यह ख़बर 01 जुलाई, 2014 को प्रकाशित हुई थी

प्राइम टाइम इंट्रो : महंगाई की मार कब तक?

नई दिल्ली:

नमस्कार...मैं रवीश कुमार। आज राष्ट्रीय परिस्थिति में अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति की बात करेंगे। यह वह परिस्थिति है, जिस पर किसी भी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता और इसी कारण पेट्रोल, डीजल और गैस के दाम बढ़ जाते हैं। लेकिन इस अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति के फलस्वरूप राष्ट्रीय परिस्थिति में पैदा हुई चीजों यानी आलू-प्याज के दाम बढ़ जाते हैं, उसे सरकार नाना प्रकार की बैठकों और निर्देशों से क्यों नहीं रोक पाती है?

ऐसा न हो पाने की स्थिति में राजनीतिक दल दो महीने पहले तक मनमोहन सिंह के पुतले जलाते थे, आज-कल नरेंद्र मोदी के जलाने लगे हैं। कसूर अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति का और पुतला दहन राष्ट्रीय परिस्थिति के नेताओं का। प्रदर्शन बोरिंग हो चुके हैं। समाजवादी पार्टी ने आज इस बोरियत को तोड़ते हुए वाराणसी में पुतला दहन की जगह मोटरसाइकिल दफन का आइडिया निकाला। मामला सेकुलर लगे, इसलिए एक जगह बाइक को सुपुर्दे खाक किया गया, तो दूसरी जगह हिन्दू रीति से मां गंगा में बाइक का प्रतीकात्मक विसर्जन किया गया।

महंगाई राजनीतिक दलों को क्रिएटिव बना देती है। जो बीजेपी मनमोहन सरकार के खिलाफ भारत बंद किया करती थी, वह आज-कल भारत सरकार चला रही है। इसके बाद भी अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति का बाल बांका नहीं कर पा रही है। फर्क सिर्फ इतना आया है कि जो बातें मनमोहन सिंह बोला करते थे, वही बातें बीजेपी कहने लगी है। बीजेपी मनमोहन को मौन मोहन कहा करती थी, अब कांग्रेस मोदी को मौन मोदी कहने लगी है।

मैं एक बात समझ गया हूं। भारत में महंगाई से सिर्फ विपक्ष में रहते हुए लड़ा जा सकता है, क्योंकि विपक्ष में रहते ही इस निर्मोही और पॉकेटमार अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति की ठीक से धुलाई हो सकती है। उदाहरण के लिए तब विपक्ष के धारदार प्रवक्ता के तौर पर प्रकाश जावड़ेकर साहब पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाने पर कहते थे कि सरकार लोगों से जज़िया कर वसूल रही है। यह बिल्कुल स्वीकार करने योग्य नहीं है। सरकार का यह तर्क कि अंतरराष्ट्रीय कीमतों के कारण दाम बढ़े हैं, यह गलत है। यह सरकार लोगों को कितना लूटेगी।

अब प्रकाश जावड़ेकर मंत्री बन गए हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति के खिलाफ तो जनता ने वोट नहीं दिया था, लिहाजा पेट्रोल-डीजल और गैर सब्सिडी वाले सिलेंडर के दाम बढ़ने पर वह कहते हैं कि महंगाई समस्या है, लेकिन जैसा कि हम जानते हैं कि हमें यह समस्या विरासत में मिली है। यूपीए सरकार ने दस साल में क्या किया है, लोगों ने देखा है। महंगाई का मुद्दा इलेक्ट्रीक स्विच नहीं है कि ऑन कर दिया और ऑफ कर दिया। इसके पीछे कुछ अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां भी हैं।

साल 2011 में प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि महंगाई दूर करने के लिए सरकार कोई जादू की छड़ी नहीं घुमा सकती। साल 2014 के जून में इस जादू की छड़ी का नाम इलेक्ट्रोनिक स्विच हो गया है। क्या कोई राजनेता है, जो ऐसी तुकबंदियों के आगे जाकर महंगाई के कारणों और दूर करने में हमारी मजबूरियों या शक्तियों के बारे में विश्वसनीय तरीके से बता सके।

क्या आपने अपने आस-पास या रिश्तेदारी में किसी जमाखोर को देखा है। राष्ट्रीय परिस्थिति में यही वह खोर हैं, जिनके पकड़े जाते ही महंगाई कम होने के आसार नजर आने लगेंगे। हिन्दुस्तान की सारी सरकार इन जमाखोरों को खोज रही है, एक दूसरे को निर्देश दे रही है कि तुम पकड़ो तो तुम पकड़ो। इससे पहले कि ये पकड़े जाएं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों से आग्रह किया है कि वे जमाखोरी के मामलों के लिए विशेष अदालत का प्रबंध करें।

और इस कमबख्त यानी नौटी प्याज की तो पूछिये मत इसे तो जैसे हर सरकार से चिढ़ है। यूपीए के समय आनंद शर्मा कहा करते थे कि जमाखोरों के कारण प्याज के दाम बढ़े हैं। कई कांग्रेसी नेताओं ने बीजेपी समर्थक जमाखोरों को कारण बताया था। शीला दीक्षित सरकार के मंत्री हारून यूसुफ ने तब मध्य प्रदेश सरकार पर आरोप लगाया था कि वहां जमाखोरों के खिलाफ उचित कार्रवाई न होने के कारण प्याज के दाम बढ़ रहे हैं।

अब सरकार बदल गई है तो आज सूत्रों के हवाले से बीजेपी ने कहा कि यह कांग्रेसी जमाखोरों का काम है। ये बात कहने के लिए भी सूत्रों का सहारा लिया गया। आखिर कब तक दिल्ली सरकार प्याज बेचने की व्यवस्था करती रहेगी और क्या ये प्याज के दाम सिर्फ दिल्ली में महंगे हो रहे हैं।

साल 2011 में दिल्ली में जब ऐसे ही छापे पड़ रहे थे, तब व्यापारी हड़ताल पर चले गए थे। तब व्यापारियों ने कहा था कि सरकार हम व्यापारियों को जमाखोर कहकर बदनाम कर रही है। इस बार राष्ट्रहित में व्यापारियों की ऐसी किसी भावनाओं के आहत होने की कोई खबर नहीं है।

आज दिल्ली के उपराज्यपाल ने 52 टीमें बनाकर राज्य भर में छापे मार कर प्याज, आलू, दाल, खाद्य तेलों को पकड़ कर लाने के लिए छोड़ दिया। प्रेस रीलीजानुसार इन 52 अश्वमेधी टीमों ने दिन भर में 549 ठिकानों पर छापे मारे और 104 लोगों के खिलाफ मामले दर्ज कर दिए। पकड़े गए ये जमाखोर कांग्रेसी हैं या भाजपाई इसका तो जिक्र नहीं है, मगर 12000 क्विंटल दाल और चावल के गैरकानूनी स्टॉक पकड़े जाने की सूचना है। 19 जून को भी दिल्ली में 532 ठिकानों पर छापे पड़े थे और 42 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था।

केंद्रीय खाद्य और आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान ने कहा है कि हमारे पास चावल, गेहूं, चीनी, आलू और प्याज की कोई कमी नहीं है। पासवान कहते हैं कि जो भी टीवी में, अखबार में सुनता है कि मानसून कम हो गया तो जमाखोरी करने लगता है। लेकिन पासवान जी वही जमाखोर टीवी में यह सुन कर क्यों नहीं डरता है कि सरकार उन्हें खोज रही है। पासवान ने कहा कि 4 जुलाई को देश भर के खाद्य मंत्रियों की बैठक बुलाई गई है।
 
एक महीना पहले ही तो देश भर में होर्डिंग लगे थे, जिसमें नरेंद्र मोदी का नारा लिखा था कि अब नहीं सहेंगे महंगाई की मार। मगर बयानों से तो यही लगता है कि जनता से ज्यादा सरकार ही महंगाई की मार सह रही है। मोदी सरकार ने पिछले 17 दिनों में मानसून और महंगाई पर पड़ने वाले असर को लेकर चार बड़ी बैठकें की हैं। तीन बैठकों की अध्यक्षता तो प्रधानमंत्री ने खुद की है। इसके अलावा भी खाद्य व उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय और कृषि मंत्रालय में कई बैठके हुई हैं, लेकिन रिजल्ट क्या निकला है? मार्च 2011 में नरेंद्र मोदी ने तत्लाकीलन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 20 सुझाव दिए थे और 64 कदम बताए थे, जो लिए जा सकते थे। यानी फार्मूला तो है मगर वह एक्शन कहां है। अगर एक्शन है तो महंगाई क्यों है?

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वित्तमंत्री जेटली ने कहा है कि महंगाई बर्दाश्त की सीमा से भी ज्यादा है। तो जनता क्या करे? वह इन बयानों से अपनी खीझ निकाले या बाजार से लौट घर लौटकर अर्थशास्त्र की कोई किताब पढ़े या फिर महंगाई कम होने का आसरा छोड़ ही दे।