रजनीकांत की "आध्यात्मिक राजनीति" DMK की तुलना में AIADMK के लिए अधिक परेशानी का कारण

तमिलनाडु में अगले साल के शुरू में विधानसभा चुनाव होंगे, अन्नाद्रमुक एक दिग्गज नेता की कमी और सत्ता-विरोधी माहौल से जूझ रही है

रजनीकांत की

दक्षिण के सुपर स्टार रजनीकांत ने कहा है कि वे जनवरी में अपनी राजनीतिक पार्टी लॉन्च करेंगे.

चेन्नई:

तमिलनाडु (Tamil Nadu) में सुपरस्टार रजनीकांत (Rajinikanth) की "आध्यात्मिक राजनीति" की टैगलाइन है. इस पर कई लोगों का कहना है कि राज्य में सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक (AIADMK) को इससे काफी नुकसान हो सकता है. उनका कहना है कि जे जयललिता (J Jaylalitha) की मृत्यु के बाद पिछले कुछ वर्षों में अन्नाद्रमुक एक मजबूत नेता की कमी से जूझ रही है. पिछले नौ वर्षों से पार्टी के सत्ता में होने से यह सत्ता-विरोधी लहर माहौल भी झेल रही है. 69 वर्षीय फिल्म स्टार रजनीकांत की 'लार्जर देन लाइफ' छवि के कारण उसका कैडर उनकी ओर आकर्षित हो सकता है.

आलोचक रजनीकांत को बीजेपी की "बी-टीम" करार दे रहे हैं. भले ही रजनीकांत अकेले चुनाव लड़ें या फिर अन्नाद्रमुक-बीजेपी गठबंधन को समर्थन दे दें, विपक्षी द्रमुक (DMK) अल्पसंख्यक मतदाताओं के बलबूते अपना जनाधार बरकरार रखने के लिए आशान्वित है. 

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार जीसी शेखर ने NDTV को बताया कि "रजनीकांत की आध्यात्मिक राजनीति का ब्रांड अन्नाद्रमुक, जो कि मंदिर जाने वाले हिंदुओं से भरी है, को भारी नुकसान पहुंचाएगा. रजनीकांत की एंट्री द्रमुक की तुलना में अन्नाद्रमुक को काफी हद तक प्रभावित करेगी."

अभिनेता से नेता बने कमल हासन रजनीकांत से बहुत पहले राजनीति के क्षेत्र में आ चुके हैं. वे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई, रोजगार और गांवों के विकास के मुद्दों पर जोर दे रहे हैं. कमल हासन भी विधानसभा चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करने की उम्मीद करते हैं. उनकी पार्टी MNM ने लोकसभा चुनाव में लगभग चार प्रतिशत वोट हासिल किए थे.

यह दो दिग्गजों जे जयललिता और एम करुणानिधि की मृत्यु के बाद तमिलनाडु में पहला विधानसभा चुनाव होगा. इन नेताओं के निधन के बाद पहले लोकसभा चुनावों में द्रमुक ने जीत हासिल की और अन्नाद्रमुक को हार का सामना करना पड़ा. दोनों फिल्मी सितारे अपनी राजनीतिक जमीन बनाने की उम्मीद कर रहे हैं.

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हालांकि तमिलनाडु में तीसरा मोर्चा सफल नहीं हुआ है, लेकिन रजनीकांत की घोषणा के बारे में दोनों द्रविड़ कट्टर प्रतिद्वंद्वियों को निश्चित रूप से परेशानी में डाल दिया है. साल 1996 में रजनीकांत के एक लाइन के बयान ने जयललिता को हरा दिया था और डीएमके को सत्ता में भेजा था. दो दशक बाद आगामी चुनाव इस सुपरस्टार के राजनीतिक करिश्मे के लिए लिटमस टेस्ट हो सकता है.