गर्भपात में देरी पर बलात्कार पीड़िता को 10 लाख रुपये का मुआवजा दे बिहार सरकार- सुप्रीम कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को बलात्कार पीड़ित महिला को दस लाख रुपये बतौर मुआवजा देने के आदेश दिए हैं. 

गर्भपात में देरी पर बलात्कार पीड़िता को 10 लाख रुपये का मुआवजा दे बिहार सरकार- सुप्रीम कोर्ट का आदेश

बलात्कार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट और सरकारी अस्पताल पर गहरी नाराजगी जताई है

खास बातें

  • पटना में पीड़ित महिला को 12 साल पहले पति ने छोड़ दिया था
  • वह बलात्कार की शिकार हुई, और उसे गर्भ ठहर गया था
  • सुप्रीम कोर्ट ने बिहार हाईकोर्ट और बिहार सरकार पर जताई नाराजगी
नई दिल्ली:

पटना की एचआईवी और बलात्कार पीडित महिला के गर्भपात कराने की याचिका पर फैसले में देरी करने पर सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट और सरकारी अस्पताल पर गहरी नाराजगी जताई है. कोर्ट ने बिहार सरकार को इस महिला को दस लाख रुपये बतौर मुआवजा देने के आदेश दिए हैं. 

जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अमिताव रॉय और जस्टिस एएम खानवेलकर की बेंच ने कहा कि ये दुखद है कि महिला को लगातार गंभीर मानसिक यंत्रणा से गुजरना पड़ा और ये जख्म जारी ही रहा. इस महिला के हालात अब वापस नहीं किए जा सकते. लेकिन अब उसे ऐसा मुआवजा दिया जाना चाहिए जिससे वो अपनी जिंदगी गरिमा से जी सके और राज्य को ये समझ में आना चाहिए कि ऐसे मामलों में कामचोरी के लिए कोई जगह नहीं है बल्कि मुस्तैदी दिखाने की जरूरत है. 

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बेंच ने मुआवजे की रकम को महिला के नाम पर फिक्स डिपॉजिट में रखने को कहा है ताकि रुपये बच्चे के भविष्य के लिए भी सही तरीके से इस्तेमाल किए जा सकें. कोर्ट मे राज्य सरकार को बच्चे के लिए भी भोजन और मेडिकल की सुविधा उपलब्ध कराने को कहा है. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस अति संवेदनशील मामले में त्रुटिपूर्ण रवैया अपनाया. हाईकोर्ट इस वैधानिक प्रावधान को ध्यान में रखने में नाकाम रहा कि रेप के मामले में गर्भपात कराया जा सकता है. इस नियम को नजरअंदाज कर हाईकोर्ट ने मेडिकल बोर्ड का गठन किया जिसकी वजह से और देरी हुई. उस वक्त महिला मानसिक रूप से ज्यादा परेशान नहीं थी और अपनी सहमति दे सकती थी लेकिन मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट आने के बाद हाईकोर्ट के जज ने उसके पति और पिता की सहमति मांगी. ऐसे में जज को कानून के प्रावधान को ध्यान में रखकर पीडिता की सहमति ही मांगनी चाहिए थी. कोर्ट को इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि वो बेसहारा थी, रेप पीड़ित थी और शेल्टर होम में रह रही थी. बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों में अदालतों को ज्यादा संवेदनशील होना चाहिए. 


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सुप्रीम कोर्ट ने पटना के सरकारी अस्पताल पर भी निशाना साधा. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में अस्पताल प्रशासन ने भी लापरवाही बरती. हालांकि शेल्टर होम ने तुरंत कदम उठाए लेकिन अस्पताल ने इसमें देरी की. ये देरी एक निराश महिला को डिप्रेशन में ले जाने का बीज बो सकती थी. इस निराशा में इतनी क्षमता है कि ये किसी को भी संकट में डाल सकती है. ऐसे हालात में पीड़िता मौत को गले लगाने की सोच सकती है. 

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दरअसल, इसी साल 9 मई को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि पटना की एक असहाय और एचआईवी पीड़ित 35 साल की महिला के 26 हफ्ते के भ्रूण का गर्भपात नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट ने एम्स के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर फैसला सुनाया था. कोर्ट ने बिहार सरकार को रेप विक्टिम फंड से चार हफ्ते के भीतर पीड़िता को तीन लाख रुपये देने के आदेश दिए थे. कोर्ट ने कहा था कि महिला के इलाज का सारा खर्च बिहार सरकार उठाएगी और इलाज पटना के इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में होगा. 

दरअसल, एम्स के मेडिकल बोर्ड ने रिपोर्ट में कहा था कि महिला का गर्भपात करने में खतरा है और अब बच्चे को जन्म दिया जाना चाहिए, हालांकि ये ट्रीटमेंट किया जा सकता है कि बच्चे को एड्स ना हो. वहीं महिला की ओर से कहा गया कि अब गर्भ 27 हफ्ते का हो गया है. यह सब बिहार सरकार की लापरवाही से हुआ है. 

बता दें कि पटना की सड़कों पर रहने वाली 35 साल की महिला के साथ रेप हुआ था. रेप की वजह से वह गर्भवती हो गई थी और बाद में उसे पटना के एक एनजीओ के यहां रखा गया. मेडिकल जांच में पता चला कि वह गर्भवती है तो पटना हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई. हाईकोर्ट ने सरकारी डॉक्टरों का मेडिकल बोर्ड बनाया, जिसने रिपोर्ट में कहा कि इसके लिए बड़ा ऑपरेशन करना पड़ सकता है. हाईकोर्ट ने गर्भपात की इजाजत देने से इंकार कर दिया और महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. महिला को उसके पति ने 12 साल पहले छोड़ दिया था. 

 
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