डाला

राष्ट्रपति चुनाव में रस्साकशी और शक्ति प्रदर्शन, एनडीए को 62 फीसदी से ज्यादा मतों का समर्थन

रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए के प्रत्याशी के रूप में नामांकन जमा किया. बीजेपी ने शक्ति प्रदर्शन किया.

खास बातें

  • जेडीयू के समर्थन को राजनीतिक फायदे में बदलने की कोशिश में बीजेपी
  • कोविंद को समर्थन के मुद्दे पर जेडीयू और आरजेडी के बीच अंतर्विरोध
  • लालू यादव ने एनडीए को समर्थन ऐतिहासिक भूल करार दिया
नई दिल्ली:

आगामी राष्ट्रपति चुनावों के लिए एनडीए के प्रत्याशी रामनाथ कोविंद ने शुक्रवार को अपना नामांकन दाखिल किया. इसके साथ ही राष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीतिक सुगबुगाहट तेज़ हो गई है. हालांकि एनडीए 62% से भी ज्यादा मतों का समर्थन हासिल कर चुका है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, पार्टी के बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और यूपी से लेकर असम तक कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए रामनाथ कोविंद के नामांकन को बिल्कुल भव्य राजनीतिक आयोजन बना डाला.

लेकिन कार्यक्रम में जो दिखे, उनसे ज़्यादा चर्चा उनकी रही जो नहीं दिखे. शिवसेना ने कोविंद को समर्थन तो दिया है, मगर इस मौके पर पार्टी का कोई नेता नज़र नहीं आया. जेडी-यू की तरफ से भी कोई नहीं आया. लेकिन जेडीयू के समर्थन को अपने कहीं ज़्यादा बड़े राजनीतिक फायदे में बदलने की कोशिश में दिखी बीजेपी.

कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, "हम नीतीश जी का अभिनंदन करते हैं...आज सवाल है कि क्या नीतीश कुछ असहज महसूस कर रहे हैं? नीतीश - लालू का गठबंधन अप्राकृतिक है." जबकि केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव ने कहा, "लालू-नीतीश की सरकार अंतर्विरोध के साथ ही बनी है. दोनों की बेमेल शादी हुई है."

लालू यादव ने एनडीए के समर्थन को ऐतिहासिक भूल करार दिया. जबकि जेडीयू ने कहा, विपक्ष ने देरी कर दी. लालू ने कहा कि वे नीतीश से फिर अपील करेंगे कि वे एनडीए के उम्मीदवार का समर्थन करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करें. लेकिन जेडी-यू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि अब पुनर्विचार संभव नहीं है.

बीजेपी ने कोविंद के नामांकन को शक्ति-प्रदर्शन के एक मंच के तौर पर इस्तेमाल किया. जिस तरह से कोविंद के समर्थन में बीजेपी के साथ-साथ एनडीए के घटक दलों और कई राज्यों के मुख्यमंत्री संसद में जुटे उससे साफ है कि राष्ट्रपति चुनाव में लड़ाई राजनीतिक तौर पर एक सांकेतिक लड़ाई बनकर रह गई है.


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