इन गांवों में तो 100 साल पहले ही ले लिया गया था पटाखे न जलाने का फैसला

तिरूनलवेली के कूतनकुलम गांव में पक्षी विहार है और वहां के लोग लंबे समय से दिवाली के समय पटाखे चलाने से बचते हैं.

इन गांवों में तो 100 साल पहले ही ले लिया गया था पटाखे न जलाने का फैसला

फाइल फोटो

खास बातें

  • चिड़ियों और चमगादड़ों को न हो दिक्कत
  • ग्रामीण नहीं जलाते पटाखे
  • तिरूनलवेली के कूतनकुलम गांव में है पक्षी विहार
चेन्नई:

तमिलनाडुके कई गांवों के लोग चिड़ियों और चमगादड़ों को होने वाली दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए दीवाली पर पटाखे नहीं चलाते हैं. तिरूनलवेली के कूतनकुलम गांव में पक्षी विहार है और वहां के लोग लंबे समय से दिवाली के समय पटाखे चलाने से बचते हैं. दिलचस्प बात यह है कि गांव के लोग पक्षियों को तेज आवाज से होने वाली परेशानियों को ध्यान में रखते हुए धार्मिक स्थलों और व्यक्तिगत समारोहों में भी तेज आवाज वाले लाऊडस्पीकर का प्रयोग कम से कम करते हैं.

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इसी तरह सलेम पेराम्बुर के करीब वव्वाल तोप्पु गांव तथा कांचीपुरम के निकट विशार के लोग पटाखे इसलिए नहीं चलाते हैं ताकि आसपास बसे चमगादड़ों को परेशानी ना हो. पेराम्बुर के लोगों का कहना है कि पटाखे नहीं चलाने का फैसला करीब एक सदी पहले लिया गया ताकि चिड़ियों और चमगादड़ों को परेशानी ना हो.

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गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लिए इस बार दीपावली में पटाखे दगाने पर रोक लगा दी है. इसका अच्छा-खासा विरोध हो रहा है. कुछ लोगों ने इसे धर्म से भी जोड़ दिया है. दूसरी ओर व्यापारी भी इस निर्णय से नाराज हैं. 


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