तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट की इन 11 टिप्पणियों ने पहले ही साफ कर दिया था रुख

तीन तलाक़ वैध है या नहीं, इस पर आज सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फ़ैसला आ सकता है. कोर्ट यह तय करेगा कि तीन तलाक़ महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन करता है या नहीं.

तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट की इन 11 टिप्पणियों ने पहले ही साफ कर दिया था रुख

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर लगाई रोक

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर छह महीने के लिए रोक लगा दी है. कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह तीन तलाक पर कानून बनाए. सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीद जताई कि केंद्र जो कानून बनाएगा उसमें मुस्लिम संगठनों और शरिया कानून संबंधी चिंताओं का खयाल रखा जाएगा. केंद्र ने राजनीतिक दलों से अपने मतभेदों को दरकिनार रखने और तीन तलाक के संबंध में कानून बनाने में केन्द्र की मदद करने को कहा है. कोर्ट ने कहा कि अगर छह महीने में कानून नहीं बनाया जाता है तो तीन तलाक पर शीर्ष अदालत का आदेश जारी रहेगा. कोर्ट ने कहा कि इस्लामिक देशों में तीन तलाक खत्म किए जाने का हवाला दिया और पूछा कि स्वतंत्र भारत इससे निजात क्यों नहीं पा सकता.

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VIDEO: तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट की रोक
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की टिप्पणी

  1. कुछ संगठनों के मुताबिक तीन तलाक़ शादी तोड़ने का सबसे ख़राब तरीक़ा
  2. जो धर्म के लिहाज़ से निकृष्ट है, क़ानून में वैध कैसे?
  3. जो ईश्वर की नज़र में पाप, वो शरीयत में कैसे?
  4. पाक क़ुरान में पहले से प्रक्रिया फिर तीन तलाक़ क्यों?
  5. तीन तलाक़ अगर क़ुरान में नहीं है तो कहां से आया?
  6. दूसरे देशों ने क़ानून बनाकर इसे ख़त्म क्यों किया?
  7. समुदाय इस पर क्यों कुछ नहीं कर रहा? 
  8. क्या कोई प्रथा संवैधानिक अधिकारों से बढ़ कर हो सकती है? 
  9. अगर सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक़ रद्द करता है तो क्या सरकार नया क़ानून लाएगी? 
  10. केंद्र सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का इंतज़ार क्यों कर रहा है? 
  11. क्या निकाहनामे के वक़्त ही तीन तलाक़ से इनकार का विकल्प मुमकिन है? 
क्या है मामला
मार्च, 2016 में उतराखंड की शायरा बानो नामक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी. बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी है. कोर्ट में दाखिल याचिका में शायरा ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकती रहती है. वहीं पति के पास निर्विवाद रूप से अधिकार होते हैं. यह भेदभाव और असमानता एकतरफा तीन बार तलाक के तौर पर सामने आती है.

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