सुप्रीम कोर्ट की फाइल फोटो.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा कुछ बड़ी कंपनियों के NPA में छूट देने पर वित्त मंत्री अरूण जेटली व अन्य के खिलाफ दाखिल याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए वकील पर पचास हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. जुर्माना अदा करने तक वकील एम एल शर्मा के जनहित याचिका दाखिल करने पर पाबन्दी भी लगा दी. कोर्ट ने कहा कि बेशक आपने कई अच्छे मुद्दों पर पीआईएल दाखिल की हैं. लेकिन आप कुछ भी लेकर क्यों आ जाते हैं? इससे पहले शर्मा की लगातार गुहार पर कोर्ट ने कहा कि ठीक है हम आपको सुनते हैं लेकिन आप अपनी दलीलों से संतुष्ट नहीं कर पाए तो हम आपको बैन कर देंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता वकील मनोहर लाल शर्मा को चेताया था कि ऐसी ही PIL लेकर आए तो हमे आपको PIL दाखिल करने से रोकना होगा.शर्मा ने आरबीआई मामले में सरकार को निर्देश देने की याचिका दाखिल की थी. याचिका में वित्त मंत्री अरूण जेटली को पहला प्रतिवादी बना गया. वकील एम एल शर्मा की इस याचिका में जेटली के बयानों को आधार बनाया गया है और कहा गया है कि जेटली ने हाल ही में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा ऋण छोड़ने का बचाव किया था और कहा था कि इससे ऋण की छूट नहीं हुई है और इस कदम से उधारदाताओं को अपनी बैलेंस शीट को साफ करने और कर देने में दक्षता हासिल करने में मदद की.
उन्होंने कहा कि चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही के दौरान 2017-18 में 74,562 करोड़ रुपये की वसूली के मुकाबले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने 36,551 करोड़ रुपये का खराब ऋण, या गैर-निष्पादित संपत्तियां वसूल की. रिपोर्टों पर टिप्पणी करते हुए कि देश के 21 राज्य-स्वामित्व वाले बैंकों ने एनडीए सरकार के चार वर्षों में 3.16 लाख करोड़ रुपये के ऋणों को छोड़ा और ऐसे ऋण में 44, 9 00 करोड़ रुपये की वसूली की.
याचिका में कहा गया कि फेसबुक ब्लॉग में जेटली ने कहा कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) दिशानिर्देशों के अनुसार ही बैंकों द्वारा ये कदम उठाया गया था. याचिका में ये भी कहा गया है कि सरकार को RBI के मामले में दखल नहीं देना चाहिए. सरकार के पास इसका अधिकार नहीं है.
वीडियो- GDP पर यूपीए बनाम एनडीए सरकार
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