आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला: लोकसभा में जमकर हुआ हंगामा, जानिए सदन में किस पार्टी ने क्या कहा

लोकसभा में इस मुद्दे पर अपने वक्तव्य में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा, हम आरक्षण को लेकर प्रतिबद्ध और समर्पित हैं.

आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला: लोकसभा में जमकर हुआ हंगामा, जानिए सदन में किस पार्टी ने क्या कहा

कोर्ट के फैसले का मुद्दा लोकसभा में प्रश्नकाल और शून्यकाल में छाया रहा (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

नियुक्तियों और प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को लेकर विपक्षी दलों द्वारा लगाये गये दलित विरोधी होने के आरोपों के बीच सरकार ने सोमवार को साफ किया कि वह SC,ST के लिए आरक्षण को प्रतिबद्ध है. लोकसभा में इस मुद्दे पर अपने वक्तव्य में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा, "केंद्र सरकार इस मुद्दे पर पक्षकार नहीं है और इस फैसले को लेकर उच्च स्तर पर विचार किया जा रहा है." उन्होंने कहा कि भारत सरकार से इसको लेकर कोई शपथ पत्र नहीं मांगा गया था इस फैसले को लेकर भारत सरकार सही कदम उठाएगी. गहलोत ने कहा, "हम आरक्षण को लेकर प्रतिबद्ध और समर्पित हैं." उन्होंने कहा कि यह मामला 2012 का है जब उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी. 

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मंत्री ने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर सरकार समग्र रुप से विचार करेगी. इस पर कांग्रेस ने सदस्यों ने कड़ा विरोध दर्ज कराया. लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने अपनी बात रखने की कोशिश की, लेकिन आसन ने अनुमति नहीं मिलने पर वह और कांग्रेस के अन्य सदस्य सदन से वाकआउट कर गए. कोर्ट के एक फैसले का मुद्दा लोकसभा में प्रश्नकाल एवं शून्यकाल में भी छाया रहा और कांग्रेस तथा कुछ विपक्षी दलों ने सरकार पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया. विपक्षी दलों ने सरकार से सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर करने को कहा. इस पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है और कांग्रेस का ऐसे मुद्दे पर राजनीति करना ठीक नहीं है. 

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सिंह ने कहा, "मैं कहना चाहता हूं कि 2012 में उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी. इतने संवेदनशील मुद्दे पर कांग्रेस जिस तरह से राजनीति कर रही है, वह ठीक नहीं है." सदन में लोक जनशक्ति पार्टी, जनता दल यूनाइटेड और अपना दल जैसे, केंद्र में सत्तारूढ़ NDA के घटक दलों ने विपक्ष के आरोपों को खारिज किया और साथ ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असहमति जाहिर करते हुए सरकार से आरक्षण के विषय को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालने की मांग की.

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कांग्रेस (Congress)
कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने यह मुद्दा उठाते हुए आरोप लगाया कि उत्तराखंड सरकार की ओर से कोर्ट में कहा गया कि आरक्षण को हटा दिया जाए और इसके बाद ही यह फैसला आया कि भर्ती या पदोन्नति मौलिक अधिकार नहीं हैं. उन्होंने कहा कि सदियों से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की अनदेखी हुई और संविधान में इन्हें आरक्षण का अधिकार दिया गया. कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार के समय इन वंचित वर्गो के लिये योजनाएं बनाई गईं और सुरक्षा के लिये कानून लाया गया. लेकिन वर्तमान सरकार एससी, एसटी से यह अधिकार छीनना चाहती है. इस पर संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले से भारत सरकार का कोई लेनादेना नहीं है और 2012 में उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी. उन्होंने मांग की कि इस संबंध में भारत सरकार के बारे में जो कुछ कहा गया है, उसे कार्यवाही से हटाया जाना चाहिए. 

लोक जनशक्ति पार्टी (LJP)
लोजपा के चिराग पासवान ने कहा कि आरक्षण कोई खैरात नहीं है बल्कि यह संवैधानिक अधिकार है. इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से वह असहमति व्यक्त करते हैं. उन्होंने कहा "इस मामले में सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए. आरक्षण से जुड़े सभी विषयों को संविधान की 9वीं अनुसूची में डाल दिया जाए ताकि इस विषय पर बहस समाप्त हो जाए." चिराग ने कहा कि विपक्ष का सरकार को दलित विरोधी बताना ठीक नहीं है और NDA सरकार ने एक नहीं बल्कि अनेक बार SC, ST, OBC वर्ग को मजबूत बनाने का काम किया है. 

द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK)
द्रमुक के ए राजा ने कहा "ऐसी भावना है कि इस सरकार के दौरान संविधान पर आघात हो रहा है. अनुच्छेद 16 (4) में आरक्षण को परिभाषित किया गया है. शीर्ष अदालत के एक फैसले में यह मुद्दा सुलझ चुका था. लेकिन बार-बार यह आ ही जाता है." उन्होंने कहा कि सरकार को इस मुद्दे पर पुनर्विचार याचिका दायर करनी चाहिए. 

जनता दल यूनाइटेड (JDU)
जदयू के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कहा कि आरक्षण के मुद्दे पर न्यायालय का जो फैसला आया है, उसको लेकर पूरा सदन एकमत है. जब पूरा सदन इस विषय पर एकमत है तब इसका राजनीतिकरण ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि जब पहले SC,ST अत्याचार का मुद्दा आया था तब भी NDA सरकार मजबूत कानून लाई थी और आगे भी सरकार इसका निपटारा करेगी. 

बहुजन समाज पार्टी (BSP)
बसपा के रितेश पांडे ने सरकार पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाते हु कहा कि संविधान में आरक्षण का अधिकार दिया गया है और न्यायालय के फैसले से वह असहमत हैं. 

अपना दल 
अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने कहा कि आरक्षण पर न्यायालय के फैसले से वह असहमत हैं. उन्होंने कहा, "मैं कहना चाहती हूं कि एससी, एसटी और ओबीसी को संविधान प्रदत्त अधिकार के खिलाफ यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है. यह वंचित वर्गो पर कुठाराघात है." उन्होंने कहा कि बार-बार ऐसे फैसले इसलिये आते हैं क्योंकि न्यायपालिका में एससी, एसटी, ओबीसी का प्रतिनिधित्व नहीं है. 

राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (NCP)
राकांपा की सुप्रिया सुले ने कहा "सत्ता पक्ष ने कहा है कि वह इस विषय पर कुछ कर रहे हैं, मेरा आग्रह है कि इस विषय पर जल्द ही कदम उठाया जाए." 

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPIM)
माकपा के ए एम आरिफ ने इस विषय पर समीक्षा याचिका दायर करने और कानून लाने की मांग की. 

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML)
आईयूएमएल के ई टी मोहम्मद बशीर ने कहा कि यदि अदालत के फैसले पर अमल होता है तब यह सामाजिक न्याय के बुनियादी सिद्धांत पर आघात होगा. इससे पहले, सुबह सदन की कार्यवाही आरंभ होने पर कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी और पार्टी के अन्य सदस्यों ने इस मुद्दे को उठाना चाहा. द्रमुक, माकपा और बसपा सदस्यों ने भी अपने स्थान पर खड़े होकर इस मुद्दे पर अपनी बात रखने का प्रयास किया, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने प्रश्नकाल को आगे बढ़ाया, लेकिन विपक्षी सदस्यों का शोर-शराबा जारी रहा. इस पर बिरला ने कहा कि सदस्य इस विषय को शून्यकाल में उठाएं क्योंकि सदन ने ही प्रश्नकाल को सुचारू रूप से चलने देने की व्यवस्था तय की है. कांग्रेस के किसी सदस्य के 'संविधान खतरे में होने' की टिप्पणी पर बिरला ने कहा कि "संविधान खतरे में नहीं हैं. आप संसद की गरिमा क्यों खतरे में डाल रहे हैं?'' 

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इस दौरान सदन के उप नेता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि न्यायालय ने एक आदेश दिया है. यह संवेदशील मामला है और सामाजिक न्याय मंत्री इस पर वक्तव्य देंगे. इसके बाद बिरला ने कहा कि सदस्य शून्यकाल के दौरान इस विषय को उठाएं जिस पर सरकार जवाब देगी. फिर उन्होंने प्रश्नकाल को आगे बढ़ाया. गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि पदोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है. 

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