राजस्थान की जेल परिसरों के 500 मीटर के दायरे से फिलहाल नहीं हटेंगे मोबाइल टावर

राजस्थान की जेल के परिसरों के पांच सौ मीटर के दायरे से फिलहाल मोबाइल टावर नहीं हटेंगे. 8 जून तक सारे मोबाइल टावर हटाने के राज्य सरकार के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है और चार हफ्तों में जवाब मांगा है.

राजस्थान की जेल परिसरों के 500 मीटर के दायरे से फिलहाल नहीं हटेंगे मोबाइल टावर

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार से 4 हफ्तों में जवाब मांगा है

खास बातें

  • 8 जून तक मोबाइल टावर हटाने पर रोक
  • राजस्थान सरकार से मांगा है जवाब
  • 80 लाख उपभोक्ताओं के प्रभावित होने की बात
नई दिल्ली:

राजस्थान की जेल के परिसरों के पांच सौ मीटर के दायरे से फिलहाल मोबाइल टावर नहीं हटेंगे. 8 जून तक सारे मोबाइल टावर हटाने के राज्य सरकार के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्तों में जवाब मांगा है. राजस्थान सरकार ने हाईकोर्ट में कहा था कि 8 जून तक ऐसे सभी टावर हटाए जाएंगे. सेल्यूलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने अपनी अर्जी में राज्य सरकार को इन टावरों को सील नहीं करने और 9 मई के आदेश के तहत कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया था. एसोसिएशन ने अपनी अर्जी में कहा है कि राज्य में जेल परिसरों के पांच सौ मीटर के दायरे में सेल्यूलर ऑपरेटरों के 400 बेस ट्रांसीवर स्टेशन (बीटीएस) हैं, जिनमें बेस स्टेशन नियंत्रक साइट भी शामिल है और ये टावर करीब 80 लाख उपभोक्ताओं को सेवा प्रदान कर रहे हैं. यदि इन टावरों को हटाया गया तो इससे सेवा की गुणवत्ता खराब हो जाएगी.

याचिका में यह भी कहा गया है कि राजस्थान हाईकोर्ट के 27 नवंबर, 2012 के फैसले के खिलाफ अपील शीर्ष अदालत में लंबित है. हाईकोर्ट ने अस्पतालों और स्कूलों से दो महीने के भीतर तथा जेल परिसरों के पांच मीटर के दायरे से इन टावरों को छह महीने के भीतर हटाने का निर्देश दिया था.

एसोसिएशन का दावा है कि जेल परिसरों के पांच सौ मीटर के दायरे से इन टावरों को हटाने संबंधी राज्य सरकार के 31 अगस्त, 2012 के नीतिगत फैसले के स्थान पर राज्य सरकार ने इस साल 6 फरवरी को एक नया निर्णय लिया और इस तरह इस समय वहां ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं रह गया है.

अर्जी में यह भी तर्क दिया है कि राज्य सरकार ने 9 मई को जो आदेश दिया वह आदेश उच्च न्यायालय के 6 अप्रैल के आदेश के तहत दिया है, जो सरकार की 31 अगस्त 2012 की नीति पर आधारित था और ये नई नीति के आने से हट चुका है.


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