अफ्रीका के साथ मित्रता की परंपरा को कमजोर करना दुर्भाग्‍यपूर्ण होगा: राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी

अफ्रीका के साथ मित्रता की परंपरा को कमजोर करना दुर्भाग्‍यपूर्ण होगा: राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी

राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी का फाइल फोटो

नई दिल्‍ली:

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश में अफ्रीकी नागरिकों पर कथित हमलों की घटनाओं को लेकर चिंता जताते हुए सोमवार को कहा कि अगर भारत के लोग ‘अफ्रीका के साथ मित्रता की हमारी लंबी परंपरा को कमजोर करते हैं’तो यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा।

मिशन प्रमुखों के सातवें वार्षिक सम्मेलन के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए मुखर्जी ने कहा, ‘‘अगर भारत के लोग अफ्रीका के लोगों के साथ मित्रता और उनका अपने यहां हमेशा स्वागत करने की लंबे समय से चली आ रही हमारी परंपरा को कमजोर करते हैं, तो यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा। भारत में अफ्रीकी छात्रों को अपनी सुरक्षा को लेकर डरने की कोई वजह नहीं होनी चाहिए।’’उन्होंने कहा कि ऐसी कोई धारणा नहीं बननी चाहिए जो हमारी प्राचीन सभ्‍यता के ताने-बाने और मूल्यों के अनुरूप नहीं हो।

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हमें (भारत और अफ्रीका के बीच के) पुराने संबंधों के बारे में अपने नौजवानों में सही ढंग से जागरुकता पैदा करनी चाहिए जो शायद इस इतिहास को नहीं जानते हैं।

अफ्रीका के साथ रहे हैं प्राचीन व्‍यापारिक संबंध
भारत का अफ्रीकी देशों के साथ सदियों से व्यापार संबंध रहा है और 54 अफ्रीकी देशों में हर जगह अच्छा-खासा भारतीय समुदाय है जो कारोबार, उद्योग में लगा है।’ उन्होंने कहा, ‘‘हम इन सबको पटरी से उतरने और ऐसी खराब परंपरा बनने की इजाजत नहीं दे सकते जो हमारी प्राचीन सभ्‍यता के मूल मूल्यों से मेल नहीं खाता है।’’

राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा कि वह इससे खुश हैं कि विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय के साथ सामंजस्य के साथ काफी सक्रियता से आगे बढ़ रहा है और भारत में अफ्रीकी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन के साथ मिलकर काम कर रहा है।

उपनिवेशवाद और रंगभेद के खिलाफ लड़ी सामूहिक लड़ाई
मुखर्जी ने  कहा, ‘‘राजनीतिक कार्यकर्ता, सांसद के तौर पर मैंने देखा है कि हम एक दूसरे के कितने निकट हैं। करीब एक सदी पहले रवींद्रनाथ ठाकुर ने अफ्रीका शीर्षक से खूबसूरत कविता लिखकर रंगभेद के खिलाफ अपना आक्रोश और दुख प्रकट किया था।’’ राष्ट्रपति ने कहा कि मिस्र के गमाल अब्दुल नासिर और घाना के क्वामे नकरूमा 1955 में अफ्रीका-एशिया सम्मेलन के दौरान जवाहरलाल नेहरू के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे।

उन्‍होंने साथ ही यह भी जोड़ा, ‘‘नेलसन मंडेला गांधी के सिद्धांतों के मूर्त रूप थे। भारत ने अफ्रीका में उपनिवेशवाद और रंगभेद के खिलाफ लंबे अंतरराष्ट्रीय संघर्ष का नेतृत्व किया था।’’ मुखर्जी ने कहा कि 1946 में भारत सरकार ने फैसला किया था कि रंगभेद खत्म होने तक दक्षिण अफ्रीका के साथ कोई व्यापार संबंध नहीं होगा।

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)


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