राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा- सभी के लिए न्याय सुलभ होना चाहिए

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने न्याय की महत्ता को रेखांकित करते हुए शनिवार को कहा कि सभी के लिए न्‍याय सुलभ होना चाहिए.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा- सभी के लिए न्याय सुलभ होना चाहिए

रामनाथ कोविंद

खास बातें

  • कोविंद ने कहा- सभी के लिए न्याय सुलभ होना चाहिए
  • 'मेरी सबसे बड़ी चिंता ये कि क्या हम, सभी के लिए न्याय सुलभ करा पा रहे?'
  • न्याय प्रक्रिया हो रही खर्चीली- रामनाथ कोविंद
जोधपुर:

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) ने न्याय की महत्ता को रेखांकित करते हुए शनिवार को कहा कि सभी के लिए न्‍याय सुलभ होना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि क्या हम, सभी के लिए न्याय सुलभ करा पा रहे हैं?'' इसके साथ ही उन्होंने न्याय प्रक्रिया के खर्चीला होते जाने की बात भी की. राजस्थान उच्च न्यायालय (Rajasthan High Court) के नये भवन के उद्घाटन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कोविंद ने कहा, ‘‘पुराने समय में, राजमहलों में न्याय की गुहार लगाने के लिए लटकाई गई घंटियों का उल्लेख होता रहा है. कोई भी व्यक्ति घंटी बजाकर राजा से न्याय पाने के लिए प्रार्थना कर सकता था. क्या आज कोई गरीब या वंचित वर्ग का व्यक्ति अपनी शिकायत लेकर यहां आ सकता है?'' 

POCSO अधिनियम के तहत दोषी पाए गए किसी को भी दया याचिका दायर करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए : राष्ट्रपति कोविंद

उन्होंने कहा, ‘‘यह सवाल सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि संविधान की प्रस्तावना में ही हम सब ने, सभी के लिए न्याय सुलभ कराने का दायित्व स्वीकार किया है.'' उन्होंने कहा, ‘‘मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि क्या हम, सभी के लिए न्याय सुलभ करा पा रहे हैं?'' राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान दिवस के दिन कही गयीं अपनी बातों को दोहराना चाहते हैं. 

उन्होंने कहा, ‘‘संविधान दिवस के दिन मैंने जो बातें उच्चतम न्यायालय में साझा की थीं उनमें से कुछ प्रमुख बातों को मैं यहां दोहराना चाहता हूं.'' उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी न्याय की प्रक्रिया में होने वाले खर्च के बारे में बहुत चिंतित रहते थे. उनके लिए हमेशा दरिद्रनारायण का कल्याण ही सर्वोपरि था. 

उनका अनुसरण करते हुए हम सबको अपने आप से यह सवाल पूछना चाहिए: क्या प्रत्येक नागरिक को न्याय सुलभ हो पाया है?'' कोविंद ने अपने संबोधन में न्याय प्रक्रिया के खर्चीले होने का जिक्र भी किया. उन्होंने कहा, ‘‘मैं भलीभांति यह समझता हूं कि अनेक कारणों से न्याय-प्रक्रिया खर्चीली हुई है, यहां तक कि जन-सामान्य की पहुंच के बाहर हो गई है. विशेषकर उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में पहुंचना आम परिवादी के लिए नामुकिन हो गया है.'' 

निर्भया के दोषियों को फांसी देने के लिए राष्ट्रपति को पत्र लिखी चिट्ठी, कहा- मुझे बनाओ जल्लाद

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन अगर हम गांधीजी की प्रसिद्ध ‘कसौटी' को ध्यान में रखते हैं, अगर हम सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति का चेहरा याद करते हैं तो हमें सही राह नज़र आ जाएगी. मिसाल के तौर पर, हम निशुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध कराके जरूरतमंदों की मदद कर सकते हैं.'' राष्ट्रपति ने कहा कि उनके सुझाव के बाद, उच्चतम न्यायालय ने अपनी वेबसाइट पर नौ भाषाओं में अपने निर्णयों की प्रमाणित प्रतियां उपलब्ध कराना शुरू कर दिया है. उन्होंने कहा कि कई उच्च न्यायालय भी स्थानीय भाषाओं में अपने निर्णयों का अनुवाद उपलब्ध करा रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘‘न्याय व्यवस्था से जुड़ी मेरी बातें यहां के लोगों तक आसानी से पहुंच सकें, इसीलिए मैंने यह सम्बोधन हिन्दी में किया है.''
 



(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)