बनारस में गंगा संरक्षण पर चला तीन दिनों तक मंथन

बनारस: वाराणसी में साझा संस्कृति मंच, गंगा मुक्ति आन्दोलन और सर्व सेवा संघ के बैनर तले तीन दिवसीय "गंगा बेसिन संरक्षण: चुनौतियां एवं संभावनाएं" विषय पर राष्ट्रीय समागम हुआ। दो दिन में चले पांचों सत्रों के आधार पर इसमें 7 राज्यों से आए प्रतिनिधियों की सहमति से बनारस घोषणा को अंतिम रूप दिया गया। जिसमे विकास के नाम पर आने वाली जन विरोधी योजनाओं, प्रस्तावित बैराजों, जल परिवहन की परियोजनाओं को नकारते हुए राष्ट्रीय हिमालय नीति पर प्रभावी कदम उठाने के लिए सरकार पर जन दबाव बनाने का संकल्प लिया गया।

गंगा बेसिन संरक्षण: चुनौतियां एवं संभावनाएं पर सात राज्यों से आए वक्ताओं ने अलग-अलग विषयों पर अपनी राय रखी स्वामी गंगेय हंस ने कहा कि हम ईश्वर को नीर के रूप में पूजने वाले लोग हैं। प्रकृति की उपासना करने वाले प्रकृति का शोषण करने वालों से हांथ नहीं मिला सकते।

प्रो. चन्द्र मौली ने कहा हाइड्रो पावर सस्ती नहीं है। साथ ही गंगा सिर्फ जल नहीं है उसमे हिमालय की जड़ी बूटियों का तत्व है। उसके पानी में सबसे ज़्यादा डिजॉल्वड आक्सीजन है। लिहाजा गंगा की शुद्धता को बचना जरूरी है।
 
हिमालय पर चर्चा करते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भूगोलविद डॉ दीपायन ने कहा की गंगा नदी संसाधनों की दृष्टि से अमूल्य निधि है, गंगा घाटी भारत की 40 प्रतिशत जनसंख्या के लिये खाद्यान उत्पादित करती है। इसका पी एच मान 5.5 से 6.5 के बीच पाया जाता है जिससे सब्जी ,फसल और फल की उत्पादन गुणवत्ता समृद्ध होती है।

इसी तरह दिल्ली से आए पत्रकार अफसर जाफरी समेत कई वक्ताओं ने गंगा की गुणवत्ता और आज के हालात पर चर्चा की। तीन दिन तक चले इस मंथन में बहुत बाते हुईं। कुछ ठोस क़दम उठाने की भी बात हुई जिसमे मोदी के गंगा सफाई का विरोध अहम रहा।

अनिल चमड़िया मोदी सरकार के गंगा सफाई पर कहते हैं कि 'आप दो बाते मत कहिए गंगा को बांधने की योजना भी बनाइए और सफाई का अभिनय भी कीजिए, ये नहीं होगा गंगा को आप बहने दीजिये सफाई अपने आप हो जाएगी अभी आप गंगा पर 16 बाँध बनाने जा रहे हैं, 16 बाँध बनाएंगे, बैराज बनाऐंगे, जलमार्ग बनाऐंगे तो गंगा का क्या होगा?'  
 
गंगा बेसिन संरक्षण चुनौतियाँ एवं संभावनाएं तीन दिन तक चले पाँच सत्र में हिमालय से लेकर मैदानी इलाके तक, ग्लेशियर से लेकर बांधों तक और सरकार के गंगा पर जलमार्ग की संभावनाओं जैसे तमाम विषय पर सात राज्यों से आये गंगा आंदोलन से जुड़े लोगों ने अपने विचार रखे।

अन्त में गंगा के खुले घाट पर ओपन सत्र हुआ जहां पहले गंगा की दुर्दशा पर लोगों को जागरूक करने के लिए प्रेरणा कला मंच के कलाकारों ने नुक्कड़ नाटक किया। गंगा और गंगी नाम के इस नाटक में बनारस में गंगा और उसके घाट के हालात को बहुत मार्मिक ठंग से मंचित किया गया। इसी मंच पर कलकत्ता से आई कविता तयाल ने अपने मूक अभिनय से बांधों में जकड़ी गंगा की विवशता को भी प्रस्तुत किया।
 
सत्र के अन्त में बनारस घोषणा पत्र जारी किया गया, जिसमें गंगा के बाज़ारीकरण का प्रमुखता से विरोध करते हुए चार प्रस्ताव पारित किया गया। आयोजकों में से एक जागृति राही इस प्रस्ताव के बारे में बताती हुई कहती हैं कि "गंगा किसी एक धर्म या जाति की नहीं है, गंगा इस देश की साझी संस्कृति की प्रतीक है और दूसरी बात गंगा की सफाई शब्द की अवधारणा गलत है गंगा को अविरल कीजिये गंगा अपने आप साफ़ हो जाएगी। तीसरी बात इसको बांधने की जो कोशिश हो रही है वो गलत है गंगा को बाहर कर कोई विकास नहीं हो सकता।

इस मंच से जुड़े लोग सरकार से नाउम्मीद हो चुके हैं, लिहाजा गंगा के किनारे बसे लोगों को जागरूक कर एक बड़ा आंदोलन खड़ा करना चाहते हैं। इनके इस भागीरथ प्रयास को देखकर आप कह सकते हैं कि कोशिशें कामयाब होती हैं। बनारस में जुटे ये लोग भी पिछले दो दशकों से गंगा को बचाने की कोशिश कर रहे है।

ये अलग बात है की सरकार इनकी बातों पर ध्यान नहीं दे रही। लेकिन ये लोग बिना किसी स्वार्थ के गंगा को बचाने में जुटे हैं। इनकी ये ईमानदार कोशिश एक दिन रंग जरूर लाएगी। इसी उम्मीद के साथ ये मंथन ख़त्म हुआ।


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