यह ख़बर 11 दिसंबर, 2013 को प्रकाशित हुई थी

अपराध ही है समलैंगिक संबंध बनाना, सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया हाईकोर्ट का फैसला

नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिक कार्यकर्ताओं को झटका देते हुए समलैंगिक संबंधों को उम्रकैद तक की सजा वाला जुर्म बनाने वाले दंड प्रावधान की संवैधानिक वैधता को बुधवार को बहाल रखा।

न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 2009 में दिए गए उस फैसले को दरकिनार कर दिया जिसमें वयस्कों के बीच पारस्परिक सहमति से बनने वाले समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था।

पीठ ने विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संगठनों की उन अपीलों को स्वीकार कर लिया जिनमें उच्च न्यायालय के फैसले को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि समलैंगिक संबंध देश के सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों के खिलाफ हैं।

न्यायालय ने हालांकि यह कहते हुए विवादास्पद मुद्दे पर किसी फैसले के लिए गेंद संसद के पाले में डाल दी कि मुद्दे पर चर्चा और निर्णय करना विधायिका पर निर्भर करता है।

शीर्ष अदालत के फैसले के साथ ही समलैंगिक संबंधों के खिलाफ दंड प्रावधान प्रभाव में आ गया है। जैसे ही फैसले की घोषणा हुई, अदालत में पहुंचे समलैंगिक कार्यकर्ता निराश नजर आए।

पीठ ने कहा कि भादंसं की धारा 377 को हटाने के लिए संसद अधिकृत है, लेकिन जब तक यह प्रावधान मौजूद है, तब तक न्यायालय इस तरह के यौन संबंधों को वैध नहीं ठहरा सकता।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

फैसले की घोषणा होने के बाद समलैंगिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि वे शीर्ष अदालत के फैसले की समीक्षा की मांग करेंगे।