भारतीय रेलवे का सफर : यात्रीगण कृपया ध्यान दें... अब वित्तमंत्री देंगे किराये में बदलाव की जानकारी...

भारतीय रेलवे का सफर : यात्रीगण कृपया ध्यान दें... अब वित्तमंत्री देंगे किराये में बदलाव की जानकारी...

प्रतीकात्मक फोटो

खास बातें

  • सन 1924 में पेश पहले रेल बजट की राशि आम बजट से ज्यादा थी
  • बाबू जगजीवन राम ने सबसे अधिक सात बार पेश किया रेल बजट
  • संविधान में अलग रेल बजट का प्रावधान नहीं, होगा आम बजट में विलय
नई दिल्ली:

भारतीय रेलवे सिर्फ परिवहन का एक माध्यम नहीं है. यह तो एक ऐसा संजाल है जो शरीर में रक्त प्रवाहित करने वाली धमनियों की तरह देश के कोने-कोने को जोड़ता है. भारत में रेलवे के 164 साल के इतिहास में एक अहम पड़ाव 2017 में आएगा जब रेलवे का अपना अलग बजट नहीं होगा और वह देश के आम बजट का ही एक हिस्सा बन जाएगा. अब रेल मंत्री का संसद में भाषण नहीं होगा. अब आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ही बताएंगे कि कि रेल किराये में क्या बदलाव किया जा रहा है...या कहां, कौन सी नई ट्रेन शुरू की जा रही हैं...

रेलवे के आय-व्यय का ब्योरा होगा आम बजट का हिस्सा
भारत में पहली यात्री ट्रेन 16 अप्रैल 1853 को महाराष्ट्र में मुंबई से ठाणे तक चलाई गई थी. तब किसी ने शायद ही यह कल्पना की होगी कि भविष्य में रेलवे वह मुकाम हासिल कर लेगा कि उसका अलग से बजट बनाने की जरूरत होगी. रेलवे ने शुरुआती 67 साल में विकास का इतना तेज सफर तय किया कि इसके पृथक बजट की जरूरत बन गई. वर्ष 1920-21 में दस सदस्यीय एकवर्थ समिति के सुझाव पर रेल बजट को आम बजट से अलग कर दिया गया. इस समिति के अध्यक्ष अर्थशास्त्री विलियम मिशेल एकवर्थ थे. इसके बाद सन 1924 में पहली बार अलग रेल बजट पेश किया गया. खास बात यह भी थी कि 1924 में पेश पहले रेल बजट की राशि आम बजट से ज्यादा थी. पिछले 92 वर्षों से पृथक रेल बजट की यह परंपरा जारी थी जो कि अब इतिहास बन जाएगी. वित्तीय वर्ष 2017-18 में रेलवे के आय-व्यय का ब्योरा आम बजट का ही एक हिस्सा होगा.   

ट्रेनों में चौबीसों घंटे स्पंदित होता है भारत
पिछले डेढ़ सदी से अधिक लंबे अरसे में भारतीय रेलवे ने कई मुकाम हासिल किए हैं. रेलवे भारतीय जीवनशैली का अहम हिस्सा बन चुका है. प्रतिदिन लाखों की तादाद में लोग परिवहन के लिए रेलवे का उपयोग करते हैं. इसके अलावा माल ढुलाई के लिए भी यह सबसे बड़ा साधन है. देश को एक सूत्र में बांधने वाला यह माध्यम भारत की विविधतापूर्ण संस्कृतियों को भी जोड़ता है. दूर देशों से आने वाले पर्यटक समूची भारतीय सांस्कृतिक परंपरा का दर्शन तो ट्रेन की बोगियों में ही कर लेते हैं. खानपान, रहन-सहन, पहनावा, भाषाएं-बोलियां, धार्मिक परंपराएं...क्या नहीं है, जो रेलवे में दिखाई नहीं देता. वास्तव में भारत ट्रेनों में चौबीसों घंटे स्पंदित होता रहता है.  

जॉन मथाई थे स्वतंत्र भारत के पहले रेल मंत्री
भारतीय रेलवे के विकास में ब्रिटिश हुकूमत का अहम योगदान रहा है. सन 1853 से 1947 तक 94 वर्षों में रेलवे का महत्वपूर्ण ढांचागत विकास हुआ. देश की स्वतंत्रता के साथ भारतीय रेलवे ने नया सफर शुरू किया. स्वतंत्रता के साथ रेलवे को अधिक स्वायत्तता मिली. साल 1947 में आजादी मिलने के बाद जॉन मथाई देश के पहले रेल मंत्री बनाए गए. भारतीय संविधान में रेल बजट का कोई उल्लेख नहीं है. अनुच्छेद 112 और 204 के तहत रेल बजट लोकसभा में पेश किया जाता है. यह दोनों अनुच्छेद आम बजट से जुड़े हैं.

24 मार्च 1994 को देश ने पहली बार टीवी पर देखा सीधा प्रसारण
बाबू जगजीवन राम सन 1956 से 1962 तक रेल मंत्री रहे. उन्होंने निरंतर सात सालों तक रेल बजट पेश किया. सबसे ज्यादा बार रेल बजट पेश करने का रिकॉर्ड उन्हीं के नाम पर है. रेलवे ने दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित रेलवे सूचना प्रणाली (सीआरआईएस) में पहली बार सन 1986 में आरक्षण प्रणाली की शुरुआत की थी. रेलवे के विकास का अगला अहम पड़ाव तब आया जब इसे पेश करने की प्रक्रिया का जीवंत प्रसारण शुरू हुआ. आम बजट से अलग होने के 70 साल बाद पहली बार 24 मार्च, 1994 को रेल बजट का टेलीविजन पर सीधा प्रसारण हुआ. तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार में रेलमंत्री जाफर शरीफ थे. इस प्रसारण ने लोगों में रेलवे और उसके बजट को लेकर जिज्ञासाएं शांत कीं और उन्हें रेलवे के बारे में ज्यादा जानकार बनाया. सबसे ज्यादा बार रेल बजट पेश करने के मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी के प्रमुख लालूप्रसाद यादव का नाम बाबू जगजीवन राम के बाद आता है. उन्होंने रेलमंत्री रहते हुए लगातार छह बार रेल बजट पेश किया. लालूप्रसाद यादव संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में सन 2004 से 2009 तक रेल मंत्री थे.

यादगार दिन बना 25 फरवरी 2016
सन 2000 में जब भारत 21 वीं सदी में कदम रख रहा था तब भारतीय रेलवे ने भी एक नया इतिहास रचा. तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और बंगाल की मौजूदा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सन 2000 में रेलवे की पहली महिला मंत्री बनीं. मौजूदा रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने 25 फरवरी, 2016 को पिछला रेल बजट पेश किया था. यह रेल बजट अब इतिहास में दर्ज हो गया क्योंकि यह अंतिम रेल बजट था.          

13 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देता है रेलवे
रेलवे देश के आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है. भारतीय रेल सार्वजनिक क्षेत्र का देश का सबसे बड़ा उपक्रम है. रेलवे करीब 13.6 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करता है. भारतीय रेल बजट को भारतीय संसदीय प्रणाली की एक अनूठी खासियत माना जाता रहा है. भारत दुनिया का ऐसा पहला देश है जहां परिवहन क्षेत्र के लिए एक विशेष बजट का प्रावधान रहा है. रेल बजट लोकसभा में धन विधेयक के रूप में रेल मंत्री द्वारा पेश किया जाता रहा है. आम तौर पर रेल बजट आम बजट से कुछ दिन पहले प्रस्तुत किया जाता रहा है.

अब सुनने नहीं मिलेगा रेलमंत्री का भाषण    
रेल बजट के आम बजट में विलय के बाद अब रेल बजट पर रेल मंत्री का भाषण सुनने को नहीं मिलेगा. अब संसद में सिर्फ आम बजट ही पेश होगा. वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले इस बजट में रेलवे से जुड़े प्रस्ताव भी शामिल होंगे. यह एक विनियोजन विधेयक होगा. रेलवे के आय-व्यय पर सदन में अलग से चर्चा होगी. वित्त मंत्रालय ही रेलवे की सिफारिशों के आधार पर उसका बजट निश्चित करेगा. फिलहाल दोनों मंत्रालयों के अधिकारों का बंटवारा नहीं हुआ है. वित्त मंत्री अरुण जेटली के मुताबिक यात्री किराया और माल भाड़ा बढ़ाने से जुड़े फैसले रेलवे लेगा. किराये से जुड़े फैसलों के लिए रेल टैरिफ अथॉरिटी बनने की संभावना जाहिर की जा रही है.

क्यों समाप्त हुआ पृथक रेलवे बजट...    
रेल बजट को समाप्त करने के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं. इनमें एक प्रमुख कारण तो इस व्यवस्था का संविधान में प्रावधान न होना है, लेकिन इसके साथ-साथ रेल बजट का राजनीतिक दुरुपयोग भी अहम कारण है. रेलवे वह विभाग है जिसके जरिए कई नेता राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते रहे हैं. जन-जन से जुड़ा रेलवे, आम जन को बहुत प्रभावित करता है. रेल चूंकि सभी पर असर डालती है इसलिए यह वोटों को भी प्रभावित करती है. यही कारण है कि रेल मंत्रालय पाने के लिए हमेशा प्रतिस्पर्धा रही है. जिस राज्य का रेलमंत्री, उस राज्य को रेलवे की सौगातें...यह सिलसिला लंबे अरसे से चल रहा है. हाल के वर्षों में, खास तौर पर 1996 के बाद आईं गठबंधन सरकारों में बड़े राजनीतिक वजूद वाले नेताओं ने रेल बजट का इस्तेमाल अपनी छवि चमकाने में किया. रेल बजट में रेल मंत्री की राजनीतिक प्राथमिकताओं को ही ज्यादा तवज्जो मिलती रही.
 
रेल बजट की परंपरा खत्म करने पर चर्चा नीति आयोग के सदस्य विवेक देबराय और किशोर देसाई की सलाह के बाद शुरू हुई. उन्होंने रेल बजट पर विराम लगाने की सलाह दी. प्रधानमंत्री कार्यालय ने देबराय को रेल बजट के आम बजट में विलय की योजना की रूपरेखा तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी. देबराय की रिपोर्ट में कहा गया है कि संविधान में अलग रेल बजट की बात नहीं है. रेल बजट के विलय से रेलवे के राजनीतिकरण पर रोक लगेगी.


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