रिहा हुए दिल्ली दंगों के तीन आरोपी, रवीश कुमार के 'प्राइम टाइम' ने लौटाया फैमिली टाइम

दिल्ली दंगों के तीन आरोपियों जुनैद, इरशाद और चांद मोहम्मद को उच्च न्यायालय ने साक्ष्य न होने के आरोप में ज़मानत दे दी है. ये वो लोग हैं जिनको शाहिद नाम के एक शख्स की मौत के आरोप में पुलिस ने पिछले साल मार्च और अप्रैल में गिरफ्तार किया था.

नई दिल्ली:

दिल्ली दंगों के तीन आरोपियों जुनैद, इरशाद और चांद मोहम्मद को उच्च न्यायालय ने साक्ष्य न होने के आरोप में ज़मानत दे दी है. ये वो लोग हैं जिनको शाहिद नाम के एक शख्स की मौत के आरोप में पुलिस ने पिछले साल मार्च और अप्रैल में गिरफ्तार किया था. पुलिस ने चार्जशीट में पिछले साल 5 मार्च के प्राइम टाइम के वीडियो का ज़िक्र किया था. इस वीडियो को अदालत में भी दिखाया गया, जिससे साफ हो गया की चांदबाग की तरफ सप्तऋषि बिल्डिंग पर ये तीनों मौजूद नहीं थे. इस कार्यक्रम के वीडियो ने इन तीनों को ज़मानत दिलवाने में एक अहम भूमिका निभाई.

जुनैद की मां रुखसाना ने रोते हुए कहा, ''बेकसूर सजा भुगती है बच्चे ने भी और हमने भी. कहां जाए. वकील साहब के पास जा रहे हैं. बार-बार जा रहे हैं. कह रहे हैं छूट जाएगा. तसल्ली देते रहे.''

जुनैद को जेल से घर वापस आने में 10 महीने 22 दिनों का वक्त लग गया. दिल्ली दंगों में एक शख्स की मौत के आरोप में पिछले साल 2 अप्रैल से ये जेल में था. ज़मानत 19 फरवरी को हुई पर आदेश की कॉपी जेल तक आते आते और 5 दिन गुजर गए. बुधवार देर रात रिहाई मुमकिन हो पाई.

मोहम्मद जुनैद ने कहा, ''एक एक पल ऐसा गुजारा पूछो मत. रोटी भी नहीं खाई जा रही थी. न भूख लगती थी.. न ही प्यास. घर का टेंशन भी रहता था. कैसे हो रहा है सब, किराए का मकान है. डर लग रहा था कि और मुकदमे में न डाल दें. किसी पर 25 मुकदमे, किसी पर 12. लगता रहा निकलेंगे या नहीं निकलेंगे.''

जब सवाल पूछा गया कि 19 को बेल और आप 24 को निकले कैसे बीता ये पल? जब जवाब मिला कि बहुत कठिन बीता है. डर लगता था कि कोई और मुकदमे न डाल दें.

जुनैद की चार बहनें हैं. परिवार में मां बीमार. किराए का घर. दिहाड़ी के काम के दम पर परिवार की जिम्मेदारी मां और जुनैद के कंधों पर ही थी. उधर बेटा जेल गया और मां अदालत के चक्कर काटती रहीं. जुनैद की मां ने कहा, ''बहुत परेशान थी. कभी जेल जा रही हूं. कभी कोर्ट जा रही हूं. वकील साहब का काफी सपोर्ट मिला. क्या करें हम? कौन भरेगा हमारा हर्जाना? ऐसे ऐसे उठा रहे हैं बेगुनाहों को. उन्हे परेशानी नहीं होगी? हमारा कोई कमाने वाला नहीं। एक ही बच्चा था जिसे उठा लिया गया. हम पर कभी कभी किराए का भी पैसा नहीं होता था.''

एक तरफ मोहन नर्सिंग होम जहां से गोली चली. दूसरी तरफ सप्तऋषि बिल्डिंग जहां एक शख्स शाहिद गोली से घायल हुआ और मौत हो गई. मौत के आरोप में गिरफ्तारी जिन 6 लोगों की हुई उसमें से तीन को जमानत मिल गई. जो वीडियो साक्ष्य के तौर पर कोर्ट में प्रस्तुत हुआ, उसमें ये लोग सप्तऋषि बिल्डिंग पर ये दिख नहीं रहे. जमानत का आधार भी यही रहा."

आरोपी के वकील सलीम मलिक ने कहा, ''शाहिद मर्डर केस है. पुलिस का आरोप है कि ये लोग सप्तऋषि बिल्डिंग पर थे और उनके साथ ही शाहिद था. इन्हीं की गोली से शाहिद खत्म हुआ. ये पुलिस का पूरा केस है. हमने जो हाई कोर्ट में आधार लिए काफी आधार लिए. उनमें से एक आधार 5 मार्च 2020 को जो रवीश कुमार जी ने वीडियो प्राइम टाइम शो में चलाई थी वो भी आधार था. उस वीडियो में जो दिख रहा है. मोहन नर्सिंग होम से फायरिंग होते हुए दिख रही है. राइफल से फायरिंग हो रही है. स्टोन पेल्टिंग हो रही है. सप्तऋषि बिल्डिंग पर भी चेहरा साफ नजर आ रहा है. इसके बावजूद भी मोहन नर्सिंग होम की बिल्डिंग से हो फायरिंग कर रहे हैं उनका तो आज तक कुछ पता नहीं है. अरेस्ट हुए या नहीं. मेरी जानकारी में नहीं है.''

अब पिछले साल 5 मार्च के प्राइम टाइम का वीडियो देखिए. जिसे पुलिस ने चार्जशीट का हिस्सा भी बनाया है. जिसे कोर्ट में भी दिखाया गया. दर्जन भर भीड़ यमुना विहार के मोहन नर्सिंग होम की छत पर दिखती है. तौलिए में छुपाकर लाई गई बंदूक बाहर निकलती है. हेलमेट पहना शख्स गोली चलाता है. इधर दूसरी तरफ यानी चांदबाग की तरफ सप्तऋषि बिल्डिंग पर एक शख्स शाहिद गोली से घायल होता है जिसकी मौत हो जाती है. मोहन नर्सिंग होम की छत पर और भी कई लोग हैं जो पहचाने जा सकते हैं. हेल्मेट पहन कर जो गोली चला रहा है उसे कोई रोक भी नहीं रहा है. उसके साथ की भीड़ भी पत्थर चला रही है बोतलें फेंक रही है.

पुलिस के मुताबिक पुलिस ने मोहन नर्गिंस होम को लेकर FIR दर्द की है. एक संदिग्ध हथियार सीज़ किया है. उसकी FSL रिपोर्ट का अभी तक इंतज़ार है. इस पर हमारा सवाल है कि क्या FSL रिपोर्ट आने में इतना वक्त लगना चाहिए? क्या संदिग्ध हथियार वही है जो इस वीडियो में दिख रहा है? इसका जवाब हमारे पास नहीं है. FSL रिपोर्ट से पता चलेगा कि गोली ज़ब्त की गई बंदूक से चली है या नहीं. इस वीडियो में मोहन नर्सिंग होम पर खड़े लोग साफ साफ पहचाने जा सकते हैं. मगर इनकी गिरफ्तारी नहीं हुई है. क्या पुलिस ने इनके स्टिल तस्वीरों को लेकर पोस्टर जारी किए हैं? इसका जवाब हमारे पास नहीं है.

मोहन नर्सिंग होम के सामने की छत पर ही शाहिद को गोली लगती है, उसकी मौत के आरोप में 6 लोग गिरफ्तार होते हैं. जब इस वीडियो को अदालत में दिखाया गया तो सप्तऋषि बिल्डिंग पर जुनैद, इरशाद और चांद मोहम्मद उस वीडियो में नहीं दिखते. पर सवाल है कि इसी प्राइम टाइम में कुछ चेहरे साफ भी हैं. पर अफसोस पुलिस ने मोहन नर्सिंग होम को लेकर FIR तो दर्ज की पर गिरफ्तारी किसी की नहीं.

कोर्ट ने कहा कि पुलिस अब तक मुख्य हमलावर, जिसकी गोली से शाहिद की मौत हुई, उसे गिरफ्तार नहीं कर सकी है. साथ ही यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं से हथियार की किसी भी तरह की कोई बरामदगी नहीं हुई है.

जस्टिस कैत ने एनडीटीवी के वीडियो के बारे में कहा कि "जैसा कि याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने प्रस्तुत किया है कि पुलिस द्वारा भरोसा किए गए वीडियों में ही, ठीक 10 मिनट वीडियो चलाने के बाद, यह दिखता है कि एनडीटीवी के प्राइम टाइम एंकर रविश कुमार ने कहा कि मोहन नर्सिंग होम अस्पताल में एक व्यक्ति राइफल निकाल रहा है और हेलमेट पहना हुआ है. एक अन्य व्यक्ति है जो हथियार को रूमाल के साथ कवर कर रहा है और बाद में, उन्हें वीडियो में भी देखा जा सकता है. लेकिन जांच एजेंसी ने इमारत के एक तरफ ही ध्यान केंद्रित किया है, ऐसा प्रतीत होता है. हालांकि अभियोजन पक्ष ने स्वीकार किया कि दोनों पक्षों के उपद्रवी एक-दूसरे पर पथराव कर रहे थे और गोलीबारी कर रहे थे. आगे, इस वीडियो में है कि गोलीबारी केवल मोहन नर्सिंग होम से की जा रही है, न कि सप्तऋषि बिल्डिंग से."

पर वो गिरफ्तार हो गए जो शामिल नहीं थे. इसी में एक और चांद मोहम्मद हैं. दो बच्चों के पिता हैं. गाड़ी चलाते हैं. पर 9 महीने 8 दिन परिवार से दूर जेल में कटी. अब परिवार के बीच हैं. पिता संघर्ष करते रहे और तब परिवार के बीच तक आने का सफर मुमकिन हो पाया. चांद मोहम्मद ने कहा, ''बड़ी मुश्किल में दिन कटे मेरे. न मैं वहां पर था. न मेरी तस्वीर वीडियो रिकॉर्डिंग में. न मेरा फोन का लोकेशन. क्योंकि मैं था ही नहीं वहां पर. मेरे घर वाले भी काफी परेशान रहे. 9 महीने 8 दिन जेल में रहा. मेरा परिवार परेशान रहा. मेरे पापा दिल के मरीज हैं. मेरी मम्मी बहुत बीमार रहती हैं. उनको परेशानी हुई. दो छोटे छोटे बच्चे हैं. मैं रोज का कमाने खाने वाला हूं. मेरी जिंदगी नरक बना दी उन्होंने.''

चांद बताते हैं की जब पुलिस ले गई तो कहा की चार-पांच लोगों के नाम बताओ तो तुम्हें छोड़ देंगे. पर जब मैं था ही नहीं तो भला किसी को देखा नहीं तो किसके नाम बताता. बेटा उधर जेल में और इधर पिता कोर्ट से वकील का चक्कर काटते रहे. चांद मोहम्मद के पिता चौधरी मुख्तार अहमद ने कहा, ''बहुत परेशान रहा. सारी-सारी रात नींद नहीं आई है. अल्लाह से दुआ मांगता रहा. मेरा बच्चा फंस गया है. अल्लाह ताला इसको बचाओ. 24 घंटे बस यही सोचता रहता था.''

सप्तऋषि बिल्डिंग के शाहिद मर्डर केस में तो इरशाद की जमानत हो गई पर दूसरे मामले और भी थे. उसको लेकर भी कानूनी खानापूर्ति हो चुकी है. जमानत मिल चुकी है पर वो अब भी जेल में ही है.

इरशाद की मां रेहाना ने कहा, ''एक पैर घर में है तो दूसरी कोर्ट में. हमने ऐसा टाइम काटा है. मेरा बच्चा बेकसूर है. वो काम से लौट रहा था और घर से लेकर गए. उसकी टांग में फ्रेक्चर है वो तो ऐसे भी भीड़ में जाने लायक नहीं. तकलीफ अब कम होगी अब तो. ज्यादा कहा न जा रहा मुझसे.''

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दंगे का दर्द अब भी बरकरार है. उस आग में न जाने कितने ही घर झुलसे. पर निशां अब भी बाकी हैं. वो परिवार आज भी अदालत के चक्कर काट रहे हैं जिनके अपने सलाखों के पीछे चले गए. खाकी का काम कारवाई का है पर इस बात का ख्याल होना चाहिए की आनन फानन में की गई कारवाई से सिर्फ गिरफ्तार किया गया शख्स नहीं बल्कि उसका दर्द पूरा परिवार झेलता है.