'अधिकारों के साथ मोल-भाव नहीं हो सकता', पढ़ें प्रशांत कनौजिया केस पर सुप्रीम कोर्ट में किसने क्‍या कहा

सीएम योगी आदित्यनाथ पर कथित अपमानजनक टिप्पणी के मामले में गिरफ्तार पत्रकार प्रशांत कनौजिया को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है. कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया पर प्रशांत की ओर से क्या गया है उस पर कोई टिप्पणी नहीं की जा रही है लेकिन किसी की गिरफ्तारी अपने आप में असाधारण कदम होता है.

'अधिकारों के साथ मोल-भाव नहीं हो सकता', पढ़ें प्रशांत कनौजिया केस पर सुप्रीम कोर्ट में किसने क्‍या कहा

सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार प्रशांत कनौजिया को रिहा करने का आदेश दिया है.

नई दिल्ली:

सीएम योगी आदित्यनाथ पर कथित अपमानजनक टिप्पणी के मामले में गिरफ्तार पत्रकार प्रशांत कनौजिया को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है. कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया पर प्रशांत की ओर से क्या गया है उस पर कोई टिप्पणी नहीं की जा रही है लेकिन किसी की गिरफ्तारी अपने आप में असाधारण कदम होता है. यह कोई हत्या का मामला नहीं था और इसको तुरंत रिहा किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि हम जिस देश में है उसका संविधान दुनिया का सबसे अच्छा संविधान है. आप किसी को 11 दिन तक कैसे हिरासत में रख सकते हैं.  

सीएम योगी पर कथित टिप्पणी का मामला : सुप्रीम कोर्ट का आदेश- प्रशांत कनौजिया को रिहा करे यूपी सरकार

सुप्रीम कोर्ट में हुई बहस में किसने क्‍या कहा

यूपी में स्वतंत्र पत्रकार प्रशांत कनौजिया की गिरफ्तारी के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होते ही कोर्ट ने यूपी सरकार से सवाल-जवाब किया. जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने यूपी सरकार से जवाब तलब किया. यूपी सरकार की ओर से ASG विक्रमजीत बनर्जी अदालत में पेश हुए. यहां पढ़ें पूरी बातचीत :

सुप्रीम कोर्ट : ट्विट क्या है इससे मतलब नहीं,  किस प्रावधान में गिरफ्तारी हुई? 

सुप्रीम कोर्ट : हमने रिकार्ड देखा है. एक नागरिक के स्वतंत्रता के अधिकार में दखल दिया गया है.  राय भिन्न हो सकती है. 

यूपी सरकार :  इस याचिका का विरोध करते हैं.  गिरफ्तारी के बाद मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया था. ट्विट बहुत अपमानजनक था.

सुप्रीम कोर्ट : इस तरह की सामग्री पब्लिश नहीं होनी चाहिए लेकिन गिरफ्तार क्यों किया गया?

सुप्रीम कोर्ट : किन धाराओं के तहत गिरफ्तारी हुई?

सुप्रीम कोर्ट : आपत्तिजनक पोस्ट शेयर करना सही नही था लेकिन इसको लेकर गिरफ्तारी?

सुप्रीम कोर्ट : गिरफ्तारी आपने क्यों की? गिरफ्तारी सही थी इसको लेकर आप कोर्ट को संतुष्ट करें?

सुप्रीम कोर्ट : (याचिकाकर्ता से पूछा) आप इस मामले को लेकर हाईकोर्ट क्यों नहीं गए? 

यूपी सरकार : ये ट्विट बेहद अपमानजनक थे.  हमने IPC 505 भी लगाई है. 

सुप्रीम कोर्ट : इसमें शरारत क्या है?

सुप्रीम कोर्ट : आमतौर पर हम इस तरह की याचिका पर सुनवाई नहीं करते. लेकिन इस तरह किसी व्यक्ति को 11 दिनों तक जेल में नहीं रख सकते.

सुप्रीम कोर्ट : ये केस हत्या का नहीं है. हम इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करेंगे. 

उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से कहा कि गया कि इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की जगह इलाहाबाद हाई कोर्ट में होनी चाहिए. उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि प्रशांत ने केवल आपत्तिजनक पोस्ट ही नही किया बल्कि इससे पहले जाति को लेकर भी कमेंट कर चुका है.

यूपी सरकार : एक बार मजिस्ट्रेट ने रिमांड दे दिया तो हेबियस कॉरपस दाखिल नहीं हो सकती ना उस पर सुनवाई हो सकती है. 

जस्टिस इंदिर बनर्जी : लेकिन कोई बड़ी गलती की गई हो और किसी की स्वतंत्रता का हनन किया गया हो तो कोर्ट अपनी आंखे मूंदे नहीं रख सकता. उसे तुंरत रिहा करो. 

सुप्रीम कोर्ट : प्रशांत को तुंरत रिहा किया जाए. 

यूपी सरकार : मजिस्ट्रेट ने रिमांड में भेजा है.  इस तरह छोड़ा नहीं जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट : हम ऐसी बातों को पंसद नहीं करते लेकिन सवाल है कि क्या उसे सलाखों के पीछे रखा रखा जाना चाहिए? 

सुप्रीम कोर्ट : हम कार्रवाई को ना तो रद्द कर रहे हैं ना ही स्टे कर रहे हैं.

यूपी सरकार : इस मामले में मजिस्ट्रेट का आदेश है और उसे चुनौती दिया जाना जरूरी है. 

सुप्रीम कोर्ट : हम इस देश में रह रहे हैं जहां शायद दुनिया का सबसे अच्छा संविधान है. हम कानून के मुताबिक चलें लेकिन प्रशांत को रिहा करिए. 

यूपी सरकार : इससे ट्रायल भी प्रभावित होगा. 

सुप्रीम कोर्ट : हम ट्विट को मंजूर नहीं करते लेकिन आजादी के अधिकार के हनन को भी नामंजूर करते हैं. 

यूपी सरकार : ट्विट बेहद अपमानजनक हैं. इनका असर पडता है. 

सुप्रीम कोर्ट : ये मानकर मत चलिए कि सब सोशल मीडिया पोस्ट स्वीकार किए जाते हैं. लोग समझदार है, सोशल मीडिया पर अगर कुछ पोस्ट होता है तो वो सब कुछ सही नहीं होता. लोग इस बात को अच्छी तरह से जानते है कि कौन सी पोस्ट सही है या नहीं. 

सुप्रीम कोर्ट : हम उसे सिर्फ रिहा करने की राहत दे रहे हैं. इसका मतलब ये नहीं निकालना चाहिए कि केस को ही बंद कर रहे हैं. हम ट्रायल में दखल नहीं दे रहे. 

सुप्रीम कोर्ट : प्रशांत कनौजिया को  रिहा करे यूपी सरकार. हम इस मामले में पोस्ट की प्रकृति पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं. 

सुप्रीम कोर्ट : सवाल किसी को आजादी से वंचित रखे जाने का है. वो एक नागरिक है और उसके अधिकार हैं. देश का संविधान जीने का अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी देता है. याचिकाकर्ता के पति को अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता. इन अधिकारों के साथ मोल- भाव नहीं हो सकता. 

सुप्रीम कोर्ट : चीफ ज्यूडिशियल अफसर द्वारा तय बेल बॉन्ड के आधार पर प्रशांत को तुरंत रिहा किया जाए. इस आदेश का मतलब ये नहीं कि सोशल मीडिया पर किए पोस्ट को कोर्ट ने अप्रूव किया है. 

सुप्रीम कोर्ट : जमानत की शर्त निचली अदालत तय करेगी. आरोपी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई जारी रहेगी. 

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VIDEO : मानहानि पर कोर्ट की इजाजत के बिना गिरफ्तारी कैसे?