SP में संग्राम : पार्टी में 'साइकिल' के सिंबल पर कब्‍जे के संघर्ष से याद आया इंदिरा गांधी का दौर

SP में संग्राम : पार्टी में 'साइकिल' के सिंबल पर कब्‍जे के संघर्ष से याद आया इंदिरा गांधी का दौर

1969 में कांग्रेस में विभाजन हो गया था

सपा में वर्चस्‍व की जंग अब पार्टी के 'सिंबल' पर कब्‍जे के रूप में तब्‍दील होती दिख रही है. सपा में रविवार को हुए तख्‍तापलट के बाद अब मुलायम खेमा और अखिलेश कैंप पार्टी के चुनाव चिन्‍ह 'साइकिल' पर कब्‍जे के लिए चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटा रहे हैं.

अब चुनाव आयोग को इस मामले में निर्णय लेना होगा कि वास्‍तव में असली समाजवादी पार्टी इन दोनों धड़ों में किसकी है? लेकिन उसके लिए समय की दरकार है जब‍कि अगले चंद दिनों में आयोग चुनाव तारीखों का ऐलान करने वाला है. ऐसे में सबसे बड़ी बात यह मानी जा रही है कि फैसला नहीं आने की स्थिति में आयोग इस 'साइकिल' चिन्‍ह को सीज़ कर ले और ऐसी सूरतेहाल में दोनों गुटों को अलग-अलग चुनाव चिन्‍हों के साथ आगामी चुनावों में मैदान में उतरना होगा.  

कांग्रेस में जब हुई बगावत...
भारत के सियासी इतिहास में इससे पहले भी यह स्थिति आ चुकी है. दरअसल 1969 कांग्रेस में वर्चस्‍व की लड़ाई में इंदिरा गांधी गुट और कांग्रेस के पुराने नेताओं (सिं‍डीकेट ग्रुप) में जबर्दस्‍त संघर्ष हुआ. पार्टी कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आर) में विभाजित हो गई. इंदिरा गांधी का गुट कांग्रेस (आर) के नाम से जाना गया. इस गुट ने कांग्रेस के चुनाव चिन्‍ह 'बैल' को अपनाने की कोशिश की लेकिन कांग्रेस (ओ) ने इसका विरोध किया. नतीजतन इंदिरा गांधी को कांग्रेस का परंपरागत सिंबल नहीं मिल पाया. इसके चलते इंदिरा गांधी को 'गाय और बछड़ा' चुनाव चिन्‍ह चुनना पड़ा.

उसके बाद देश में आपातकाल (1975-77) के बाद कांग्रेस में पनपे असंतोष के चलते पार्टी में एक बार फिर विभाजन हुआ और इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आई) का गठन किया. कांग्रेस आई को चुनाव चिन्‍ह 'पंजा' मिला. तब से आज तक यही कांग्रेस का चुनाव चिन्‍ह है.


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