Lockdown: तीन राज्यों में हुए श्रम कानून में बदलाव के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल

जनहित याचिका के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि राज्य सरकारों के इन अध्यादेशों को रद्द कर श्रम कानून को संरक्षित करें

Lockdown: तीन राज्यों में हुए श्रम कानून में बदलाव के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल

सुप्रीम कोर्ट.

नई दिल्ली:

Lockdown: विदेशी निवेशकों को भारत लाने के मकसद से श्रम कानून में हुए बदलाव का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई है. झारखंड के सोशल एक्टिविस्ट पंकज कुमार यादव ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. याचिका में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश, गुजरात सहित अन्य राज्यों में श्रमिकों के कानून को कमजोर और शिथिल बनाने का अध्यादेश जारी हुआ है. श्रम कानून में संशोधन तीन महीने से लेकर तीन वर्षों तक के लिए अलग अलग राज्यों में किया गया है. 

पंकज यादव ने जनहित याचिका के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि राज्य सरकारों के इन अध्यादेशों को रद्द कर श्रम कानून को संरक्षित करें. राज्य सरकारों ने फैक्ट्री एक्ट का संशोधन कर मजदूरों के मूल अधिकारों को हनन करने का प्रयास किया है. आठ घंटे की जगह बारह घंटे कार्य करवाना तथा निम्नतम मजदूरी से भी वंचित रखना मानवाधिकार का हनन है. 

राज्य सरकारों ने श्रम कानून में बदलाव वॉर के दौरान मिलने वाले राज्य सरकार के अधिकारों के आधार पर किया है जो ना तो राजनीतिक दृष्टि से सही है ना ही नैतिक दृष्टि से. लाखों  मजदूर अभी बेइंतहा पीड़ा को झेल रहे हैं और लॉकडाउन के बाद जब वे वापस फैक्ट्री में जाएंगे तो नया अध्यादेश उन्हें अपने फंसे हुए पैसे को निकालने में भी बड़ी अड़चन खड़ा करेगा. यह मजदूरों को देश की आज़ादी से पहले से मिलते आ रहे हर वो अधिकार और सुविधा से वंचित करने की कोशिश है जिसके वे हक़दार हैं. मजदूर की जान की कीमत पर निवेशकों को आमंत्रित करना कहीं से भी उचित नहीं है.

दरअसल भाजपा शासित राज्यों एमपी, गुजरात और उत्तर प्रदेश में श्रम कल्याण कानूनों में संशोधन किया गया है. जनहित याचिका में कहा गया है कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात ने विभिन्न कल्याणकारी कानूनों के प्रावधानों से औद्योगिक इकाइयों को छूट दी है. इन छूटों में दैनिक और साप्ताहिक कामकाजी घंटों की तरह वृद्धि शामिल है. साथ ही श्रमिकों के अदालत में जाने पर रोक लगाई गई है. निरीक्षकों द्वारा 
कारखानों के नियमित निरीक्षण का निलंबन किया गया है. 

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कहा गया है कि आर्थिक गतिविधियों को सुविधाजनक बनाने के बहाने मौजूदा कामगारों के अधिकारों को नहीं छीना जा सकता है. कल्याणकारी उपायों को वापस लेने से नियोक्ताओं द्वारा श्रमिकों का शोषण होगा. दरअसल इन तीनों राज्यों ने COVID-19 महामारी का हवाला देते हुए श्रम कल्याण कानूनों को सार्वजनिक आपातकाल के रूप में निलंबित कर दिया है.