यह ख़बर 28 मार्च, 2011 को प्रकाशित हुई थी

एक-दूसरे की जमकर चुटकी ली रमेश, मोंटेक, खुर्शीद ने

खास बातें

  • बाघों की गणना के आंकड़े जारी करने के लिए हुए एक कार्यक्रम में पर्यावरण और वन राज्य मंत्री रमेश ने बतौर अतिथि अहलूवालिया और खुर्शीद को आमंत्रित किया था।
नई दिल्ली:

पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने सोमवार को एक कार्यक्रम में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया और जल संसाधन मंत्री सलमान खुर्शीद को मज़ाकिया अंदाज में पर्यावरण के लिये खतरा करार दिया और इसके बाद तीनों ने एकदूसरे की जमकर चुटकी ली। बाघों की गणना के आंकड़े जारी करने के लिए हुए एक कार्यक्रम में पर्यावरण और वन राज्य मंत्री रमेश ने बतौर अतिथि अहलूवालिया और खुर्शीद को आमंत्रित किया था। उन्होंने कार्यक्रम की शुरुआत में कहा कि अहलूवालिया और खुर्शीद को इसलिये आमंत्रित किया गया है, क्योंकि वे दोनों उन्हें पर्यावरण के लिये खतरा लगते हैं। रमेश की इस टिप्पणी पर सभागार में ठहाके लगे। बाद में जब खुर्शीद की बारी आयी तो उन्होंने कहा, जहां तक संख्या की बात है तो सिर्फ बाघों की संख्या ही बढ़नी चाहिए। जनसंख्या को लेकर हमें संवेदनशील रहना होगा। ..मैं खतरा नहीं हूं। मैं प्रोजेक्ट टाइगर का हिमायती हूं। खुर्शीद यही नहीं रूके। उन्होंने रमेश का नाम लिए बिना कहा कि हमारी सरकार में भी एक बाघ मंत्री है जो न सिर्फ बाघों से जुड़े मामले देखता है, बल्कि उसमें बाघों जैसे लक्षण भी हैं। ..अस्तित्व का खतरा है, इसलिये हम भी इस बाघ के लिये अपनी तरह की कैमरा ट्रैकिंग और पगमार्किंग करते हैं। खुर्शीद ने कहा, मैं आश्वस्त कराता हूं कि मैं खतरा नहीं हूं। मैंने आज तक एक चिड़िया भी नहीं मारी। मैं वन्यजीव संरक्षण का हिमायती हूं। खुद को पर्यावरण के लिये खतरा बताने की रमेश की टिप्पणी का जवाब उन्होंने इस शेर की पंक्तियों से दिया..ज़ाहिद-ए-तंग नज़र ने काफि़र क्यूं माना मुझे। जब अहलूवालिया की बारी आयी तो उन्होंने भी चुटकी लेते हुए कहा, सलमान और मैं आखिर क्यों खतरा हैं। ..मैं शायद विकास संबंधी गतिविधियों के लिये खतरा हूं। लेकिन सलमान जल संसाधन मामलों के लिये खतरा हैं या कॉरपोरेट मामलों के लिये। जल संसाधन मंत्री खुर्शीद के पास केंद्रीय मंत्रिपरिषद में पिछली बार हुए फेरबदल से पहले कॉरपोरेट मामलों का प्रभार था। अहलूवालिया की टिप्पणी के बाद रमेश ने कहा कि मोंटेक हाल ही में दादा बने हैं। लिहाजा, वह भी अब संरक्षण की चिंता करने लगे हैं। यही कारण है कि मोंटेक इन दिनों पन्ना बाघ संरक्षित क्षेत्र जैसे स्थानों पर जाने लगे हैं। हालांकि, इस चर्चा का रुख मोड़ते हुए रमेश ने कहा कि उन्होंने खतरे की बात इसलिये कही क्योंकि विकास गतिविधियों के नाम पर खनन माफिया और भू-माफिया बाघों के समक्ष खतरा खड़ा कर रहे हैं। उन्होंने कहा, हम नौ फीसदी आर्थिक वृद्धि दर की बात करते हैं, जिसके लिये उर्जा जरूरी है लेकिन कोयले से बिजली बनाने के लिये वन क्षेत्रों में खनन की इजाजत देनी होगी और पनबिजली के लिये बड़े क्षेत्र को डूबो देने वाली सिंचाई परियोजनाएं मंजूर करनी होंगी। रमेश ने कहा, विकास बनाम पर्यावरण की लड़ाई योजना आयोग को भी लड़नी होगी। हमें बीच का रास्ता निकालना होगा। उन्होंने खुर्शीद से कहा, केन-बेतवा लिंक परियोजना से मध्य प्रदेश में पन्ना बाघ संरक्षित क्षेत्र का बड़ा हिस्सा डूब जायेगा। इसी तरह झारखंड में सिंचाई परियोजना से वाल्मीकि बाघ संरक्षित क्षेत्र जलमग्न हो जायेगा। रमेश ने उम्मीद जतायी कि अहलूवालिया बजटीय आवंटन में बाघों के मुद्दे को ध्यान में रखेंगे और खुर्शीद भी बाघों के संबंध में पत्राचार पर उचित प्रतिक्रिया देंगे।


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