सियासी पिच पर ममता बनर्जी से खाई मात, सरकारी खर्चे पर सांसदों का चाय-पानी कराया बंद, ऐसे थे सोमनाथ चटर्जी

सोमनाथ चटर्जी राजनीतिक रूप से मुखर जादवपुर सीट से चुनाव लड़ रहे थे और उनके खिलाफ मैदान में थीं ममता बनर्जी.

सियासी पिच पर ममता बनर्जी से खाई मात, सरकारी खर्चे पर सांसदों का चाय-पानी कराया बंद, ऐसे थे सोमनाथ चटर्जी

Somnath Chatterjee: सोमनाथ चटर्जी को सिर्फ एक बार हार का सामना करना पड़ा था.

खास बातें

  • 10 बार सांसद चुने गए थे सोमनाथ चटर्जी
  • सिर्फ एक बार ममता बनर्जी से हारे थे
  • 2009 में ले लिया था सक्रिय राजनीति से सन्यास
नई दिल्ली :

पूर्व लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी का 89 साल की उम्र में निधन हो गया है. वह लंबे समय से बीमार थे और अस्पताल में इलाज चल रहा था. सोमनाथ चटर्जी (Somnath Chatterjee) उन चुनिंदा नेताओं में शुमार मे थे जिनकी दलगत राजनीति से उपर सभी दलों में स्वीकारोक्ति थी. तीन दशक से ज्यादा समय तक सियासी पिच पर अपना लोहा मनवाने वाले सोमनाथ चटर्जी के कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इतने सालों में वे सिर्फ एक बार चुनाव हारे. उस चुनाव की बात करें उससे पहले 'सोमनाथ दा' (राजनीतिक गलियारों में लोग उन्हें इसी नाम से बुलाते थे) की सियासत में एंट्री के बारे में थोड़ा जान लेते हैं. 25 जुलाई 1929 को असम के तेजपुर में कट्टर हिंदू परिवार में जन्मे सोमनाथ चटर्जी की पढ़ाई-लिखाई कोलकाता और ब्रिटेन में हुई. ब्रिटेन से लौटने के बाद उन्होंने कोलकाता हाईकोर्ट में वकालत की शुरुआत की. इसी दौरान राजनीति में दिलचस्पी जगी. 1968 में सीपीएम का दामन थाम लिया. 

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ममता बनर्जी ने किया राजनीति के मैदान में चित 
1971 में सोमनाथ चटर्जी पहली बार चुनावी मैदान में उतरे और सांसद चुन लिये गए. उसके बाद सियासी गलियारों में उनकी  लोकप्रियता बढ़ती गई. और इसी लोकप्रियता की बदौलत वह 10 बार चुनकर संसद में पहुंचे. सिर्फ एक बार उन्हें सियासी रण में हार का सामना करना पड़ा. वह साल था 1984. सोमनाथ चटर्जी राजनीतिक रूप से मुखर जादवपुर सीट से चुनाव लड़ रहे थे और उनके खिलाफ मैदान में थीं ममता बनर्जी. यह वही दौर था जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राजनीति की गलियों में अपनी पहचान बनाने की जद्दोजहद में थीं. कहां कद्दावर सोमनाथ चटर्जी और कहां ममता बनर्जी!  लोगों को यकीन था कि सोमनाथ चटर्जी चुनाव जीत जाएंगे, लेकिन नतीजे आए तो बाजी पलट चुकी थी. सोमनाथ चटर्जी को ममता बनर्जी ने हरा दिया था. 

सरकारी खर्चे पर सांसदों के चाय-पानी को किया प्रतिबंध 
सोमनाथ चटर्जी (Somnath Chatterjee) राजनीति में सुचिता और पारदर्शिता के हिमायती थे. जब वे 14वीं लोकसभा के स्पीकर चुने गए तो सबसे पहला कदम जो उठाया वह यह था सरकारी खर्चे पर सांसदों के चाय-पानी पर पाबंदी. हालांकि उनके इस फैसले का विरोध भी हुआ, लेकिन इसकी परवाह नहीं की. बल्कि इससे एक कदम आगे गए और सांसदों के विदेश दौरों पर उनके परिवार का खर्च खुद उन्हें वहन करने के लिए दबाव डाला. 

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अपनी ही पार्टी से हुए रुसवा, ले लिया सन्यास 
सिद्धांतों की राजनीति करने वाले सोमनाथ चटर्जी जिस पार्टी (सीपीएम) के संसदीय दल के डेढ़ दशक तक नेता रहे, उसी पार्टी की वजह से उन्हें अपनी सियासत के आखिरी दिनों में रुसवा होना पड़ा था. दरअसल, वर्ष 2008 में यूपीए-2 की सरकार अमेरिका से परमाणु समझौता कर रही थी और सोमनाथ चटर्जी की अपनी पार्टी सीपीएम इसका पुरजोर विरोध कर रही थी. बात नहीं बनी तो सीपीएम ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सोमनाथ चटर्जी को भी स्पीकर के पद से हटने को कहा गया, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया. बाद में जब मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया तब भी सोमनाथ चटर्जी ने पार्टी लाइन से अलग हटकर सरकार के खिलाफ वोट नहीं दिया. इससे नाराज पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया. अगले ही साल सोमनाथ चटर्जी ने सक्रिय राजनीति को अलविदा कह दिया. बकौल सोमनाथ चटर्जी,  पार्टी से निष्कासन उनके जीवन का सबसे दुखद वाकया था. 

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