यह ख़बर 25 जुलाई, 2014 को प्रकाशित हुई थी

प्राइम टाइम इंट्रो : नैतिक मूल्यों में भारी गिरावट है?

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार। कोई गोवा से हिन्दू राष्ट्र बना रहा है तो कोई कहीं से राष्ट्रवाद का और भी मेन्यू लिए चला आ रहा है। कई बार लगता है कि जहां तहां यहां वहां बहस करने से अच्छा है कि संसद के संयुक्त अधिवेशन में हफ्तों चर्चा हो जानी चाहिए और एक बार फिर से निष्कर्ष पर पहुंच जाना चाहिए कि भारत किस प्रकार का राष्ट्र है और कैसा होना चाहिए मगर ऐसी व्याख्याएं तब भी बंद नहीं होंगी और न होनी चाहिए। आज की यह चर्चा इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट से प्रेरित है।

रिपोर्टर ऋतु शर्मा के अनुसार गुजरात सरकार ने सरकारी स्कूलों से कहा है कि दीनानाथ बत्रा की किताब को पूरक पाठ या संदर्भ ग्रंथ के रूप में पढ़ा जा सकता है। ये सभी कोर्स का हिस्सा नहीं हैं, न ही अनिवार्य हैं। दीनानाथ बत्रा ने 1994 में हिन्दी में नैतिक मूल्यों को लेकर नौ किताबें लिखीं थीं, लेकिन इस साल इन किताबों के गुजराती संस्करण लांच हुए हैं। गुजराती अनुवाद की किताबों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और शिक्षा मंत्रियों के संदेश हैं। कवर के भीतर दीनानाथ बत्रा का पूरा परिचय भी है। राज्य की हज़ारों स्कूलों में ये किताबें रखी जाएंगी।

हमारे देश में बत्रा सहित कई लोग हैं जो मानते हैं कि इस वक्त जो आधुकनिता चल रही है वो पश्चिम परस्त है और उसी के कारण नैतिक मूल्यों में भारी गिरावट है। इसी संदर्भ में एक्सप्रेस अखबार तेजोमय भारत से एक प्रसंग नोट करता है जिसमें बच्चों से उम्मीद की जाती है कि वे अपने जन्मदिन पर मोमबत्तियां न जलायें, ये पाश्चात्य संस्कृति है। बल्कि इस दिन स्वदेशी कपड़े पहनें, हवन करें और अपने ईष्ट देव से प्रार्थना करें। गऊ माता को रोटी खिलाएं। दिन का अंत विद्या भारती के गाने सुनकर करें।

बत्रा जी की बात से हमारा मिडिल क्लास का एक हिस्सा बिदक सकता है पर क्यों न यह प्रयोग उसी मिडिल क्लास पर पहले आज़माया जाए जो ज्यादा बर्थ डे मनाता है। सरकारी स्कूलों के बच्चों से ही ऐसी उम्मीद क्यों की जाए। मिडिल क्लास और पब्लिक स्कूलों के बच्चे जहां से सोशल मीडिया जनरेशन के फर्स्ट टाइम वोटर बनते हैं, क्यों न उनसे कहा जाए कि तुम ये मिकी माउस या डोनल्ड डक वाले बर्थ डे केक काटना बंद करो। मोमबत्तियां मत फूंको, रिटर्न गिफ्ट मत दो, महंगे कपड़े मत पहनो। अगर वे ऐसा करेंगे तो इंडियन कल्चर को डैमेज कर देंगे।

पता नहीं टीवी का मिडिल क्लास ये सब सुनकर इंडियन कल्चर के लिए कुछ कंट्रीब्यूट यानी योगदान करेगा भी कि नहीं। वैसे मैं तो नहीं करूंगा पर चर्चा है तो आप दर्शकों से पूछ रहा हूं। आप जानते हैं कि गांव गांव में केक वाला बर्थ डे पहुंच गया है। काश ये सरकार और ये किताब पहले आ गई होती तो केक और चाऊमीन का ऐसा प्रसार कभी नहीं होता।

रिलैक्स। ये केक विरोधी प्रोग्राम नहीं है। बत्रा जी एक संदर्भ में बात उठा रहे हैं। टीवी में यह खतरा रहता है कि संदर्भ गायब हो जाता है। हम जल्दी किसी निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं। कोई कानून की वकालत नहीं हो रही है बल्कि आपके बच्चों में अच्छे व्यक्तित्व के इरादे से यह सब लिखा गया है। पर मैं एक बात पर बत्रा जी से और स्पष्टीकरण ज़रूर चाहूंगा। बत्रा जी की एक किताब तेजोमय भारत में 14 अगस्त को राष्ट्रीय अवकाश की वकालत करते हैं। 14 अगस्त के दिन पाकिस्तान बना था। बत्रा जी चाहते हैं कि इस दिन अखंड भारत स्मृति दिवस मनाना चाहिए। शिक्षा का भारतीयकरण में बत्रा बच्चों से एक सवाल करते हैं कि आप भारत का नक्शा कैसे बनायेंगे। क्या आप जानते हैं कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भूटान, तिब्बत, बांग्लादेश, श्रीलंका और बर्मा अविभाजित भारत का हिस्सा है। ये सभी देश अखंड भारत का हिस्सा हैं।

अविभाजित भारत ही सत्य है। विभाजित भारत झूठ है। भारत का विभाजन प्राकृतिक नहीं था और इसे दोबारा जोड़ा जा सकता है।

एक चीन अपने किसी वेबसाइट पर अपने नक्शे में अरुणाचल प्रदेश का चार पांच कट्ठा ज़मीन शामिल कर लेता है तो देश में हंगामा हो जाता है और अगर हम 14 अगस्त के दिन छुट्टी लेकर अखंड भारत स्मृति दिवस मनाएं तो क्या होगा। वैसे 14 और 15 अगस्त को छुट्टी हो इसमें प्रोब्लम है क्या। बिग बाज़ार 15 अगस्त के साथ 14 अगस्त को भी सेल लगा देगा। पर बच्चों को ऐसा नक्शा बनाना सीखायें जिसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, तिब्बत, बांग्लादेश, श्रीलंका और बर्मा शामिल हो तो क्या हो। ये क्वेश्चन है।  

मैं ये नहीं कह रहा कि आपके बच्चे इंडिया का मौजूदा नक्शा भूल जायेंगे। पर अगर वे ऐसा नक्शा बनाएं जिसमें वे देश भी हों जिनका अपना वजूद है तो भारत के पड़ोसी देशों के बारे में उनकी समझ कैसी बनेगी। एक इम्पैक्ट ये हो सकता है कि वे इंडिया के साथ अफगानिस्तान, पाकिस्तान को भी प्यार करने लगें पर श्रीलंका और नेपाल ने हल्ला मचा दिया तो। इसीलिए मैं ये कह रहा हूं कि ये कोई साधारण बात नहीं है। यह बात हमें राष्ट्रभूगोल और स्मृतियों को लेकर बनी बनाई या बन रही राजनीतिक समझ को चुनौती देती है।

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मैंने बत्रा जी से किताबें मंगवाईं। उन्होंने दी भी, लेकिन शो से पहले वे किताबें नहीं मिल पाईं जिनसे एक्सप्रेस अखबार ने कोट किया है। वैसे इन किताबों के ज्यादातर प्रसंग अच्छे हैं। किसी को खास दिक्कत नहीं होनी चाहिए। आप कहेंगे कि दीनानाथ बत्रा जी की किताब या नैतिक शिक्षा संग्रहों पर क्यों चर्चा कर रहे हैं। क्योंकि वे राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की विद्या भारती प्रोजेक्ट के अहम हस्ती हैं। मोदी सरकार के कारण संघ और सरकार सहोदर रूप में देखे जाते हैं। दीनानाथ बत्रा के केस करने पर इस साल वैंडी डोनिगर की हिंदुत्व पर लिखी किताब का वितरण रोकना पड़ा जिसे लेकर बड़ा भारी विवाद भी हुआ। तो इस संदर्भ में भी दीनानाथ बत्रा मौजूदा संदर्भ से भी ज्यादा व्यापक हो जाते हैं। प्राइम टाइम