गंभीर अपराध के आरोपी चुनाव लड़ सकते हैं? आज आ सकता है सुप्रीम कोर्ट का फैसला

कानून के मुताबिक फिलहाल आपराधिक मामलों में दो साल से ज्यादा की सजा होने पर छह साल की अयोग्यता का प्रावधान, करप्शन या NDPS में सिर्फ दोषी करार होना काफी

गंभीर अपराध के आरोपी चुनाव लड़ सकते हैं? आज आ सकता है सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट.

खास बातें

  • पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ सुनाएगी फैसला
  • पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह सहित तीन की याचिकाएं
  • कोर्ट ने केंद्र से पूछा था- चुनाव आयोग को क्या शक्ति दी जा सकती है?
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों का संविधान पीठ मंगलवार को यह फैसला सुना सकता है कि क्या गंभीर अपराध में अदालत द्वारा आरोप तय करने से किसी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिया जा सकता है?

अभी तक के कानून के मुताबिक आपराधिक मामलों में दो साल से ज्यादा की सजा होने पर छह साल की अयोग्यता का प्रावधान है जबकि करप्शन, NDPS में सिर्फ दोषी करार होना काफी है. दरसअल मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था. इस मामले में अश्विनी कुमार उपाध्याय के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह और एक अन्य एनजीओ की याचिकाएं हैं.

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा शामिल हैं. पीठ में उस याचिका पर सुनवाई हुई थी जिसमें मांग की गई है कि गंभीर अपराधों में जिसमें सज़ा 5 साल से ज्यादा हो और अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ आरोप तय होते हैं तो उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए. अगर कोई सासंद या विधायक है, तो उसकी सदस्यता रद्द होनी चाहिए.

पांच जजों के संविधान पीठ ने केंद्र से पूछा था कि क्या चुनाव आयोग को ये शक्ति दी जा सकती है कि वो आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार को चुनाव में उतारें तो उसे (उस उम्मीदवार को) चुनाव चिन्ह देने से इनकार कर दे?

केंद्र की ओर से AG केके वेणुगोपाल ने इसका विरोध किया. कहा कि ये चुने हुए प्रतिनिधि ही तय कर सकते हैं, कोर्ट नहीं. ये काम चुने हुए प्रतिनिधियों का है या फिर इस अदालत में बैठे पांच जजों का? CJI दीपक मिश्रा ने केंद्र से कहा था कि हम अपने आदेश में ये जोड़ सकते हैं कि अगर अपराधियों को चुनाव में प्रत्याशी बनाया गया तो उसे चुनाव चिन्ह न जारी करें. AG ने कहा कि अगर ऐसा किया गया तो राजनीतिक दलों में विरोधी एक- दूसरे पर आपराधिक केस करेंगे. कोर्ट को देश की वास्तविकता को देखना चाहिए. चुनाव खर्च की सीमा तय करना देश का सबसे बड़ा मजाक है. प्रत्याशी अपने क्षेत्र में करीब 30 करोड़ रुपये खर्च करता है. चुनाव के वक्त प्रत्याशियों के खिलाफ ज्यादा मामले दर्ज होंगे. संसदीय स्थाई समिति में इस पर विचार किया था और खारिज कर दिया था.

हालांकि जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने चीफ जस्टिस के कथन से असहमति जताई. उन्होंने कहा इससे लोग राजनीतिक बदला निकालेंगे. चुनाव लड़ने की अयोग्यता दोषी करार होने के बाद हो.

जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने कहा कि कोर्ट संसद के क्षेत्राधिकार में नहीं जा रहा. जब तक संसद कानून नहीं बनाती तब तक हम चुनाव आयोग को आदेश देंगे कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को चुनाव चिन्ह न दें. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि पार्टी को मान्यता देते वक्त चुनाव आयोग कहता है कि पार्टी को कितने वोट लेने होंगे. वहीं चुनाव आयोग खुद ही शर्त लगा सकता है कि अपराधिक छवि वाले दलों के प्रत्याशी न बनें. ऐसा व्यक्ति किसी राजनीतिक पार्टी से चुनाव नहीं लड़ सकता. हालांकि वह खुद चुनाव लड़ सकता है. इस तरह वह चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित नहीं होगा. AG ने कहा लेकिन इससे राजनीतिक पार्टियों का अधिकार छीन लिया जाएगा और ये असंवैधानिक होगा.


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