कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए लिंग जांच होनी चाहिए : मेनका गांधी

कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए लिंग जांच होनी चाहिए : मेनका गांधी

मेनका गांधी (फाइल फोटो)

जयपुर:

केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि लिंग जांच को अनिवार्य कर देना चाहिए ताकि जिन महिलाओं के गर्भ में लड़की है उनका ध्यान रखा जा सके और इस तरह कन्या भ्रूण हत्या रोकी जा सकेगी। हालांकि उन्होंने कहा कि यह उनके निजी विचार है और इस पर चर्चा की जानी चाहिए। मेनका ने कहा कि यह उनका निजी विचार है कि महिलाओं को अनिवार्य रूप से यह बता देना चाहिए कि उनके गर्भ में लड़का है या लड़की। इस जांच को रजिस्टर किया जाना चाहिए ताकि पता लग सके कि इन लड़कियों का जन्म दिया गया है या नहीं।

निगरानी रखना आसान
जयपुर में एक कार्यक्रम के दौरान मेनका गांधी सोनोग्राफी सेंटर्स द्वारा गैरकानूनी तरीके से लिंगानुपात की जांच संबंधी पूछे गये प्रश्न का जवाब दे रही थी। उन्होंने कहा ‘एक बार जांच में यह तय हो जाए कि बच्चा लडका है या लडकी, उसकी निगरानी रखना आसान हो जायेगा, यह एक अलग नजरिया है। मैंने यह विचार रखें है, जिस पर चर्चा की जायेगी।’ उन्होंने कहा कि विकसित राज्यों में अविकसित राज्यों के मुकाबले सीएसआर का गिरता स्तर बड़ी समस्या है। केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि गैरकानूनी रूप से अल्ट्रासाउंड करने वाले लोगों को कब तक पकड़ते रहेंगे, ऐसे लोगों को गिरफ्तार करना इस समस्या का स्थाई हल नहीं है। गांंधी ने बताया कि यह विचार मंत्रालय के सामने रखा जा चुका है लेकिन अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा गया है। वहीं विपक्ष को लगता है कि मौजूदा कानून को हटाने से भ्रूण हत्या को लेकर लोगों का ख़ौफ़ ख़त्म हो जाएगा।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

भ्रूण हत्या जारी
कन्या भ्रूण हत्या पर लगाम कसने के इरादे से सरकार ने 1994 में ही भ्रूण परीक्षण पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद चोरी-छुपे ये सिलसिला जारी है। वैसे डॉक्टर कहते हैं कि भारत में इतने सेंटर ही नहीं हैं कि सबका लिंग परीक्षण कराया जा सके। 2011 के जनसंख्या आंकड़े के मुताबिक 1000 बच्चों में बच्चियों का अनुपात 943 है। हरियाणा में जहां 1000 लड़कों पर सिर्फ 876 लड़कियां है जबकी पंजाब में यह तादाद 926 है। यह सारी कवायद इसलिए है कि पैदाइश से पहले ही लड़कियों को भ्रूण में मरने से बचाया जा सके। लेकिन इसके लिए जितने अहम कानून हैं, उतना ही ज़रूरी लड़कियों के प्रति समाज के नज़रिए को बदलना भी है। यह दोनों काम साथ-साथ होंगे तो लड़कियां भी सुरक्षित होंगी और समाज भी स्वस्थ होगा।