स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार में चिकित्सा भी, सरकार सस्ते इलाज की व्यवस्था करे : सुप्रीम कोर्ट

"कुछ लोग राज्य द्वारा समय-समय पर जारी किए गए दिशानिर्देशों / एसओपी का पालन न करके, जैसे कि मास्क न पहनना, सामाजिक दूरी न रखना, सामाजिक दूरी बनाए बिना समारोहों और समारोहों में भाग ले रहे हैं, वे लोग अंततः खुद को ही नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं बल्कि दूसरों को भी नुकसान पहुंचाते हैं...."

नई दिल्ली:

कोरोना महामारी (Coronavirus Pandemic) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने दिशानिर्देश में सख्त बातें कही हैं. कोर्ट ने कहा है कि दिशानिर्देश और SOP जारी होने के बावजूद, कार्यान्वयन की कमी से यह महामारी जंगली आग की तरह फैल गई. कोर्ट ने कहा है, "उन लोगों के खिलाफ सख्त और कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए जो दिशानिर्देशों और SOP का उल्लंघन कर रहे हैं, उल्लंघन करने वाला चाहे कोई भी हो."

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 4 हफ्ते के भीतर अलग-अलग राज्य सरकारें और केंद्र सरकार कोरोना को लेकर क्या स्थिति है और क्या कदम उठाए गए, इस बारे में सुप्रीम कोर्ट को बताएं. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि देश के सभी राज्य रात्रि और वीकेंड कर्फ्यू के बारे में विचार करें.

स्वास्थ्य का अधिकार एक मौलिक अधिकार
इसके अलाव सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार (Right To Health) में सस्ती चिकित्सा भी शामिल है. प्राइवेट अस्पतालों की फीस में कैप लगाने की जरूरत या फिर राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन प्रावधान लेकर आए. कोर्ट ने कहा है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्तियों के प्रयोग कर प्राइवेट अस्पतालों की फीस में कैप लगाई जा सकती है. इस बाबत जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष  रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह ने आदेश में सुझाव दिए हैं. 

पीठ ने कहा, " राज्य पर कर्तव्य है कि वह सस्ती चिकित्सा के लिए प्रावधान करें और राज्य और / या स्थानीय प्रशासन द्वारा चलाए जाने वाले अस्पतालों में अधिक से अधिक प्रावधान किए जाएं. अभूतपूर्व महामारी के कारण दुनिया में हर कोई पीड़ित है, एक तरह से या दूसरी तरह से. यह कोविड -19 के खिलाफ एक विश्व युद्ध है.  इसलिए कोविड -19 के खिलाफ विश्व युद्ध से बचने के लिए सरकारी सार्वजनिक भागीदारी होनी चाहिए. 

भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वास्थ्य का अधिकार एक मौलिक अधिकार है. स्वास्थ्य के अधिकार में किफायती उपचार शामिल है. इसलिए, यह राज्य का कर्तव्य है कि वह अस्पतालों में किफायती उपचार और अधिक से अधिक प्रावधानों का प्रावधान करे. जो राज्य या स्थानीय प्रशासन द्वारा चलाए जा रहे हैं. यह विवादित नहीं किया जा सकता है कि जिन कारणों से उपचार महंगा हो गया है और यह आम लोगों के लिए बिल्कुल भी सस्ता नहीं है. भले ही कोई भी COVID-19 से जीवित हो कई तो आर्थिक रूप से वह कई बार समाप्त हो चुके हैं.  इसलिए या तो अधिक से अधिक प्रावधान राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन द्वारा किए जाने हैं या निजी अस्पतालों द्वारा लिए जाने वाले शुल्क पर कैप लगाना होगा, जिसके तहत आपदा प्रबंधन अधिनियम शक्तियों का प्रयोग किया जा सकता है. 

ज्यादा से ज्यादा टेस्ट हों 
अदालत ने कहा कि अधिक से अधिक टेस्ट और सही तथ्यों और आंकड़ों को घोषित करना होगा. कोरोना पॉजिटिव होने वाले व्यक्तियों के तथ्यों और आंकड़ों के परीक्षण और घोषणा करने की संख्या में पारदर्शी होना चाहिए. अन्यथा, लोगों को गुमराह किया जाएगा और वे इस धारणा के अधीन रहेंगे कि सब कुछ ठीक है और वे लापरवाह हो जाएंगे.

दिशानिर्देशों का पालन करना होगा
 कोर्ट ने आज कहा, "हर राज्य को सतर्कता से काम करना चाहिए और केंद्र के साथ सामंजस्य के साथ काम करना चाहिए.  नागरिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. लोगों को भी अपने कर्तव्य को समझना चाहिए और नियमों का सख्ती से पालन करना चाहिए. कुछ लोग राज्य द्वारा समय-समय पर जारी किए गए दिशानिर्देशों / एसओपी का पालन न करके, जैसे कि मास्क न पहनना, सामाजिक दूरी न रखना, सामाजिक दूरी बनाए बिना समारोहों और समारोहों में भाग ले रहे हैं, वे लोग अंततः खुद को ही नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं बल्कि दूसरों को भी नुकसान पहुंचाते हैं...."

"....ऐसे लोगों को  दूसरों के जीवन के साथ खेलने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और दूसरे नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों और एसओपी को लागू करने के लिए  लोगों की मदद और मार्गदर्शन करने की जरूरत है.. मास्क पहनना, सामाजिक दूरी रखना." 

स्थानीय पुलिस की भी मदद ली जानी चाहिए
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, "कई राज्यों में भारी भरकम जुर्माना वसूला गया है, जो बताता है कि लोग नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं.अकेले गुजरात राज्य में 80 से 90 करोड़ रुपये लसूले गए हैं. एसे मामले में अधिकारियों द्वारा सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि समय-समय पर जारी किए गए एसओपी और दिशानिर्देशों का लोगों द्वारा सख्ती से पालन किया जाता है. संबंधित राज्यों के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) / सचिव (गृह) इसबात को सुनिश्चित करेंगे."

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एसओपी और गाइडलाइंस का पालन करवाने के लिए केंद्रीय गृह सचिव राज्यों के गृह सचिवों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करें कि लोग इन निर्देशों का पालन करें अगर जरूरत पड़े तो स्थानीय पुलिस की भी मदद ली जानी चाहिए.

कड़ी निगरानी रखी जाए
कोर्ट का कहना है, "भीड़भाड़ वाले इलाकों में  बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया जाए, जिससे कि वह एसओपी और गाइडलाइंस का पालन करवा सके. कोशिश की जाए कि सोशल गैदरिंग ना हो और अगर कहीं पर सोशल गैदरिंग की अनुमति दी भी जा रही है तो वहां पर भी कितने लोग मौजूद हैं इस पर भी कड़ी निगरानी रखी जाए. बड़ी मात्रा में टेस्ट किए जाएं और टेस्ट के नतीजों को सार्वजनिक किया जाए जिससे कि लोगों को पता चल सके कि आखिर करो ना कितना बड़ा खतरा अभी भी बना हुआ है."

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अगले कुछ महीनों में अलग-अलग राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों की भी बात हुई जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में टिप्पणी करते हुए कहा है कि अगर चुनावों के मद्देनजर कोई कदम उठाने भी है तो वहां पर भी केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा कोरोना को ध्यान में रखते हुए जारी किए गए गाइडलाइन का पालन करते हुए ही किया जाना चाहिए.

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