2002 में गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के कोच को जलाने का मामला, जानें अब तक क्या हुआ

साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में गोधरा स्टेशन पर आग लगा दी गई थी, जिसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़के. इस डिब्बे में 59 लोग थे, जिसमें से ज़्यादातर अयोध्या से लौट रहे कार सेवक थे.

2002 में गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के कोच को जलाने का मामला, जानें अब तक क्या हुआ

गोधरा ट्रेन के एस-6 कोच में आग...

खास बातें

  • 27 फरवरी 2002 को ट्रेन की एक कोच में आग
  • साबरमती एक्सप्रेस की एस-6 बोगी में आग
  • जिस कोच में आग लगी उसमें 59 लोग थे
अहमदाबाद:

2002 में गोधरा ट्रेन के डिब्बे जलाने के मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने आज बड़ा फैसला सुनाते हुए 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया. साथ ही मारे गए 59 लोगों के परिवारों को 10-10 लाख रुपये मुआवजा देने का ऐलान किया गया है. दरअसल, एसआईटी की विशेष अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी. साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में गोधरा स्टेशन पर आग लगा दी गई थी, जिसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़के. इस डिब्बे में 59 लोग थे, जिसमें से ज़्यादातर अयोध्या से लौट रहे कार सेवक थे. एसआईटी की विशेष अदालत ने एक मार्च 2011 को इस मामले में 31 लोगों को दोषी करार दिया गया था, जबकि 63 को बरी कर दिया था, 11 दोषियों को मौत की सज़ा सुनाई गई थी. जबकि 20 को उम्रकैद की सजा दी गई है.

2002 का गुजरात दंगा : नरेंद्र मोदी पर लगे थे ये आरोप
 

  1. 27 फरवरी 2002 को ट्रेन की एक कोच में आग
  2. साबरमती एक्सप्रेस की एस-6 बोगी में आग
  3. जिस कोच में आग लगी उसमें 59 लोग थे
  4. ज़्यादातर अयोध्या से लौट रहे कार सेवक
  5. आग के बाद दंगे, क़रीब 1 हज़ार लोगों की मौत
  6. 1 मार्च 2011: SIT की स्पेशल कोर्ट का फ़ैसला
  7. 31 दोषियों को सज़ा, 11 को फांसी, 20 को उम्रक़ैद
  8. गुजरात हाइकोर्ट में कई याचिका, सज़ा को चुनौती
  9. 63 आरोपी बरी, गुजरात सरकार ने दी चुनौती
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इससे पूर्व 2002 में गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों में बड़े षड्यंत्र के आरोप में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य को विशेष जांच दल द्वारा क्लीन चिट दिए जाने के फैसले को बरकरार रखने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली जाकिया जाफरी की अपील गुजरात हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी.हालांकि जाकिया के बेटे ने इस फैसले को अपनी जीत बताया क्योंकि अदालत ने याचिकाकर्ताओं को पुन: जांच की मांग करने के लिए एक उचित फोरम पर जाने की अनुमति दे दी.

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