यह ख़बर 05 सितंबर, 2011 को प्रकाशित हुई थी

राजीव केस : मुख्य जांचकर्ता मौत की सजा को बदलने के पक्ष में

खास बातें

  • राजीव गांधी के हत्यारों को माफी के मुद्दे पर मुख्य जांचकर्ता डी आर कार्तिकेयन तीनों आरोपियों की मौत की सजा को बदल कर आजीवन कारावास करने के पक्ष में हैं।
नई दिल्ली:

राजीव गांधी के हत्यारों को माफी के मुद्दे पर उपजी बहस के बीच 20 साल पुराने इस मामले के मुख्य जांचकर्ता डी आर कार्तिकेयन तीनों आरोपियों की मौत की सजा को बदल कर आजीवन कारावास करने के पक्ष में हैं। तमिलनाडु में इन हत्यारों की मौत की सजा को बदलने की अपील ने भावनात्मक रूप ले लिया है। पूरे मुद्दे पर उपजी बहस के बीच कार्तिकेयन ने सुझाव दिया है कि संसद का एक विशेष सत्र बुला कर मौत की सजा से जुड़ी नीतियों पर विचार-विमर्श करना चाहिए क्योंकि क्षेत्रीय आधार पर लिए गए फैसलों से एक खतरनाक परंपरा स्थापित हो सकती है। उन्होंने कहा, मुझे उनसे व्यक्तिगत तौर पर कोई लेना-देना नहीं है। मैंने अपना काम किया, अब सरकार को उनका काम करने दीजिए। अगर उनकी मौत की सजा को बदल कर आजीवन कारावास में बदल दिया जाए, तो मुझे खुशी होगी । राजीव गांधी की मौत के एक दिन बाद कार्तिकेयन से इस मामले की जांच करने वाले विशेष जांच दल का प्रभार लेने को कहा गया था। राजीव की हत्या को एक साल पूरा होने के एक दिन पहले उनके दल ने आरोपपत्र दाखिल कर दिया, जिसमें आरोपियों के तौर पर 41 लोगों का नाम दिया गया। पूर्व पुलिस अधिकारी कार्तिकेयन ने कहा कि नलिनी श्रीहरन की मौत का सजा बदले जाने से तीन अन्य आरोपियों को भी मदद मिल सकती है, जिनकी दया याचिका को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने खारिज कर दिया है। उच्चतम न्यायालय ने मुरुगन, संथन, पेरारिवलन और नलिनी को 1999 में मौत की सजा सुनाई थी। मद्रास उच्च न्यायालय ने पिछले दिनों इन तीनों की मौत की सजा को आठ सप्ताह के लिए टाल दिया है। इन तीनों को नौ सितंबर को फांसी दी जानी थी। कार्तिकेयन ने कहा, उनके पास मुद्दा तो है क्योंकि एक कैदी की मौत की सजा को बदल कर उम्रकैद कर दिया गया है। इसके अलावा वे 20 साल से जेल में है, उनकी दया याचिका पर फैसले में भी 11 साल का समय लगा है, वे अनिश्चितता का एक लंबा दौर गुजार चुके हैं। पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त अधिकारी ने मौत की सजा पर एक समान नीति बनाने की जरूरत पर बल दिया और ऐसे मामलों में किसी प्रकार के चयनात्मक आधार के खिलाफ आगाह भी किया। उन्होंने कहा, मौत की सजा पर विचार-विमर्श करने के लिए संसद का एक विशेष सत्र बुलाया जाना चाहिए। इस बारे में क्षेत्रीय आधार पर फैसला नहीं होना चाहिए। इसके खतरनाक परिणाम होंगे और यह देश को विभाजित भी कर सकता है । दया याचिकाओं के निपटारे में देरी पर निराशा जताते हुए उन्होंने इसके लिए सरकार को दोषी ठहराया। जांच के दौरान के समय को याद करते हुए उन्होंने कहा, मुझे लिट्टे से ज्यादा परेशानी कई हाईप्रोफाइल नेताओं के कारण आई। वे जांच को पटरी से उतारने की कोशिश कर रहे थे, ताकि उनके राजनीतिक उद्देश्य पूरे हों। वह मेरे लिए मानसिक वेदना थी।


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