राहुल गांधी ने 5 साल में संसद में नहीं पूछा एक भी सवाल, सांसद निधि खर्च करने में मोदी भी 'कंजूस'

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी संसद के बाहर भले ही मुखर हों, लेकिन लोकसभा में पांच साल के दौरान उन्होंने एक भी सवाल नहीं पूछा.वहीं विकास के नाम पर राजनीति करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सांसद निधि के जरिए विकास करने में कंजूस दिखे हैं.

राहुल गांधी ने 5 साल में संसद में नहीं पूछा एक भी सवाल, सांसद निधि खर्च करने में मोदी भी 'कंजूस'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की फाइल फोटो.

नई दिल्ली:

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी संसद के बाहर भले ही मुखर हों, लेकिन लोकसभा में पांच साल के दौरान उन्होंने एक भी सवाल नहीं पूछा. वहीं सांसद विकास निधि (एमपी लैड) के पैसे खर्च करने में भी वे काफी पीछे हैं.वहीं विकास के नाम पर राजनीति करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सांसद निधि के जरिए विकास करने में कंजूस दिखे हैं. संसद और सांसदों के कामकाज पर केन्द्रित वेबसाइट ‘पार्लियामेंट्री बिजनेस डाट काम' के अध्ययन के मुताबिक तमाम नेता संसद और संसद के बाहर तो खूब सक्रिय दिखे लेकिन सांसद की सबसे प्रमुख जिम्मेदारी सवाल पूछने के मामले में फिसड्डी साबित हुए. कुल 31 सांसद ऐसे हैं जिन्होंने एक भी सवाल पूछना गवारा नहीं समझा. वेबसाइट ‘पार्लियामेंट्री बिजनेस डाट काम' का लोकार्पण लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने किया था. वेबसाइट ने लोकसभा के बजट सत्र सहित पूरे पांच साल के सभी सत्रों का गहराई से विश्लेषण कर कई रोचक जानकारियां पेश की हैं.

इन्होंने एक भी सवाल नहीं पूछे
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी,वरिष्ठ कांग्रेस नेता सोनिया गांधी,दिग्गज भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी,  शत्रुघ्न सिन्हा,सपा के दिग्गज नेता मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं में एक समानता है कि इनमें से किसी भी नेता ने लोकसभा के पांच साल के कार्यकाल में एक भी सवाल नहीं पूछा.राहुल गांधी ने एमपी लैड की जहां लगभग 60.56 फीसदी राशि खर्च की है तो नरेंद्र मोदी भी महज 62.96 फीसदी रकम खर्च कर पाए हैं. राहुल के नक़्शे कदम पर चलते हुए कांग्रेस के कुल 45 सांसदों ने भी इस मामले भरपूर कंजूसी दिखाई और सांसद विकास निधि का सर्वाधिक उपयोग करने वाले देश के शीर्ष 50 सांसदों में मात्र दो सांसद कांग्रेस के हैं जो 45वें एवं 49वें नंबर पर है।.सांसद निनोंग एरिंग और  डी.के. सुरेश ही इस सूची में स्थान बनाने में कामयाब रहे. वहीं अश्विनी कुमार चौबे,गिरिराज सिंह,मुरली मनोहर जोशी और अनुराग ठाकुर जैसे कुछ सांसद ऐसे भी हैं जिन्होंने एमपी लैड का 95 फीसदी से अधिक इस्तेमाल कर दिखाया.

सवाल पूछने में आगे रहे ये सांसद
लोकसभा में पूछे गए सवालों की बात करें तो ऐसा नहीं है कि सभी सांसद इस मामले में लापरवाह हैं बल्कि सुप्रिया सुले,विजय सिंग मोहिते पाटिल और धनंजय महादिक जैसे सांसद भी हैं जो सवाल पूछने में सबसे आगे हैं. सोलहवीं लोकसभा में कुल 1 लाख 42 हजार से ज्यादा सवाल पूछे गए और इसमें लगभग 93 फीसदी सांसदों की सक्रिय भागीदारी रही. उल्लेखनीय बात यह है कि सर्वाधिक सवाल किसानों की आत्महत्या और उनकी अन्य समस्याओं को लेकर पूछे गए. कुल 171 सांसदों ने किसानों की आत्महत्या पर प्रश्न पूछे.इसके अलावा वित्त,स्वास्थ्य,परिवार कल्याण और रेलवे से सम्बंधित प्रश्न भी ज्यादा पूछे गए. सवालों से ज्यादा सांसदों की रुचि बहस और अन्य संसदीय कामकाज में दिखी और इसमें 94 फीसदी से ज्यादा सांसदों ने भागीदारी दर्ज कराई. इस लोकसभा के पांच सालों में 32,314 बार विभिन्न विषयों पर बहस हुई और भाजपा के बांदा से सांसद भैरो प्रसाद मिश्र ने 2038 बार बहस में अपनी सक्रिय भूमिका निभाकर सबसे आगे रहे.

यदि लोकसभा में हुए कामकाज और बर्बाद हुए समय का विश्लेषण किया जाए तो 16 वीं लोकसभा की उत्पादकता कुल मिलाकर 87 प्रतिशत रही. सबसे अधिक काम 2016 के बजट सत्र में और सबसे कम काम इसी वर्ष हुए शीतकालीन सत्र में हुआ. बजट सत्र में जहां 126 फीसदी काम हुआ वहीं शीतकालीन सत्र में महज 17 प्रतिशत काम हो पाया. लोकसभा में कुल मिलाकर 1659:47 घंटे ही काम हुआ और तक़रीबन 500 से ज्यादा घंटे का समय बर्बाद हुआ. लोकसभा का समय बर्बाद होने का कारण लगातार चलते रहने वाला व्यवधान है. 16 वीं लोकसभा के पांच सालों में कुल 63,443 बार व्यवधान हुआ. इसके अलावा, 609 बार सांसद वेल में पहुंचे और 171 बार बहिर्गमन (वाक् आउट) किया. बार बार के व्यवधानों के कारण 313 बार लोकसभा को स्थगित करना पड़ा. दिलचस्प बात तो यह है कि सतत व्यवधान के कारण सांसद लोकसभा में कम रहते हैं और इसके फलस्वरूप 191 बार तो कोरम पूरा करने के लिए घंटी बजानी पड़ी.

इतने बिल पास हुए
16 वीं लोकसभा में 219 गवर्मेंट बिल रखे गए और इनमें से 93 प्रतिशत पास हो गए जबकि प्राइवेट मेंबर बिल की अनदेखी का सिलसिला इस लोकसभा में भी चलता रहा और 1117 प्राइवेट मेंबर बिल में से एक भी पास नहीं हो पाया जबकि इसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ओर के सांसदों की भागीदारी थी. जहां तक लोकसभा में उपस्थिति की बात है तो इन पांच सालों में औसतन 80 फीसदी उपस्थिति दर्ज की गयी. इसमें पुरुष सांसदों की मौजूदगी 80.34 प्रतिशत और महिला सांसदों की उपस्थिति 77.98 फीसदी रही. यदि पार्टी वार सांसदों की उपस्थिति की बात करें तो सत्तारूढ़ भाजपा के सांसद उपस्थिति के मामले में पांचवे तो मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के सांसद संसद में मौजूदगी के मामले में 21 वें स्थान पर रहे. व्यक्तिगत उपलब्धि के तौर पर देखे तो भाजपा के भैरो प्रसाद मिश्र और बीजू जनता दल के डा कुलमणि सामल ने सौ फीसदी उपस्थित रहकर शत प्रतिशत उपस्थिति दर्ज कराई. युवा सांसद ने भी उपस्थिति के मामले में ज्यादा रूचि नहीं दिखाई जबकि पहली बार के सांसद बढ़ चढ़कर संसद पहुंचे. 

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30 फीसद धनराशि नहीं हुई खर्च
जहां तक सांसद विकास निधि के खर्च की बात है तो अब तक 30 फीसदी से अधिक निधि बिना खर्च हुए सरकारी खजाने की शोभा बढ़ा रही है. कहने का तात्पर्य यह है कि सांसदों को हर साल मिलने वाली विकास राशि भी पूरीतरह से खर्च नहीं हो पायी. एमपी लैड पर सरकार की ही वेबसाईट पर उपलब्ध आकंड़ों के अनुसार 10 जनवरी 2019 तक बिना खर्च हुए 4021.13 करोड़ रुपये जमा हैं. सांसद विकास निधि खर्च करने में महिला सांसद बेहतर हैं उन्होंने 72 फीसदी राशि खर्च कर दी जबकि पुरुष सांसद 69.33 प्रतिशत राशि ही खर्च कर पाए. राजस्थान,महाराष्ट्र,दिल्ली और उत्तराखंड के सांसद इस राशि को खर्च करने के मामले में सबसे फिसड्डी हैं.