जवानों ने श्रीनगर से लेह को जोड़ने वाली सड़क को समय से पहले खोल दिया

बर्फ से ढंकने के कारण बंद होने के चार महीने बाद ही खुली रोड, लेह और करगिल के लोगों को राहत मिली

जवानों ने श्रीनगर से लेह को जोड़ने वाली सड़क को समय से पहले खोल दिया

श्रीनगर-लेह रोड पर से बर्फ हटाकर उसे आवागमन के लिए खोल दिया गया.

नई दिल्ली:

इसे आप कोरोना वायरस का खौफ कहें या फिर बॉर्डर रोड के जवानों की मेहनत कहें कि श्रीनगर से लेह को जोड़ने वाले सामरिक राजमार्ग को चार महीने के बाद ही खोल दिया गया है. इससे लेह व करगिल के लोगों को राहत मिली है. जोजिला पास पर बर्फबारी की वजह से पिछले साल दिसंबर में इस सड़क को बंद कर दिया गया था. इसे आज दोनों तरफ के यातायात के लिए खोल दिया गया. 

केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में जरूरी वस्तुओं को पहुंचाया जाना बेहद जरूरी था. इसके लिए हाईवे को खोलना बेहद जरूरी था. लद्दाख के डिवीजनल कमिश्नर से मिले निर्देश के बाद प्रोजेक्ट बीकॉन और प्रोजेक्ट विजायक की टीम ने 11500 फुट की ऊंचाई पर जोजिला पास में हाईवे पर से बर्फ हटाई. इससे हाईवे को गाड़ियों की आवाजाही के लायक बनाया जा सका. आज 18 ऑयल टैंकर और दूसरी जरूरी चीजों से लदे ट्रकों को जोजिला पास होते हुए लेह लद्दाख भेजा गया. 

इस वर्ष हुई बर्फबारी ने छह दशकों का रिकॉर्ड को तोड़ दिया. इस राजमार्ग के चार-छह महीनों तक बंद होने से लाखों लोगों का संपर्क शेष विश्व से कट जाता है. इसके लिए वे पहले ही सर्दियों के छह महीनों के लिए स्टाक जुटा लेते हैं.

श्रीनगर से लेह 425 किलोमीटर की दूरी पर है. सबसे अधिक मुसीबतों का सामना सोनमार्ग से द्रास तक के 63 किमी के हिस्से में करना होता है, पर बीआरओ के जवान इन मुसीबतों से नहीं घबराते. 11500 फ़ीट पर भयानक सर्दी और तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे होने के बावजूद खतरों से घबराते नहीं. बीआरओ के बीकन और प्रोजेक्ट हीमांक के अंतर्गत कार्य करने वाले जवान राजमार्ग को यातायात के योग्य बनाते हैं. 

e2lr1d08
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

गौरतलब है कि सोनमर्ग से जोजिला तक का 24 किमी का हिस्सा साल भर बर्फ से ढंका रहता है. इसी बर्फ को काटकर जवान रास्ता बनाते हैं. रास्ता क्या होता है, वह तो बर्फ की बिना छत वाली सुरंग ही होती है जिससे गुजरकर जाने वालों को ऊपर देखने पर इसलिए डर लगता है क्योंकि चारों ओर बर्फ के पहाड़ों के सिवाय कुछ नजर नहीं आता. ऐसे में बीआरओ के जवान करगिल और लद्दाख के जवानों के लिए किसी देवदूत से कम नहीं हैं.