वैज्ञानिक माधवन नायर की चिंता, 'नैनो उपग्रहों का कचरा बन सकता है सक्रिय उपग्रहों के लिए खतरा'

वैज्ञानिक माधवन नायर की चिंता, 'नैनो उपग्रहों का कचरा बन सकता है सक्रिय उपग्रहों के लिए खतरा'

जी. माधवन नायर के कार्यकाल में इसरो ने चंद्रमा पर चंद्रयान मिशन लॉन्च किया था

नई दिल्ली:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने हाल ही में एकसाथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित कर इतिहास रच दिया है लेकिन, इस अभियान का एक नकारात्मक पहलू भी है, जो चिंता का विषय है. वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक माधवन नायर का कहना है कि नैनो उपग्रह अंतरिक्ष में कचरा बढ़ा रहे हैं और यह कचरा सक्रिय उपग्रहों के लिए खतरा हो सकते हैं. साथ ही उन्होंने चिंता जाहिर की कि अगर इन नैनो उपग्रहों से किसी सक्रिय उपग्रहों को नुकसान होता है तो उसकी भरपाई भारत को करनी होगी.

इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर के कार्यकाल में इसरो ने चंद्रमा पर चंद्रयान मिशन लॉन्च किया था. नायर का मानना है कि इसरो के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के नवीनतम मिशन से अंतरिक्ष में उसके ही उपग्रहों को कुछ संभावित खतरे पैदा हो सकते हैं.

बता दें कि इसरो ने 15 फरवरी को विदेशी ग्राहकों के लिए एक रकम लेकर अंतरिक्ष में 100 से अधिक नैनो और माइक्रो उपग्रह छोड़े थे. इनमें से 'डोव्स' नामक 88 उपग्रह सैन फ्रांसिस्को की एक स्टार्ट-अप 'प्लैनेट' के हैं. इन सभी छोटे उपग्रहों को, जिनका आकार एक ब्रीफकेस से भी छोटा है, पीएसएलवी के जरिए एक सफल अभियान के तहत पृथ्वी से 506 किलोमीटर ऊपर एक ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया गया है.

नायर ने कहा, "मैं थोड़ा चिंतित हूं, क्योंकि जिस स्थान पर इन्हें स्थापित किया गया है, यह वही स्थान है, जहां हमारे भू-अवलोकन उपग्रह हैं या होंगे."

नायर ने कहा कि नैनो उपग्रहों का उपयोगी जीवन बेहद कम होता है, जिसके बाद वे कचरा बन जाते हैं और अंतरिक्ष में उसी कक्षा में घूमते रहते हैं. एक ही स्थान पर होने के कारण इनका इसरो के सक्रिय उपग्रहों से टकराने का खतरा बना रहता है.

नायर ने कहा, "अंतरिक्ष में थोड़े समय रहने के बाद ये नैनो उपग्रह, जो मलबा छोड़ते हैं, हमारे लिए खतरा बन सकते हैं. हमारे उपग्रहों की सुरक्षा ज्यादा जरूरी है."

पूर्व इसरो अध्यक्ष ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि इसरो को 500 किलोमीटर की कक्षा में विदेशी नैनो उपग्रहों की लॉन्चिंग से होने वाले कुछ लाख डॉलर के लाभ को, वर्तमान और भविष्य में उनके मार्गो के करीब स्थापित भू-अवलोकन उपग्रहों को होने वाले संभावित खतरे से नाप-तोल कर देखना चाहिए.

उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में इन नैनो उपग्रहों में से किसी के भी मलबे और किसी अन्य देश के सक्रिय उपग्रह से टकराने की स्थिति में भारत को इसकी भरपाई करनी पड़ेगी.

नायर 'अंतरिक्ष दायित्व संकल्प' का जिक्र कर रहे थे, जो 1972 में प्रभावी हुआ था। इसके तहत उपग्रह छोड़ने वाले देशों को अपने क्षेत्र से छोड़े गए उपग्रहों की "अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी लेनी होगी, चाहे वह उपग्रह किसी भी देश का हो."

नायर ने कहा कि कम समय तक उपयोगी रहने वाले नैनो उपग्रहों को अगर लॉन्च किया जाए तो उन्हें निचली कक्षाओं में ही स्थापित किया जाना चाहिए. पृथ्वी की निचली कक्षाओं में उत्पन्न हुआ कोई भी कचरा वायुमंडलीय प्रभाव से धरती पर आ जाएगा और काम कर रहे उपग्रहों के लिए कोई खतरा नहीं बनेगा.

उन्होंने कहा कि छोटे और नैनो उपग्रहों के लिए एक कक्षा निर्धारित करने के इस मुद्दे को बाहरी अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग से संबंधित संयुक्त राष्ट्र की समिति में उठाया जाना चाहिए.

विभिन्न मंचों के अंतरिक्ष मलबा विशेषज्ञों ने नायर की चिंता का समर्थन किया है. टोरंटो में हुए एक 'इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉटिकल कांग्रेस' में यूनिवर्सिटी ऑफ साउथंपटन के दिग्गज अंतरिक्ष मलबा विशेषज्ञ, हग लुईस ने कहा था कि 2005 से अब तक क्यूबसैट्स 3,60,000 से भी अधिक बार बिल्कुल टकराते-टकराते बचे हैं.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)


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