खुद के पास नहीं हैं मूलभूत सुविधाएं, हरियाणा के पांच गांवों ने COVID फंड में 50 करोड़ किए दान

हरियाणा के पांच गांवों ने महामारी कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में कुल मिलाकर 50 करोड़ का डोनेशन दिया है. दान देने वाले इन पांचों गांवों में कुल मिलाकर कोविड के अभी पांच केस ही सामने आए हैं. बता दें कि ये डोनेशन गांव की पंचायतों ने गांवों के डेवलपेंट फंड से दिए गए हैं. 

खुद के पास नहीं हैं मूलभूत सुविधाएं, हरियाणा के पांच गांवों ने COVID फंड में 50 करोड़ किए दान

गांव की पंचायतों ने डेवलपमेंट फंड से दिया डोनेशन.

सोनीपत:

हरियाणा के पांच गांवों ने महामारी कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में कुल मिलाकर 50 करोड़ का डोनेशन दिया है. इन गांवों की तरफ से यह डोनेशन हरियाणा सरकार के कोरोनावायरस रिलीफ फंड में दिया गया है. हरियाणा के 7,000 की आबादी वाले पलरा गांव ने रिलीफ फंड को 21 करोड़ दान में दिए हैं, इस गांव में अभी तक बस कोविड का एक ही केस आया है. दान देने वाले इन पांचों गांवों में कुल मिलाकर कोविड के अभी पांच केस ही सामने आए हैं. बता दें कि ये डोनेशन गांव की पंचायतों ने गांवों के डेवलपेंट फंड से दिए गए हैं. 

अगर पूरे हरियाणा की बात करें तो यहां कोविड-19 के कुल मामले 42,000 है. लेकिन इन पांच गांवों में कुल पांच केस सामने आए हैं- एक पलरा में और चार नसीबपुर में. बाकी के तीन गांवों में कोविड का एक भी केस नहीं है. गुड़गांव में आने वाले पलरा गांव ने रिलीफ फंड को 21 करोड़ दिए हैं, वहीं, सोनीपत के सरसा गांव ने 11 करोड़ और रामपुर गांव ने 2.5 करोड़ दिए हैं. पानीपत के बाल जत्तन गांव ने 10.5 करोड़ और नरनौल के नसीबपुर गांव ने पांच करोड़ दान में दिए हैं. बता दें कि इन गांवों को अकसर होते रहने वाले जमीन अधिग्रहण परियोजनाओं के तहत मिलने वाले मुआवजा के चलते फंडिंग की कमी नहीं होती है. पलरा के पास अभी भी 23 करोड़ हैं. 

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हालांकि, इन गांवों की इस दानवीरता के बीच गांववालों की शिकायतें भी अपनी जगह हैं. गांववालों की शिकायत है कि इन गांवों में लोगों के लिए मूलभूत सुविधाएं भी ढंग की नहीं हैं. पलरा में जो स्कूल है. वो 10वीं तक ही है. कई स्कूली छात्राएं स्कूल जाने के लिए तरसती हैं क्योंकि दूसरे स्कूल कई किलोमीटर दूर हैं. माता-पिता अपनी बच्चियों को इतनी दूर अकेले नहीं भेजना चाहते हैं. आने-जाने के साधनों की भी कमी है. कहीं सफर करना हो तो दिक्कत होती है. ज्योति नाम की एक छात्रा ने NDTV को बताया कि 'कभी-कभी ऑटो बहुत ज्यादा वक्त लेती है. हमें भी अकेले सफर करने में डर लगता है. हमारे मां-पिता भी डरते हैं. हमारा स्कूल 12वीं तक होना चाहिए ताकि सभी लड़कियां बिना परेशान हुए यहीं पढ़ाई कर पाएं.'

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पंचायत का दावा है कि स्कूल को बढ़ाने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है लेकिन सरकार की तरफ से मंजूरी नहीं मिली है. पंचायत के सदस्य राजेंद्र कुमार ने कहा, 'हमारी मुख्य समस्या स्कूल है. हम पंचायत के पैसों से ही कुछ अलग कमरे बनवा रहे हैं. सरकार से अपील की है कि हमारे स्कूल को 12वीं तक बढ़ा दिए जाए. हमारी बेटियां पढ़ने के लिए काफी दूर जाती हैं.'

सरसा गांव में लोगों की शिकायत है कि यहां पर दिन में बिजली बस दो घंटों के लिए आती है. वहीं, यहां पर कोई प्राथमिक चिकित्सा केंद्र भी नहीं है. रिंकू रतन नाम के निवासी ने बताया कि गांव में बिजली बस दो घंटों के लिए आती है. लोगों के पास इन्वर्टर है तो किसी तरह चल जाता है. इलाज की जरूरत पड़े तो लोगों को कई किलोमीटर दूर प्राइवेट अस्पताल जाना पड़ता है, एक डिस्पेंसरी तक नहीं है. 

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