इस साल 10 % से कम हुई बारिश, नुकसान की भरपाई मुश्किल : मौसम विभाग

इस साल 10 % से कम  हुई  बारिश, नुकसान की भरपाई मुश्किल : मौसम विभाग

प्रतीकात्मक तस्वीर

मुंबई:

मौसम विभाग के डायरेक्टर बी पी यादव ने एनडीटीवी इंडिया से एक ख़ास बातचीत में इस साल अब तक हुई बारिश और मॉनसून की स्थिती पर चर्चा की।  मौसम विभाग के अनुसार इस साल1 जून से 16 अगस्त के बीच दक्षिणी पश्चिमी मॉनसून सीज़न के दौरान  पूरे देश में औसत से 10 फीसदी कम बारिश हुई और इसको लेकर चिंता लगातार बढ़ रही है।

सबसे ज़्यादा चिंता मराठवाड़ा, मध्य महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों को लेकर है, जहां अगले एक हफ़्ते में बारिश में सुधार होने का गुमान नहीं है। मौसम विभाग के निदेशक के अनुसार,  मराठवाड़ा, मध्य महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक, रायलसीमा और तेलांगना में अगले एक हफ़्ते में इतनी बारिश नहीं होगी जिससे नुकसान की भरपाई हो सके।

हालांकि उत्तरी भारत के कच्छ इलाकों में अच्छी बारिश का अनुमान है। बीपी यादव कहते हैं, 'अगले 4-5 दिनों में यूपी और बिहार में अच्छी बारिश होगी और जो बारिश में अब तक की कमी रिकॉर्ड की गई है वो यहां कम होगी।' असम और मेघालय में भी अच्छी बारिश का अनुमान है और वहां भी बारिश में कमी रिकॉर्ड किया गया है।'

मौसम विभाग का अनुमान है कि अगस्त में औसत 8 % कम बारिश होगी। अगले 4-5 दिनों में यूपी-बिहार में अच्छी बारिश होगी और जो बारिश में कमी अब तक दर्ज की गई है उसमें कमी आएगी।

मौसम विभाग के अनुसार इस साल देशभर में अब तक हुई बारिश के बाद जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, उसके अनुसार इस साल बारिश में 10 % की कमी आयी है।  ऐसा लगातार मज़बूत हो रहे अल-नीनो की मौसम पद्धति के कारण भी हो रहा है, जिसने काफी हद तक बारिश के प्रतिशत को कम कर दिया है।  इस ट्रेंड के कारण इस बात का भी डर पैदा हो गया है कि देश में पिछले छह साल में पहली बार सूखा पड़ सकता है।

जून से सितंबर महीने तक होने वाली मॉनसून की बारिश पर ही किसानों की आमदनी तय होती है। यही वो समय होता है जब देशभर के किसान खेतों में जुताई में लग जाते हैं।

हालांकि भारत की  2 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में कृषि का कुल प्रतिशत 15 ही है लेकिन भारत की कुल आबादी का तीन चौथाई हिस्सा यानि 1.25 बिलियन लोग आज भी कृषि के सहारे ही अपनी आजीविका चलाते हैं।

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मौसम विभाग के एक अधिकारी के अनुसार बारिश के इस हफ़्ते भी देश के विभिन्न शहरों में काफी हद तक कम रहने की संभावना है,  जिसका सीधा असर गर्मियों में बोयी फसलों की पैदावार पर पड़ेगा। ये फसल मुख़्य तौर पर कपास, तिलहन, धान और दालें हैं।